महावीर ने जब विषधर को शांत देखा, तो बोले, 'नागराज, मैं तुम्हारे समक्ष आत्मसमर्पण करता हूं, मेरी देह को अपना आहार मानो।' अब तो सर्प को आत्मग्लानि हुई कि उसने व्यर्थ ही एक देव पुरुष को काटा है। उसने तब बांबी में अपना सिर डाल दिया। लोग यह देख विस्मित हो गए।
उन्होंने यह जानने के लिए कि वह मृत है अथवा जीवित, उसे पत्थर से मारना शुरू किया किंतु वह शांत ही पड़ा रहा। तब तो लोग उसे नाग देवता मान कर उसकी पूजा करने लगे और उसके सम्मुख दही और दूध की कटोरियां रखी जाने लगीं।
इससे वहां चींटियां इकट्ठी हो गईं और सर्प को शांत देखकर चींटियों ने उसे अपना आहार बना लिया। विषधर पर महावीर की साधुता का प्रभाव पड़ चुका था। वह शांत ही रहा और उसने चींटियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। फलस्वरूप उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई ।