Festival Posters

महाभारत : राजा पांडु की यह कथा क्या आप जानते हैं

Webdunia
धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे अत: उनकी जगह पर पांडु को राजा बनाया गया। इससे धृतराष्ट्र को सदा अपनी नेत्रहीनता पर क्रोध आता और पांडु से द्वेष-भावना होने लगती। पांडु ने संपूर्ण भारतवर्ष को जीतकर कुरु राज्य की सीमाओं का यवनों के देश तक विस्तार कर दिया।
 
एक बार राजा पांडु अपनी दोनों पत्नियों (कुंती तथा माद्री) के साथ आखेट के लिए वन में गए। वहां उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ। पांडु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुए मृगरूपधारी निर्दोष ऋषि ने पांडु को शाप दिया, 'राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है अत: जब कभी भी तू मैथुनरत होगा, तेरी मृत्यु हो जाएगी।'
 
इस शाप से पांडु अत्यंत दु:खी हुए और अपनी रानियों से बोले, 'हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्यागकर के इस वन में ही रहूंगा, तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ़।' उनके वचनों को सुनकर दोनों रानियों ने दु:खी होकर कहा, 'नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं, आप हमें भी वन में ही अपने साथ रखने की कृपा कीजिए।'
 
पांडु ने उनके अनुरोध को स्वीकार करके उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी। इसी दौरान राजा पांडु ने अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्माजी के दर्शनों के लिए जाते हुए देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, 'राजन्! कोई भी नि:संतान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अत: हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।'
 
ऋषि-मुनियों की बात सुनकर पांडु अपनी पत्नी से बोले, 'हे कुंती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है, क्योंकि संतानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिए मेरी सहायता कर सकती हो?'
 
कुंती बोली, 'हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मंत्र प्रदान किया है जिससे कि मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूं। आप आज्ञा करें कि मैं किस देवता को बुलाऊं?' इस पर पांडु ने धर्म को आमंत्रित करने का आदेश दिया। धर्म ने कुंती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया। कालांतर में पांडु ने कुंती को पुन: 2 बार वायुदेव तथा इंद्रदेव को आमंत्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इंद्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात पांडु की आज्ञा से कुंती ने माद्री को उस मंत्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्वनीकुमारों को आमंत्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ।
 
एक दिन राजा पांडु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यंत रमणीक था और शीतल, मंद व सुगंधित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पांडु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन में प्रवृत्त हुए ही थे कि शापवश उनकी मृत्यु हो गई।
 
माद्री उनके साथ सती हो गईं किंतु पुत्रों के पालन-पोषण के लिए कुंती हस्तिनापुर लौट आई। वहां रहने वाले ऋषि-मुनि पांडवों को राजमहल छोड़्कर आ गए। ऋषि-मुनि तथा कुंती के कहने पर सभी ने पांडवों को पांडु का पुत्र मान लिया और उनका स्वागत किया। 

सम्बंधित जानकारी

Budh vakri gochar 2025: बुध ग्रह ने चली वक्री चाल, जानिए क्या होगा 12 राशियों का राशिफल

Vivah Panchami upaay : विवाह पंचमी पर किए जाने वाले 5 मुख्य उपाय

Dreams and Destiny: सपने में मिलने वाले ये 5 अद्‍भुत संकेत, बदल देंगे आपकी किस्मत

Sun Transit 2025: सूर्य के वृश्‍चिक राशि में जाने से 5 राशियों की चमक जाएगी किस्मत

Margashirsha Month 2025: आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो मार्गशीर्ष माह में करें ये 6 उपाय

18 November Birthday: आपको 18 नवंबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 18 नवंबर, 2025: मंगलवार का पंचांग और शुभ समय

गीता जयंती पर गीता ज्ञान प्रतियोगिता के बारे में जानें और जीते लाखों के इनाम

Margashirsha Amavasya: मार्गशीर्ष अमावस्या कब है, 19 या 20 नवंबर? जानें शुभ मुहूर्त

Gita jayanti 2025: इस वर्ष 2025 में कब है गीता जयंती?

अगला लेख