बिड़ला-हाउस में छाया मातम

नेहरू की घोषणा से लगा जमघट

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राजधानी स्थित बिड़ला हाउस में 30 जनवरी 1948 को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने महात्मा गाँधी के निधन की औपचारिक घोषणा की तो कुछ ही समय में वहाँ हजारों लोगों का जमघट लग गया था।

गाँधीजी की हत्या के प्रत्यक्षदर्शी रहे 87 वर्षीय कृष्ण देव मदान के अनुसार उन्हें शाम 5:17 बजे गोली मारी गई और आकाशवाणी ने छह बजे के अपने बुलेटिन से 10 मिनट पहले उनके निधन की खबर प्रसारित की। खबर को आकाशवाणी तक पहुँचाने में भी मदान की विशेष भूमिका थी।

मदान बताते हैं कि प्रार्थना स्थल पर गोली लगने के बाद गाँधीजी को उनके कक्ष में ले जाया गया। उनके पास अंतिम समय में सबसे पहले पहुँचने वालों में नेहरू और लार्ड माउंटबेटन थे।

मदान उस वक्त आकाशवाणी के लिए कार्यक्रम अधिकारी के तौर पर गाँधी जी के संबोधनों की रिकॉर्डिंग किया करते थे जिसका प्रसारण हर रोज रात साढ़े आठ बजे होता था। उन्होंने 19 सितंबर 1947 से रिकॉर्डिंग शुरू की थी और तब से 30 जनवरी 1948 को गाँधी जी की हत्या वाले दिन तक नियमित रिकार्डिंग की।

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वह बताते हैं कि जिस वक्त गाँधी जी को गोली मारी गई थी उससे ठीक पहले वह उनकी प्रार्थना सभा के बाद होने वाले नियमित संबोधन को रिकार्ड कर अपने उपकरण समेट रहे थे।

मदान के इस संस्मरण को गाँधी शांति प्रतिष्ठान ने 51 मिनट की एक सीडी का रूप भी प्रदान किया है। घटना के समय 24 साल के रहे मदान के अनुसार, ‘'जवाहर लाल नेहरू कक्ष के दरवाजे पर 5:48 बजे के करीब आए और उन्होंने निजी तौर पर गाँधीजी के निधन की घोषणा की। उस समय संचार के साधन नहीं थे और खबर को लोगों तक पहुँचाने का आज की तरह कोई भी तेज माध्यम नहीं था लेकिन नेहरू की घोषणा के बाद शाम छह बजे तक हजारों लोग बिड़ला हाउस (अब गाँधी स्मृति) के बाहर इकट्ठा हो गए थे।

निधन के कुछ देर बाद नेहरू ने बिड़ला हाउस के मुख्य द्वार पर आकर भाषण भी दिया। इसके भी गवाह रहे मदान के अनुसार, 'नेहरूजी भाषण खत्म करने के बाद बच्चों की तरह बिलख कर रो पड़े। फिर वहाँ मौजूद सभी लोगों की आँखों में आँसू आ गए।' मदान उस पूरे घटनाक्रम को याद करते हुए बताते हैं कि गाँधीजी के हमलावर को वहाँ मौजूद आम लोगों ने पकड़ा था क्योंकि गाँधीजी के निर्देश पर परिसर के अंदर पुलिस के आने की मनाही थी।

बाद में जब उन्होंने गोली की आवाज सुनी तो देखा कि तीन गोली लगने के बाद गाँधी जी गिरे पड़े थे और उनके हमलावर को जो गाँधी जी से कुछ दूरी पर था, वहाँ मौजूद आम लोग पकड़ने का प्रयास कर रहे थे। (भाष ा)

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