सभी जानते हैं कि सिकंदर महान की मौत भी मच्छर के काटने से हुई थी। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को तीन बार मलेरिया हुआ था। वे कई दिन तक बिस्तर पर रहे। इसी दौरान वे एक जिद कर बैठे, बोले मैं दवा नहीं लूंगा। प्राकृतिक तरीके से जो इलाज होता है, उसी से ठीक होकर दिखाऊंगा।
खैर, महात्मा गांधी की मच्छरों के सामने एक न चली। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक, अंत में गांधी जी को 'कुनेन' लेनी पड़ी। वे दवा लेने के विरोध में थे। दूसरे तरीकों से खुद को ठीक करने में उनकी ज्यादा रुचि थी।
आईसीएमआर में मलेरिया पर पेश की गई एक रिपोर्ट के दौरान यह बात सामने आई है। आईसीएमआर के हेड डॉ. रजनीकांत का कहना है कि मलेरिया को जड़ से खत्म करने के लिए भारत ने 2030 तक लक्ष्य निर्धारित किया है। इसे पूरा करने की दिशा में हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं। महात्मा गांधी को भी मलेरिया हुआ था। एक बार नहीं, बल्कि तीन दफा मच्छरों के काटने से वे बीमार पड़ गए थे। उनसे कहा गया कि वे दवा ले लें। गांधी जी ने दवा लेने से इंकार कर दिया। उनका तर्क था कि मलेरिया जैसी बीमारी का इलाज प्राकृतिक तरीके से होना चाहिए।
जैसे आप जहां रहते हैं, उसके आसपास साफ-सफाई रखें। मच्छर पैदा ही न हों, कोई ऐसा उपाय करें। अगर कुछ समय तक यह संभव नहीं है तो कम से कम इतना किया जाए कि मच्छर लोगों को काट न सके। इसके लिए स्थानीय स्तर पर कई तरह की पहल की जा सकती हैं। डॉ. रजनीकांत ने बताया कि गांधी जी को उस वक्त इलाज के लिए आखिर कुनेन लेनी पड़ी। तीनों बार गांधी जी का खून टेस्ट किया गया था, जिसमें मलेरिया की पहचान हुई थी।
आईसीएमआर के वैज्ञानिक डॉ. अनूप का कहना है कि देश-विदेश में मलेरिया का इलाज करने के लिए बहुत से डॉक्टर-वैज्ञानिक 'टीके' की खोज में लगे हैं। फ़िलहाल जो नतीजे सामने आ रहे हैं, वे बहुत उत्साहवर्धक नहीं हैं। उनका सफलता रेट 30-40 फीसदी है। अभी दवा और मच्छरों से बचाव, इन दो तरीकों से ही मलेरिया का इलाज संभव है।