'महावीर' अभी के लिए और सभी के लिए हैं...

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'जिओ और जीने दो' अहिंसा और सहिष्णुता का संदेश


 

- हेमंत उपाध्याय

लगभग 2500 वर्ष पहले अहिंसा और सहिष्णुता की शिक्षा देने वाले जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जीवन ही उनका संदेश है। उनके सिद्धांत और आदर्श वर्तमान संदर्भों में सभी के लिए प्रासंगिक हैं। सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय आदि अनेक उपदेशों को अपनाकर आज भी रामराज्य की स्थापना की जा सकती है।

वर्धमान महावीर का जन्मदिन महावीर जयंती के रुप मे मनाया जाता है। वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान आदिनाथ की परंपरा में चौबीसवें तीर्थंकर थे। वे कठोर तप से इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर जिन अर्थात विजेता कहलाए। संतों का कहना है कि भगवान महावीर अभी के लिए हैं और सभी के लिए हैं....

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कोई भी सुखी नहीं रह सकता

भगवान महावीर ने कहा था कि दूसरों को दुखी बनाकर कोई सुखी नहीं रह सकता। महावीर से बढ़कर इस जगत में कोई साधना नहीं है। इसमें असीम सुख, शांति और तृप्ति के साथ ही जीवन की ऊंचाइयों और गहराइयों को छूने की शक्ति है।

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एक होकर आगे बढ़े जैन बंध ु

महावीर जंयती के दिन दिगंबर एवं श्वेतांबर जैन बंधुओं को एक होकर आगे बढ़ने का संकल्प लेना चाहिए। अपनी मान्यताओं और अपने अहम को ताक में रखकर एक मंच पर आकर समाज कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए।

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धन से नहीं मन से धर्म ह ो

महावीर के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। आज धर्म और धर्माचार्यों पर अंगुली उठती है। ऐसे विषम माहौल में समाजजनों को उन लोगों को आगे लाना चाहिए जो सच्चे साधुसंत हैं और निःस्वार्थ भाव से समाज व धर्म की सेवा कर रहे हैं।

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अहिंसा और मैत्री आज की जरूर त

अहिंसा और मैत्री की आज दुनिया को जरूरत है और भगवान महावीर ने यही संदेश दुनिया को दिया था। आज धर्म में दिखावा और आडंबर अधिक आ गया है। अपना नाम गुप्त रखकर गरीबों और पीड़ितों की सेवा करें।

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अहिंसा सब समस्याओं का समाधा न

विश्व की समस्याओं का एक ही समाधान है- भगवान महावीर के अहिंसा के सिद्धांत का पालन करना। भगवान महावीर ने कहा था- मैं अपने भक्तों को ही अपनी परतंत्रता से मुक्ति देता हूं। इस स्वतंत्रता का अर्थ हमने बदल दिया।

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' मैं और मेरा' से मुक्त करें अपने क ो

महावीर सभी के लिए हैं। मनुष्य यदि आज मैं और मेरा- इन दो चीजों से अपने को मुक्त कर ले तो मोक्ष संभव है। बच्चों को हमेशा सुसंस्कार दें। जीवन में पहला स्थान माँ का, दूसरा पिता और तीसरा स्थान गुरु का होता है। त्याग जीवन को उन्नत बनाता है।

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अलगाव की नीति खतरना क

तीर्थंकर महावीर ने विश्व मैत्री का अनुपम सूत्र दिया है। नमक की भांति जियो जो सबका स्वाद बढ़ाता है, शकर की तरह घुल जाओ जो सबको मधुरता देती है और प्राण वायु यानि ऑक्सीजन की तरह जियो यानि सबको जीवन दो। यही भगवान महावीर का संदेश है ।

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