हिटलर को पढ़ाया था बापू ने पाठ

30 जनवरी : शहीद दिवस पर विशेष

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सत्य, अहिंसा और भाईचारे का संदेश देते हुए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले बापू ने जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर को भी अहिंसा का महत्व समझाया था और उनसे युद्ध का रास्ता छोड़ने का आग्रह किया था।

महात्मा गाँधी कम्प्लीट वर्क्‍स.. वल्यूम 70 में प्रकाशित बापू के 23 जुलाई 1939 को लिखे पत्र में उन्होंने जर्मन तानाशाह को अहिंसा का महत्व समझाने का प्रयास किया था। बापू ने 24 दिसंबर 1940 को हिटलर को एक विस्तृत पत्र लिखा था जब जर्मनी और इटली पूरे यूरोप पर कब्जा करने की ओर बढ़ रहे थे।

बापू पर शोध करने वाले डॉ. कोएनराद इल्स्ट ने अपनी पुस्तक में लिखा, महात्मा गाँधी ने अपने पहले पत्र की शुरुआत में हिटलर को ‘मित्र’ रूप में संबोधित किया था और एक वर्ग के लोगों की आलोचना के बावजूद हिटलर को लिखे दूसरे पत्र में ‘मित्र’ संबोधन को स्पष्ट करते हुए कहा था, ‘आपको मित्र संबोधन कोई औपचारिकता नहीं है। मैं पिछले 33 वर्षों से दुनिया में मानवता और बंधुत्व के प्रसार के लिए काम करता रहा हूँ, चाहे वह किसी जाति, वर्ग धर्म या रंग से जुड़ा क्यों न हो। मैं सार्वभौम बंधुत्व के सिद्धांत में विश्वास करता हूँ।’

हिटलर को लिखे पत्र में गाँधी ने जर्मन तानाशाह की मदद से भारत की स्वतंत्रता के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। उन्होंने लिखा, ‘हम कभी नहीं चाहेंगे कि देश में ब्रिटिश शासन का खात्मा जर्मनी की मदद से हो बल्कि अहिंसा ऐसा रास्ता है जो दुनिया की सबसे हिंसक शक्तियों के गठजोड़ को भी पराजित करने की क्षमता रखता है।’

हिटलर को लिखे पहले पत्र में बापू ने कहा, ‘मेरे कई मित्र मुझसे मानवता के नाते आपको पत्र लिखने का आग्रह करते रहे हैं। लेकिन मैं उनके अनुरोध को ठुकराता रहा हूँ क्योंकि मुझे ऐसा लगता था कि मेरा आपको पत्र लिखना उचित नहीं होगा। लेकिन युद्ध की स्थिति को देखते हुए मैंने अपनी सोच को पीछे रखते हुए पत्र लिखा है।’

बापू ने लिखा, ‘कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि मैं कोई आकलन नहीं करूँ और आपसे युद्ध टालने के विषय में अपील करूँ चाहे उसका कोई भी नतीजा निकले। इसलिए पूरी विनम्रता से मैं आपसे इस विषय पर आग्रह कर रहा हूँ।’ बापू ने हिटलर को लिखे अपने पत्र में चेक गणतंत्र के प्रभुत्व वाले बोहेमिया-मोराविया क्षेत्र पर जर्मनी के कब्जा करने और पॉलैण्ड के प्रति उसके द्वेष का भी जिक्र किया।

गाँधी ने अपने दूसरे पत्र में जर्मन तानाशाह को लिखा, ‘हम आपके हथियारों के सफल होने की कामना नहीं कर सकते। जिस प्रकार हम ब्रिटेन के उपनिवेशवाद का विरोध करते हैं, उसी प्रकार से हम जर्मनी में नाजीवाद के भी विरोधी हैं। ब्रिटेन का हमारा विरोध करने का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि हम ब्रिटेन के लोगों को नुकसान पहुँचाना चाहते हों या युद्ध में पराजित करना चाहते हो। हम अहिंसा के रास्ते अपनी आजादी हासिल करना चाहते हैं।’ (भाषा)

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