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कर्ण के बारे में ऐसी 10 बातें जिन्हें जानकर चौंक जाएंगे आप...

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अनिरुद्ध जोशी

दुर्वासा ऋषि के वरदान से कुंती ने सूर्य का आह्वान करके कौमार्य में ही कर्ण को जन्म दिया था। लोक-लाज भय से कुंती ने उसे नदी में बहा दिया था। बाद में गंगा किनारे हस्तिनापुर के सारथी अधिरथ को कर्ण मिला और वह उस बालक को अपने घर ले गया। कर्ण को अधिरथ की पत्नी राधा ने पाला इसलिए कर्ण को राधेय भी कहते हैं। 'अंग' देश के राजा कर्ण की पहली पत्नी का नाम वृषाली था। वृषाली से उसको वृषसेन, सुषेण, वृषकेत नामक 3 पुत्र मिले। दूसरी सुप्रिया से चित्रसेन, सुशर्मा, प्रसेन, भानुसेन नामक 3 पुत्र मिले। माना जाता है कि सुप्रिया को ही पद्मावती और पुन्नुरुवी भी कहा जाता था।
 
 
पहला रहस्य : हालांकि यह कथा मान्यता पर आधारित है। कहते हैं कि द्रौपदी को महारथी कर्ण से प्रेम था और कर्ण को भी द्रौपदी पसंद थी। स्वयंवर में कर्ण भी गए थे। राजा द्रपुद का भीष्म से विरोध था और कर्ण भीष्म के पक्ष में थे। राजा द्रुपद ने द्रौपदी को पहले ही बता दिया था कि कर्ण एक सूत पुत्र है और यदि तुमने उन्हें पसंद किया तो जीवनभर तुम्हें एक दास की पत्नी के रूप में पहचाना जाएगा।
 
 
स्वयंवर में निराश द्रौपदी ने एक कठिन निर्णय लेते हुए भरी सभा में कर्ण को एक सूत पुत्र कहकर अपमानीत किया था। फिर भी चीरहरण के दौरान द्रौपदी को कर्ण से उम्मीद थी लेकिन कर्ण ने अपने अपमान को याद कर वहां द्रौपदी की कोई सहायता नहीं की। बाद में जब भीष्म पितामह मृत्युशैया पर लेटे थे तब कर्ण ने उनसे कहा कि वे द्रौपदी को चाहते थे। यह बात द्रौपदी ने भी सुनी और पहली बार द्रौपदी को भी पता चला कि कर्ण भी मुझे प्रेम करते हैं।
 
 
दूसरा रहस्य : दुर्योधन की पत्नी का नाम भानुमति था। कहते हैं कि भानुमति का कर्ण के साथ अच्छा संबंध हो चला था। दोनों एक-दूसरे के साथ मित्र की तरह रहते थे। कर्ण और दुर्योधन की पत्नी भानुमति एक बार शतरंज खेल रहे थे। इस खेल में कर्ण जीत रहा था। तभी भानुमति ने दुर्योधन को आते देखा और खड़े होने की कोशिश की। दुर्योधन के आने के बारे में कर्ण को पता नहीं था इसलिए जैसे ही भानुमति ने उठने की कोशिश की, कर्ण ने पकड़कर बिठाना चाहा।
 
 
भानुमति के बदले उसके मोतियों की माला कर्ण के हाथ में आकर टूट गई। दुर्योधन तब तक कमरे में आ चुका था। दुर्योधन को देखकर भानुमति और कर्ण दोनों डर गए कि दुर्योधन को कहीं कुछ गलत शक न हो जाए। परंतु दुर्योधन को कर्ण पर बहुत विश्वास था। उसने सिर्फ इतना कहा कि मोतियों को उठा लें और वह जिस उद्देश्य से आया था, उस संबंध में कर्ण से चर्चा करने लगा। इस विश्‍वास के चलते ही कर्ण गलत समझ लिए जाने से बच गए।
 
