दुनिया को दया, प्रेम, करुणा व अहिंसा की राह दिखाने वाले भगवान महावीर स्वामी की जयंती

राजश्री कासलीवाल
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्मदिवस को आज महावीर जयंती के नाम से जाना जाता है। जैन समाज द्वारा पूरे भारत में भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप मे 'महावीर जयंती' मनाई जाती है। महावीर जयंती के साथ-साथ इस दिन को महावीर जन्मकल्याणक नाम से के भी जाना जाता है। चैत्र माह के 13वें दिन यानी चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को जैन दिगंबर और श्वेतांबर एकसाथ मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।
 
 
आज करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है। ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुंडलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहां तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस (त्रयोदशी) को वर्धमान का जन्म हुआ। यही वर्धमान बाद में महावीर स्वामी बना। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का आज का जो बसाढ़गांव है, वही उस समय वैशाली के नाम से जाना जाता था।
 
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओत-प्रोत था। उन्होंने एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। पूरी दुनिया को उपदेश दिए।
 
 
उनके माता-पिता जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (पार्श्वनाथ महावीर से 250 वर्ष पूर्व हुए थे) के अनुयायी थे। महावीर जब शिशु अवस्था में थे, तब इन्द्रों और देवों ने उन्हें सुमेरू पर्वत पर ले जाकर प्रभु का जन्मकल्याणक मनाया। महावीर स्वामी का बचपन राजमहल में बीता

युवावस्था में यशोदा नामक राजकन्या से महावीर का विवाह हुआ तथा प्रियदर्शना नामक उन्हें एक पुत्री भी हुई। जब वे 28 वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। बड़े भाई नंदीवर्द्धन के आग्रह पर महावीर 2 वर्षों तक घर में रहे। आखिर 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा ग्रहण की। 
 
महावीर ने इस अवधि में तप, संयम और साम्य भाव की साधना की और पंच महाव्रतरूपी धर्म चलाया। उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था कि इन्द्रियों, विषय-वासनाओं के सुख दूसरों को दुख पहुंचा करके ही पाए जा सकते हैं। अत: उन्होंने सबसे प्रेम का व्यवहार करते हुए दुनियाभर को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। 
 
महावीर कहते हैं कि धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। महावीरजी कहते हैं- 'जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।' 
 
भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया।
 
उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके अनुसार ये सिद्धांत सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा हैं। उन्होंने अपने कुछ खास उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाने की कोशिश की। अपने अनेक प्रवचनों से दुनिया का सही मार्गदर्शन किया।
 
महावीर स्वामी के पंचशील सिद्धांत 
 
सत्य : सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
 
अहिंसा : इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पांच इंन्द्रिय वाले जीव) आदि की हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।

 
अपरिग्रह : अपरिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं कि जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह के माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
 
ब्रह्मचर्य : महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष, स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।

 
क्षमा : क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूं। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूं। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूं।'
 
वे यह भी कहते हैं- 'मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पापवृत्तियां प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियां की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियां विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।'

 
उन्होंने अपने जीवनकाल में अहिंसा का भरपूर विकास किया। महावीर को 'वर्द्धमान', 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है। पूरे विश्व को अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाले भगवान महावीर ने बहोत्तर वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि में पावापुरी नगरी में मोक्ष प्राप्त किया। भगवान महावीर के निर्वाण के समय उपस्थित 18 गणराजाओं ने रत्नों के प्रकाश से उस रात्रि को आलोकित करके भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

तुलसी विवाह देव उठनी एकादशी के दिन या कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन करते हैं?

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

आंवला नवमी कब है, क्या करते हैं इस दिन? महत्व और पूजा का मुहूर्त

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

सभी देखें

धर्म संसार

11 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

11 नवंबर 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Saptahik Muhurat 2024: नए सप्ताह के सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त, जानें साप्ताहिक पंचांग 11 से 17 नवंबर

Aaj Ka Rashifal: किन राशियों के लिए उत्साहवर्धक रहेगा आज का दिन, पढ़ें 10 नवंबर का राशिफल

MahaKumbh : प्रयागराज महाकुंभ में तैनात किए जाएंगे 10000 सफाईकर्मी

अगला लेख