mahatma gandhi death: इस तरह मारी गई थी महात्मा गांधी को गोली, जानिए पूरा वाकिया

WD Feature Desk
गुरुवार, 30 जनवरी 2025 (11:25 IST)
mahatma gandhi punyatithi: 2 अक्टूबर को महात्मा गांधीजी की जयंती मनाई जाती है और 30 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि को बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं क्योंकि 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला भवन में नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थीं। उनकी शवयात्रा में करीब दस लाख लोग साथ चल रहे थे और 15 लाख से ज्यादा लोग रास्ते में खड़े हुए थे। महात्मा गांधी की जब हत्या हुई तो उनकी शवयात्रा में कितने लोग शामिल हुए, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी शवयात्रा 8 किलोमीटर लंबी थी।ALSO READ: महात्मा गांधी पर हिन्दी में रोचक निबंध
 
1. महात्मा गांधी जब 30 जनवरी 1948 की शाम को 5 बजकर 17 मिनट पर दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में संध्याकालीन प्रार्थना के लिए जा रहे थे तभी नाथूराम गोड़से ने पहले उनके पैर छुए और फिर बापू के साथ खड़ी महिला को हटाया और अपनी सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल से एक बाद के एक तीन गोली मारकर उनकी हत्‍या कर दी।
 
2. सफेद धोती पहने गांधी जी पर 3 बार गोलियां दागी गईं, लेकिन आसपास मौजूद लोगों को उस वक्त भी इसका पता नहीं चला। उन्हें गोली लगने का पता तब चला जब उनकी सफेद धोती पर खून के धब्बे नजर आने लगे।
 
3. पहली गोली बापू के शरीर के दो हिस्सों को जोडने वाली मघ्य रेखा से साढ़े तीन इंच दाईं तरफ व नाभि से ढाई इंच ऊपर पेट में घुसी और पीठ को चीरते हुए निकल गई। गोली लगते ही बापू का कदम बढ़ाने को उठा पैर थम गया, लेकिन वे खड़े रहे।
 
4. दूसरी गोली उसी रेखा से एक इंच दाईं तरफ पसलियों के बीच होकर घुसी और पीठ को चीरते हुए निकल गई। गोली लगते ही बापू का सफेद वस्त्र रक्तरंजित हो गया। उनका चेहरा सफेद पड़ गया और वंदन के लिए जुड़े हाथ अलग हो गए। क्षण भर वे अपनी सहयोगी आभा के कंधे पर अटके रहे। उनके मुंह से शब्द निकला हे राम।
 
5. तीसरी गोली सीने में दाईं तरफ मध्य रेखा से चार इंच दाईं ओर लगी और फेफड़े में जा घुसी। आभा और मनु ने गांधीजी का सिर अपने हाथ पर टिकाया। इस गोली के चलते ही बापू का शरीर ढेर होकर धरती पर गिर गया, चश्मा निकल गया और पैर से चप्पल भी। 
 
6. कई लोग उस वक्त यह जान ही नहीं पाए कि हुआ क्या, लेकिन जब देखा, खून से लतपत बापू जमीन पर पड़े हैं, तो आंसुओं की मानो बाढ़ आ गई।
 
7. उन्हें बिरला भवन स्थित उनके खंड में ले जाया गया। आंखें आधी खुली हुई थीं। लग रहा था शरीर में अभी जान बची है। कुछ देर पहले ही बापू के पास से उठ कर गए सरदार पटेल तुरंत वापस आए। उन्होंने बापू की नाड़ी देखी। उन्हें लगा कि नाड़ी मंद गति से चल रही है। इसी बीच वहां हाजिर डॉ. द्वारकाप्रसाद भार्गव पहुंचे।
 
8. गोली लगने के दस मिनट बाद पहुंचे डॉ. भार्गव ने कहा, ‘‘बापू को छोड़ कर गए दस मिनट हो चुके हैं।''कुछ देर बाद डॉ. जीवराज मेहता आए और उन्होंने बापू की मृत्यु की पुष्टि की। इसके बाद गोडसे को गिरफ्तार कर लिया गया।
 
9. न्यायालय में नाथूराम गोडसे द्वारा दिए गए बयान के अनुसार जिस पिस्तौल से गांधीजी को निशाना बनाया गया वह उसने दिल्ली में एक शरणार्थी से खरीदी थी। नाथूराम के साथ ही कुल 8 लोगों को इस मामले में अभियुक्त बनाया गया। ये नाम इस प्रकार है-
 
अंबाला जेल :
1. वीर सावरकर, सबूत नहीं मिलने की वजह से अदालत ने जुर्म से मुक्त किया। 28 मई 1883 को जन्मे विनायक दामोदर सावरकर का देहांत 26 फरवरी 1966 को हुआ। अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का गठन इन्होंने ही किया था।
 
2. शंकर किस्तैया, आजीवन कारावास मिलने के बाद उच्च न्यायालय ने अपील करने पर छोड़ने का निर्णय दिया। हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता।
 
3. दिगम्बर बड़गे, सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया। हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता। इन्होंने सभी अभियुक्तों के नाम बता दिए थे जिसके चलते मामला शीघ्रता से सुलझ गया।
 
4. गोपाल गौड़, आजीवन कारावास हुआ। 1919 में जन्मे नाथूराम गोड़से के भाई और हिन्दू महासभा के एक कार्यकर्ता थे।
 
5. मदनलाल पाहवा, आजीवन कारावास हुआ। हिन्दूमहासभा के एक कार्यकर्ता थे। जिन्होंने गांधी हत्या की तिथि से 10 दिन पूर्व 20 जनवरी 1948 को उनकी प्रार्थना सभा में हथगोला फेंका था।
 
6. विष्णु रामकृष्ण करकरे, आजीवन कारावास हुआ। हिन्दू महासभा के एक कार्यकर्ता जिनका जन्म 1910 को हुआ था और 1974 को इनकी मृत्यु हो गई।
 
7. नारायण आप्टे, 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गयी। 1911 में जन्मे नारायण आप्टे हिन्दूमहासभा के एक कार्यकर्ता थे।
 
8. नाथूराम विनायक गोडसे, 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गयी। नाथूराम गोडसे का जन्म 19 मई 1910 में हुआ था।
 
एक अभियुक्त टैक्सी ड्राइवर सुरजीत सिंह का नाम भी इसमें शामिल है जो कि सभी को टैक्सी से सभा स्थल पर छोड़ता है। सुरजीत सिंह बाद में सरकारी गवाह बन गए थे। 20 जनवरी को जब मदनलाल पाहवा ने बम फेंका था तब वह बम असरकारक नहीं था। पाहवा को गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन तब महात्मा गांधी की सुरक्षा बढ़ाई जाना चाहिए थी। हालांकि ऐसा हो नहीं सका और 30 जनवरी को घटना को अंजाम दिया गया।
 
सजा प्राप्त सभी अभियुक्त यह मानते थे कि भारत विभाजन के समय महात्मा गांधी ने भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों के पक्ष का समर्थन किया था। जबकि हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आंखें मूंद ली थी। गांधी ने भारत और हिंदुओं के साथ धोखा किया था।

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