 
तीसरा रहस्य : एक बार कुंती कर्ण के पास गई और उससे पांडवों की ओर से लड़ने का आग्रह करने लगी। कर्ण को मालूम था कि कुंती मेरी मां है। कुंती के लाख समझाने पर भी कर्ण नहीं माने और कहा कि जिनके साथ मैंने अब तक का अपना सारा जीवन बिताया उसके साथ मैं विश्‍वासघात नहीं कर सकता।
 
 
तब कुंती ने कहा कि क्या तुम अपने भाइयों को मारोगे? इस पर कर्ण ने बड़ी ही दुविधा की स्थिति में वचन दिया, 'माते, तुम जानती हो कि कर्ण के यहां याचक बनकर आया कोई भी खाली हाथ नहीं जाता अत: मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अर्जुन को छोड़कर मैं अपने अन्य भाइयों पर शस्त्र नहीं उठाऊंगा।'
 
 
चौथा रहस्य : कर्ण की शक्ति अर्जुन और दुर्योधन से कम नहीं थी। उसके पास इंद्र द्वारा दिया गया अमोघास्त्र था जिसे इंद्र ने कवच और कुंडल के बदले में दिया था। अमोघास्त्र देवे वक्त इंद्र ने कहा था कि तुम इसका प्रयोग एक ही बार कर सकते हो। यह जिस पर भी चलाया जाएगा वह निश्चित ही मारा जाएगा।
 
 
कर्ण ने इस अमोघास्त्र का प्रयोग उसने दुर्योधन के कहने पर भीम पुत्र घटोत्कच पर किया था जबकि वह इसका प्रयोग अर्जुन पर करना चाहता था। यह ऐसा अस्त्र था जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। लेकिन वरदान अनुसार इसका प्रयोग एक बार ही किया जा सकता था।
 
 
पांचवां रहस्य : कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण, कर्ण और द्रौपदी के शरीर में समानता थी। कृष्णी की मांसपेशियां मृदु परंतु युद्ध के समय विस्तॄत हो जाती थीं इसलिए सामान्यत: लड़कियों के समान दिखने वाला उनका लावण्यमय शरीर युद्ध के समय अत्यंत कठोर दिखाई देने लगता था। यही खासियत द्रौपदी और कर्ण के शरीर में भी थी। इसका मतलब यह कि ये तीनों लोग वक्त के साथ अपने शरीर को कोमल या कठोरतम बना लेते थे।
 
 
छठा रहस्य : किंवदंती है कि एक बार कर्ण ने अपना यौवन ही दान दे दिया था। कथा अनुसार एक बार की बात है दुर्योधन के महल पर भगवान नारायण स्वयं विप्र के वेश में पधारे और दुर्योधन के भिक्षा मांगने लगे।
 
