हाल ही में भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान द्वरा बार बार दी जा रही परमाणु धमकी के जवाब में कहा कि हमारी नीति रही है कि हम परमाणु हथियार का पहले प्रयोग नहीं करेंगे। लेकिन आगे क्या होगा, यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। राजनाथ सिंह ने यह बयान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहली पुण्यतिथि पर पोखरण में दिया था। भारत के विशेषज्ञ मानते हैं कि परमाणु हमले का इंतजाकर करने के बाद फिर परमाणु हमला करना मूर्खता होगी।
इस बयान के बाद समूचे पाकिस्तान में डर का माहौल कायम हो गया और खौफजदा प्रधानमंत्री इमरान खान ने लगातार कई ट्वीट्स करके भारत के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से गुहार लगाई है। इमरान खान ने लिखा कि भारत के परमाणु हथियार का नियंत्रण फासीवादी मोदी सरकार के हाथ में है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिससे केवल क्षेत्र पर ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर इसका प्रभाव पड़ेगा। इमरान खान ने एक ट्वीट में लिखा, "हिंदुत्ववादी मोदी सरकार केवल पाकिस्तान के लिए ही नहीं बल्कि भारत के अल्पसंख्यकों और 'नेहरू-गांधी के भारत' के लिए भी खतरा है।"
क्या महाभारत में छोड़े गए ब्रह्मास्त्र से नष्ट हुई थी सिंधु घाटी?
अब हम जरा इतिहास में जाते हैं। महाभारत काल में कंबोज, गांधार, कैकय, कुरु, पांचाल, वृत्सु, सीबीर, बल्हिक, यदु और मद्र जनपद अस्तित्व में थे। इन्हीं के कुछ हिस्सों को मिलाकर आज का पाकिस्तान है। दरअसल, उस काल में अधिकतर लोग सिंधु और सरस्वती के किनारे ही रहते थे। यहीं पर उसी काल में सिंधु घाटी की सभ्यता अपने चरम पर थी। यह सभी लोग दृविड़ ही थे जिन्हें आर्य कहा जाता था। वर्तमान में सिंधुघाटी का एक बहुत बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में हैं।
आज जिस हिस्से को पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है, महाभारतकाल में उसके उत्तरी हिस्से को गांधार, मद्र, कैकय और कंबोज की स्थली कहा जाता था। अयोध्या और मथुरा से लेकर कंबोज (अफगानिस्तान का उत्तर इलाका) तक आर्यावर्त के बीच वाले खंड में कुरुक्षेत्र होता था, जहां यह युद्ध हुआ। उस काल में कुरुक्षेत्र बहुत बड़ा क्षेत्र होता था। आजकल यह हरियाणा का एक छोटा-सा क्षेत्र है।
उस काल में सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। सिन्धु और सरस्वती के बीच के क्षेत्र में कुरु रहते थे। यहीं सिन्धु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर बसे थे, जो मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी तक फैले थे। सिन्धु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि स्थानों की प्राचीनता और उनके रहस्यों को आज भी सुलझाया नहीं जा सका है। मोहन जोदड़ो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है।
जब पुरातत्वशास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहन जोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्होंने देखा कि वहां की गलियों में नरकंकाल पड़े थे। कई अस्थिपंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थिपंजरों ने एक-दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे, मानो किसी विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुंचा दिया था।
उन नरकंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी के चिह्न थे, जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गए थे। मोहन जोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाइट्रिफिकेशन के जो चिह्न पाए गए थे, उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है।
उल्लेखनीय है कि उसी काल में महाभारत का युद्ध हुआ था। उस दौरान गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने भगवान कृष्ण के मना करने के बावजूद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, प्रत्युत्तर में अर्जुन ने भी छोड़ा। अश्वत्थामा ने पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था और अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए। दोनों द्वारा छोड़े गए इस ब्रह्मास्त्र के कारण लाखों लोगों की जान चली गई थी। महाभारत में इस ब्रह्मास्त्र के प्रभाव का वर्णन मिलता है।
तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम।
सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम।
चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा।। महाभारत ।। 8-10-14 ।।
अर्थात : ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने के बाद भयंकर वायु जोरदार तमाचे मारने लगी। सहस्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे। भूतमात्र को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया। आकाश में बड़ा शब्द हुआ। आकाश जलने लगा। पर्वत, अरण्य, वृक्षों के साथ पृथ्वी हिल गई।
महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं। यह परिणाम ऐसे ही हैं जैसा कि वर्तमान में परमाणु अस्त्र छोड़े जाने के बाद घटित होते हैं। कुछ जानकारों के अनुसार अश्वत्थामा द्वारा छोड़ा गया ब्रह्मास्त्र परमाणु बम जैसा ही था। इसमें इसका उल्लेख भी मिलता है कि ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने के बाद 12 वर्ष तक धरती पर निर्जन रहता है। वर्षा नहीं होती है और प्रभावित होने वाले संपूर्ण क्षेत्र में जीव जंतु और सभी तरह के प्राणी मर जाते हैं।
परमाणु बम छोड़े जाने के बाद भी कुछ इसी तरह के प्रभाव होने का उल्लेख मिलता है। आधुनिक काल में जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर ने महाभारत में बताए गए ब्रह्मास्त्र की संहारक क्षमता पर शोध किया और अपने मिशन को नाम दिया ट्रिनिटी (त्रिदेव)। रॉबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 का बीच वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह कार्य किया। 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परीक्षण किया गया था।
शोधकार्य के बाद विदेशी वैज्ञानिक मानते हैं कि वास्तव में महाभारत में परमाणु बम का प्रयोग हुआ था। 42 वर्ष पहले पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने अपने शोधकार्य के आधार पर कहा था कि महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था। डॉ. वर्तक ने 1969-70 में एक किताब लिखी ‘स्वयंभू’। इसमें इसका उल्लेख मिलता है।
एरिक वॉन अपनी बेस्ट सेलर पुस्तक 'चैरियट्स ऑफ गॉड्स' में लिखते हैं, 'लगभग 5,000 वर्ष पुरानी महाभारत के तत्कालीन कालखंड में कोई योद्धा किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानता था जिसे चलाने से 12 साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता, ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके? इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ न कुछ तो था जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गया अथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया।'
निष्कर्ष : भारतीय सेना पाकिस्तान का वजूद मिटा देने की क्षमता रखती है फिर भले ही इसमें चीन किसी भी प्रकार का अडंगा डाले। वर्तमान में चीन और पाकिस्तान ने भारत के डर से भारत को उलझाने के लिए कश्मीर और अन्य राज्यों में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। वे दोनों मिलकर दक्षिण एशिया में एक खतरनाक खेल खेल रहे हैं और आने वाले समय में यदि यह खेल और बढ़ता है तो ऐसी आशंका है कि पाकिस्तान का नामोनिशान मिट जाएगा, क्योंकि भारत अब पहले का भारत नहीं रहा। वर्तमान सरकार की नीति घर में घुसकर मारने की है और जैसा की राजनाथ ने संकेत दिए हैं कि भारत अपनी सुरक्षा के हित में पहले भी परमाणु हमला कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं। भारत किसी भी हालत में नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान को कोई मौका दिया जाए।
पिछले वर्ष अमेरिका में दक्षिण एशियाई मामलों के एक शीर्ष परमाणु विशेषज्ञ ने दावा किया था कि अगर भारत को यह आशंका हुई कि पाकिस्तान उस पर परमाणु हथियार से आक्रमण कर सकता है तो वह परमाणु का 'पहले इस्तेमाल नहीं करने' की अपनी नीति को संभवत: त्याग सकता है और पाकिस्तान के खिलाफ उसके हमला से पहले ही हमला कर सकता है।
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दक्षिण एशियाई परमाणु रणनीति के विशेषज्ञ विपिन नारंग ने वॉशिंगटन में एक कार्यक्रम के दौरान कहा 'ऐसे दावे बढ़ रहे हैं कि भारत पाकिस्तान को पहले कदम उठाने की इजाजत नहीं देगा।' उन्होंने कहा कि भारत पहले परमाणु इस्तेमाल नहीं करने की अपनी नीति छोड़ सकता है और अगर उसे शक हुआ कि पाकिस्तान उसके खिलाफ परमाणु हथियारों या 'टैक्टिकल' परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने जा रहा है तो वह पाकिस्तान के हमला करने से पहले ही हमला कर सकता है। बहरहाल, उन्होंने यह उल्लेख किया कि भारत का पहले हमला परंपरागत हमला नहीं होगा और वह पाकिस्तान के 'टैक्टिकल' परमाणु हथियारों के मिसाइल लॉन्चरों को भी निशाना बना सकता है।
लेकिन यदि जवाब में पाकिस्तान ने परमाणु हमला किया तो फिर विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि भारत ने जवाब में सिर्फ एक ही परमाणु बम छोड़ दिया तो पाकिस्तान का वजूद ही मिट जाएगा। पाकिस्तान के नदी, तालाब, जंगल सभी जलकर नष्ट हो जाएंगे। यह विश्व की सबसे भयानक त्रासदी होगी। निश्चित ही भारत का जवाब बहुत तगड़ा होगा। क्या आप सोच सकते हैं कि पाकिस्तान के जवाब में भारत चुप बैठा रहेगा?