महावीर ने किया विवाह-बंधन अस्वीकार

डायमंड प्रकाशन
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त्रिशलानंदन महावीर की उम्र 28 वर्ष को पार कर गई थी। उनके माता-पिता उनका विवाह करना चाहते थे लेकिन वे हमेशा इस बात को टाल जाते थे। उनके रूप, गुणों और पराक्रम की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी। अनेक राजा-महाराज अपनी राजकुमारियों के विवाह का प्रस्ताव भेज रहे थे।

ऐसे ही एक दिन कलिंग के राजा जितशत्रु का एक दू‍त उनकी पुत्री यशोदा का विवाह प्रस्ताव लेकर कुंडलपुर आया। दूत ने आने का प्रयोजन बताया और बहुमूल्य उपहार भेंट किए। महाराजा सिद्धार्थ बहुत प्रसन्न हुए। जितशत्रु वैसे भी उनके बहनोई थे। अब उनके पुत्र के ससुर बनकर उनकी पारिवारिक मैत्री और प्रगाढ़ हो जाएगी, ऐसा सोचते हुए उन्होंने स्नेहपूर्वक महावीर को अपने कक्ष में बुलवाया।

रानी त्रिशला महावीर के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- 'पुत्र! महल का यह सूनापन अब मुझसे सहन नहीं होता। हमारी अभिलाषा है कि अब तुम विवाह कर लो। महाराज जितशत्रु का दूत उनकी पुत्री यशोदा का विवाह प्रस्ताव लेकर आया है।'

माँ की बात सुनकर महावीर से एकाएक कुछ बोलते नहीं बना। एकदम से इन्कार करके वे माता-पिता का दिल नहीं दुखाना चाहते थे, अत: केवल मुस्कुराकर चले गए।

उनके मौन को स्वीकृति समझकर राजा-रानी महावीर के विवाह की तैयारी आरंभ कर दी। उधर महावीर स्वयं जितशत्रु के दू‍त के पास गए और बोले- 'हे दूत! मैंने आजन्म अविवाहित रहने के लिए जन्म लिया है। सांसारिक बंधन मुझे मोह में नहीं बाँध सकते। न ही मैं उनके साथ न्याय कर सकता हूँ। अत: महाराज से कहना कि वे क्रोध न करें। बहन यशोदा से कहना कि मैं उनका अपमान करने के लिए ऐसा नहीं कर रहा हूँ। यह तो विधि का लेखा है।'

कलिंग दूत महावीर के विचारों से बहुत प्रभावित हुआ और प्रसन्नतापूर्वक लौट गया। भगवान महावीर के विचारों से प्रेरणा लेकर जितशत्रु और यशोदा ने उनका अनुकरण करते हुए जिन दीक्षा ले ली। ऐसे थे भगवान महावीर।

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