 
दुर्योधन के द्वार पर आकर एक विप्र ने अलख जगाई, 'नारायण हरि! भिक्षां देहि!'...
दुर्योधन ने स्वर्ण आदि देकर विप्र का सम्मान करना चाहा तो विप्र ने कहा, 'राजन! मुझे यह सब नहीं चाहिए।'
दुर्योधन ने आश्चर्य से पूछा, 'तो फिर महाराज कैसे पधारे?'
विप्र ने कहा, 'मैं अपनी वृद्धावस्था से दुखी हूं। मैं चारों धाम की यात्रा करना चाहता हूं, जो युवावस्था के स्वस्थ शरीर के बिना संभव नहीं है इसलिए यदि आप मुझे दान देना चाहते हैं तो यौवन दान दीजिए।'
दुर्योधन बोला, 'भगवन्! मेरे यौवन पर मेरी सहधर्मिणी का अधिकार है। आज्ञा हो तो उनसे पूछ आऊं?'
विप्र ने सिर हिला दिया। दुर्योधन अंत:पुर में गया और मुंह लटकाए लौट आया। विप्र ने दुर्योधन के उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की। वह स्वत: समझ गए और वहां से चलते बने। उन्होंने सोचा, अब महादानी कर्ण के पास चला जाए। कर्ण के द्वार पहुंच कर विप्र ने अलख जगाई, 'भिक्षां देहि!'
कर्ण तुरंत राजद्वार पर उपस्थित हुआ, विप्रवर! मैं आपका क्या अभीष्ट करूं?'
विप्र ने दुर्योधन से जो निवेदन किया था, वही कर्ण से भी कर दिया। कर्ण उस विप्र को प्रतीक्षा करने की विनय करके पत्नी से परामर्श करने अंदर चला गया लेकिन पत्नी ने कोई न-नुकुर नहीं की। वह बोली, 'महाराज! दानवीर को दान देने के लिए किसी से पूछने की जरूरत क्यों आ पड़ी? आप उस विप्र को नि:संकोच यौवन दान कर दें।' कर्ण ने अविलम्ब यौवन दान की घोषणा कर दी। तब विप्र के शरीर से स्वयं भगवान विष्णु प्रकट हो गए, जो दोनों की परीक्षा लेने गए थे।
 
 
सातवां रहस्य : कर्ण दान करने के लिए काफी प्रसिद्ध था। कहते हैं कि कर्ण जब युद्ध क्षेत्र में आखिरी सांस ले रहा था तो भगवान कृष्ण ने उसकी दानशीलता की परीक्षा लेनी चाही। वे गरीब ब्राह्मण बनकर कर्ण के पास गए और कहा कि तुम्हारे बारे में काफी सुना है और तुमसे मुझे अभी कुछ उपहार चाहिए। कर्ण ने उत्तर में कहा कि आप जो भी चाहें मांग लें। ब्राह्मण ने सोना मांगा।
 
 
कर्ण ने कहा कि सोना तो उसके दांत में है और आप इसे ले सकते हैं। ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं इतना कायर नहीं हूं कि तुम्हारे दांत तोड़ूं। कर्ण ने तब एक पत्थर उठाया और अपने दांत तोड़ लिए। ब्राह्मण ने इसे भी लेने से इंकार करते हुए कहा कि खून से सना हुआ यह सोना वह नहीं ले सकता। कर्ण ने इसके बाद एक बाण उठाया और आसमान की तरफ चलाया। इसके बाद बारिश होने लगी और दांत धुल गया।
 
 
आठवां रहस्य : उस काल में द्रोणाचार्य, परशुराम और वेदव्यास को ही ब्रह्मास्त्र चलाना और किसी के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किए जाने पर उसे असफल कर देना याद था। जब द्रोणाचार्य ने कर्ण को ब्रह्मास्त्र विद्या सिखाने से इंकार कर दिया, तब वे परशुराम के पास पहुंच गए। परशुराम ने प्रण लिया था कि वे इस विद्या को किसी ब्राह्मण को ही सिखाएंगे, क्योंकि इस विद्या के दुरुपयोग का खतरा बढ़ गया था। कर्ण यह सीखना चाहता था तो उसने परशुराम के पास पहुंचकर खुद को ब्राह्मण का पुत्र बताया और उनसे यह विद्या सीख ली।
 
 
फिर एक दिन जंगल में परशुरामजी कर्ण की गोद में सिर रखकर गहरी नींद में सो रहे थे। तभी कहीं से एक कीड़ा आया और वह कर्ण की जांघ पर डंक मारने लगा। कर्ण की जांघ पर घाव हो गया। लेकिन परशुराम की नींद खुल जाने के भय से वह चुपचाप बैठा रहा, घाव से खून बहने लगा। बहते खून ने जब परशुराम को छुआ तो उनकी नींद खुल गई। उन्होंने कर्ण से पूछा कि तुमने उस कीड़े को हटाया क्यों नहीं? कर्ण ने कहा कि आपकी नींद टूटने का डर था इसलिए। परशुराम ने कहा कि किसी ब्राह्मण में इतनी सहनशीलता नहीं हो सकती है। तुम जरूर कोई क्षत्रिय हो। सच-सच बताओ। तब कर्ण ने सच बता दिया।
 
 
क्रोधित परशुराम ने कर्ण को उसी समय शाप दिया कि तुमने मुझसे जो भी विद्या सीखी है वह झूठ बोलकर सीखी है इसलिए जब भी तुम्हें इस विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी, तभी तुम इसे भूल जाओगे। कोई भी दिव्यास्त्र का उपयोग नहीं कर पाओगे। हुआ भी यहीं की परशुराम को जब ब्रह्मास्त्र की जरूरत महसूस हुई तब वे यह विद्या भूल गए।
 
 
नौवां रहस्य : परशुरामजी के आश्रम से शिक्षा ग्रहण करने के बाद कर्ण वन में भटक रहे थे। इस दौरान वे शब्दभेदी विद्या सीख रहे थे। एक दिन जब वे इस विद्या का अभ्यास कर रहे थे तब उन्होंने एक गाय के बछड़े को अन्य वन्य पशु समझकर शब्दभेदी बाण चला दिया और उस बाण से बछडा़ मारा गया। तब उस गाय-बछड़े के स्वामी ब्राह्मण ने कर्ण को शाप दे दिया कि जिस प्रकार उसने एक असहाय बछड़े को मारा है, वैसे ही एक दिन वह भी तब मारा जाएगा जबकि वह खुद को असहाय महसूस करेगा और जब उसका सारा ध्यान अपने शत्रु से कहीं अलग किसी और काम पर होगा।
 
 
हुआ भी यही था कि जब कर्ण का अर्जुन से घोर युद्ध चल रहा था ‍तब उसके रथ का पहिया बार-बार भूमि में धंस जाता था और वह उसे निकालकर फिर से युद्ध करने लगता था। ऐसे समय में जब फिर से उसके रथ का पहिया भूमि में धंस गया तब वह फिर से उसे निकालने लगा और उसे उस समय घबराहट भी हो रही थी व उसका सारा ध्यान युद्ध के अलावा पहिए पर चला गया था। वह खुद को असहाय महसूस कर रहा था। ऐसे मौके का लाभ उठाकर अर्जुन ने कर्ण को मार दिया।
 
 
दसवां रहस्य : युद्ध में एक ओर कृष्ण थे, तो दूसरी ओर कर्ण। कर्ण दुर्योधन के तो कृष्ण, अर्जुन के दोस्त थे। यदि युद्ध में कर्ण को असहाय स्थिति में देखकर नहीं मारा जाता, तो अर्जुन की क्षमता नहीं थी कि वे कर्ण को मार देते। कृष्ण की नीति के तहत ही कर्ण का विवाह द्रौपदी से होने से रोक दिया, कृष्ण ने ही अपनी नीति से उनके कवच-कुंडल हथियाए और इन्द्र द्वारा दिया गया एकमात्र अचूक अमोघ अस्त्र जो वह अर्जुन पर चलाना चाहता था, वह घटोत्कच पर चलवाया गया।
 
 
इस तरह हम देखते हैं कि युद्ध के पहले से ही कर्ण और कृष्ण के बीच छद्मयुद्ध चलता रहा था। वो कृष्ण ही थे जिन्होंने ऐन वक्त पर नीति के तहत ही कर्ण को यह बताया था कि कुंती तुम्हारी मां है। लेकिन युधिष्‍ठिर और अर्जुन को इस बात का ज्ञात नहीं था कि कर्ण हमारा बड़ा भाई है। यदि युधिष्ठिर को यह पता चलता की कर्ण मेरा बड़ा भाई है तो वह राजपाट की लड़ाई नहीं लड़ते बल्कि कर्ण को ही राजा बनाने की लड़ाई लड़ते।
 

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