चुनावी मौसम में देश में एक बार फिर प्याज के दाम आसमान पर पहुंच गए हैं। अधिकांश राज्यों में प्याज की कीमतें 60- 70 रुपए किलो के आसपास पहुंच गई हैं। प्याज कारोबारियों की मानें तो जल्द ही खुदरा बाजार में प्याज 100 रुपए प्रति किलो तक बिक सकता है। महंगाई से पहले से ही जूझ रही जनता की आंखों से प्याज की बढ़ती कीमतों ने आंसू ला दिए हैं।
ऐसा नहीं है कि प्याज की बढ़ी कीमतों से लोग परेशान हैं, सरकार और नेता भी प्याज की दामों से परेशान हो गए हैं। देश में सबसे अधिक प्याज का उत्पादन करने वाले राज्य महाराष्ट्र में भी तो प्याज अब सियासी मुद्दा बन गया है। दरअसल इस वक्त महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और सत्तारुढ़ दल के सामने विपक्ष की जगह प्याज के दाम एक चुनौती बन गए हैं। विपक्ष प्याज के सहारे महंगाई को मुद्दा बनाकर सरकार को घेरने का काम कर रहा है।
21 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा की सभी 288 सीटों के लिए वोटिंग होनी है। ऐन वक्त पर प्याज की बढ़ती कीमतों से सूबे में सत्तारुढ़ दल भाजपा और शिवसेना के नेता परेशान हो गए हैं। मुंबई में इस वक्त खुदरा बाजार में प्याज 60-70 रुपए किलो बिक रहा है।
महाराष्ट्र में चुनाव के समय विपक्ष प्याज की बढ़ी कीमतों को लेकर भाजपा सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहरा रहा है। सत्तारुढ़ दल के नेताओं को डर सता रहा है कि कहीं प्याज की कीमतों का खामियाजा उनको चुनाव में वोटरों की नाराजगी के रुप में नहीं उठाना पड़ जाए। देश में प्याज की सबसे बड़ी मंडी नासिक में प्याज की थोक कीमत 50 रुपए किलो पार कर गई है, वहीं नसिक के खुदरा बाजार में प्याज 60-70 रुपए किलो बिक रहा है। इसके साथ ही महाराष्ट्र के अन्य जिलों में भी प्याज के दाम बढ़ रहे हैं।
क्यों बढ़ रहीं प्याज की कीमतें – अभी जब महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार शुरु ही हुआ है तब प्याज की कीमतों को लेकर भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही है। प्याज से जुड़े कारोबारी मान रहे हैं कि आने वाले समय में कुछ दिनों में प्याज के दामों में और इजाफा होगा। व्यापारी प्याज की दामों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह बारिश से बड़ी मात्रा में प्याज का खराब होना बता रहे हैं। इसके साथ ही प्याज की नई फसल में आने में देरी और बाजारों में भंडारण वाला प्याज बिकने से आने वाले समय में इसके दामों में और इजाफा होने की उम्मीद है।
प्याज बदल चुकी है सरकार! – प्याज की बढ़ती कीमतों से नेता इस वक्त इसलिए परेशान हैं क्योंकि देश के सियासी इतिहास में प्याज के चलते पार्टियों को हार का सामना करना पड़ा है। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय प्याज की कीमतें मुसीबत बनी थी, प्याज की कीमतों ने भाजपा के लिए इतनी परेशानी खड़ी कर दी थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस पर चिंता जताई थी। 1998 में दिल्ली के विधानसभा चुनाव के समय प्याज सबसे बड़ा मुद्दा बन गया था और लोगों की नाराजगी के चलते विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव के बाद उस वक्त दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं सुषमा स्वराज ने यह माना भी था कि प्याज की कीमतों ने लोगों को नाराज कर दिया, जिसके चलते उनको हार का मुंह देखना पड़ा।
सतर्क हो गई सरकारें - प्याज के दामों में इसी तेजी के चलते चुनावी राज्यों में सरकार सतर्क हो गई है। चुनावी राज्य दिल्ली में तो केजरीवाल सरकार ने खुद 24 रुपए किलो की दर पर प्याज बेचे जाने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने प्याज की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं लेकिन अब तक इसका असर बाजार में देखने को नहीं मिल रहा है। ऐसे में सरकार जल्द ही व्यापारियों के लिए भंडारण की सीमा तय करने पर विचार कर रही है।