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आजादी के बाद पहली बार उत्तर महाराष्ट्र के 4 आदिवासी गांवों में फहराया गया तिरंगा

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

नंदुरबार , शनिवार, 16 अगस्त 2025 (12:50 IST)
Independence Day: उत्तर महाराष्ट्र (north Maharashtra) के एक सुदूर गांव जहां अब तक बिजली नहीं पहुंची और मोबाइल सिग्नल भी हवा की तरह खो जाता है, वहां गणेश पावरा ने देशभक्ति की मिसाल पेश करते हुए स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) की पूर्व संध्या पर एक वीडियो डाउनलोड कर सीखा कि तिरंगे (tricolour) को किस तरह बांधा जाए कि वह बिना रुकावट शान से लहराए।
 
शुक्रवार को गणेश पावरा ने करीब 30 बच्चों और गांव वालों के साथ मिलकर अपने गांव उदाड्या में पहली बार झंडा फहराया। यह गांव नंदुरबार जिले की सतपुड़ा पहाड़ियों के बीच बसा है। मुंबई से करीब 500 किलोमीटर और सबसे नजदीकी तहसील से लगभग 50 किलोमीटर दूर बसे इस छोटे से गांव में करीब 400 लोग रहते हैं, लेकिन यहां कोई सरकारी स्कूल नहीं है। पावरा एक गैर-सरकारी संस्था 'वाईयूएनजी फाउंडेशन' द्वारा संचालित एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हैं।ALSO READ: मोदी, इंदिरा या नेहरू, किसके नाम है लाल किले पर सबसे ज्यादा बार तिरंगा फहराने का रिकॉर्ड
 
'वाईयूएनजी फाउंडेशन' के संस्थापक संदीप देओरे ने कहा कि यह इलाका प्राकृतिक सुंदरता, उपजाऊ मिट्टी और नर्मदा नदी से समृद्ध है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां तक पहुंचना काफी मुश्किल होता है। इस क्षेत्र में 3 वर्षों से शिक्षा संबंधी गतिविधियों को क्रियान्वित कर रहे फाउंडेशन ने इस साल स्वतंत्रता दिवस पर उदाड्या, खपरमाल, सदरी और मंझनीपड़ा जैसे छोटे गांवों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया।ALSO READ: हर घर तिरंगा अभियान के तहत शाह ने अपने घर पर फहराया राष्ट्रीय ध्वज, बताया इस पहल को जन आंदोलन
 
फाउंडेशन द्वारा संचालित 4 स्कूलों में पढ़ने वाले 250 से ज्यादा बच्चे शुक्रवार को झंडा फहराने के कार्यक्रम में शामिल हुए, साथ ही गांव के स्थानीय लोग भी मौजूद रहे। इन गांवों में न तो कोई सरकारी स्कूल है और न ही ग्राम पंचायत का दफ्तर, इसलिए पिछले 70 साल में यहां कभी झंडा नहीं फहराया गया।
 
देओरे ने कहा कि इस पहल का मकसद सिर्फ पहली बार झंडा फहराना नहीं था, बल्कि लोगों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के बारे में जागरूक करना भी था। देओरे ने कहा कि यहां के आदिवासी बहुत आत्मनिर्भर जीवन जीते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे सभी हमारे संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को जानते हों। उन्होंने यह भी कहा कि मजदूरी करते समय या रोजमर्रा के लेन-देन में अकसर इन लोगों का शोषण होता है या उन्हें लूटा जाता है। इनमें से सदरी जैसी कई बस्तियों में सड़क की सुविधा भी नहीं है।ALSO READ: भारत का इकलौता शहर जहां 15 नहीं 14 अगस्त की रात को फहराया जाता है तिरंगा, जानिए क्या है कारण
 
सदरी के निवासी भुवानसिंह पावरा ने बताया कि गांव के लोग दूसरे इलाकों तक पहुंचने के लिए या तो कई घंटे पैदल चलते हैं या फिर नर्मदा नदी में संचालित नौका सेवा पर निर्भर रहते हैं। 'वाईयूएनजी फाउंडेशन' का स्कूल उनकी जमीन पर संचालित किया जाता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा की कमी यहां की सबसे बड़ी समस्या है, और वह नहीं चाहते कि अगली पीढ़ी भी इसी तकलीफ से गुजरे।
 
इन गांवों तक अब तक बिजली नहीं पहुंची है, इसलिए ज्यादातर घर सौर पैनल पर निर्भर हैं। यहां के लोग पावरी बोली बोलते हैं, जो सामान्य मराठी या हिंदी से काफी अलग है जिससे बाहरी लोगों के लिए उनसे संवाद करना मुश्किल होता है। देओरे ने बताया कि शुरुआत में लोगों का विश्वास जीतना कठिन था, लेकिन जब वे इस काम के उद्देश्य को समझ गए, तो उनका सहयोग आसान हो गया।
 
यह संस्था अपने शिक्षकों के वेतन और स्कूलों के लिए बुनियादी ढांचे की व्यवस्था के लिए दान पर निर्भर है। लेकिन ये स्कूल अनौप4िक होने के कारण यहां सरकारी स्कूलों की तरह मध्याह्न भोजन योजना लागू नहीं की जा सकती। सरकार द्वारा नियुक्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अकसर इन दूरदराज के गांवों में नहीं आते। हालांकि कई जगह स्थिति अलग है जैसे खपरमाल की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आजमीबाई अपने गांव में ही रहती हैं और ईमानदारी से अपना काम करती हैं।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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