Dharma Sangrah

सत्य, अहिंसा और प्रेम का संगम था गांधीजी का जीवन

Webdunia
Gandhi Jayanti 2020
 
चल पड़े जिधर दो डग जग में, 
चल पड़े कोटि पग उसी ओर।' 
 
गांधी जी का देशभक्तों की पंक्ति में सबसे ऊंचा स्थान है। इतना होते हुए भी गांधी की देशभक्ति मंजिल नहीं, अनंत शांति तथा जीव मात्र के प्रति प्रेम भाव की मंजिल तक पहुंचने के लिए यात्रा का एक पड़ाव मात्र है।
 
गांधी जी ने कहा- 'जिस सत्य की सर्वव्यापक विश्व भावना को अपनी आंख से प्रत्यक्ष देखना हो उसे निम्नतम प्राणी से आत्मवत प्रेम करना चाहिए।' 
 
जीव मात्र के प्रति समदृष्टि/ जीव मात्र के प्रति आत्मतुल्यता के जीवन दर्शन से सत्य, अहिंसा एवं प्रेम की त्रिवेणी प्रवाहित होती है।
 
'वैष्णव जण तो तेणे कहिये, जे पीर पराई जाणे रे'
 
दक्षिण अफ्रीका और भारत में उन्होंने सार्वजनिक आंदोलन चलाए। इन जनआंदोलनों से उन्होंने संपूर्ण समाज में नई जागृति, नई चेतना तथा नया संकल्प भर दिया। उनके इस योगदान को तभी ठीक ढंग से समझा जा सकता है, जब हम उनके मानव प्रेम को जान लें, उनके सत्य को पहचान लें, उनकी अहिंसा भावना से आत्मसाक्षात्कार कर लें।
 
गांधीजी के शब्दों में- 'लाखों-करोड़ों गूंगों के हृदयों में जो ईश्वर विराजमान है, मैं उसके सिवा अन्य किसी ईश्वर को नहीं मानता। वे उसकी सत्ता को नहीं जानते, मैं जानता हूं।


मैं इन लाखों-करोड़ों की सेवा द्वारा उस ईश्वर की पूजा करता हूं, जो सत्य है अथवा उस सत्य की जो ईश्वर है।'

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