आइए, चलें अंधकार से प्रकाश की ओर

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- डॉ. श्रीनाथ सहाय
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भारतीय संस्कृति में पर्व, त्योहार का विशेष स्थान है। ये हमारे रहन-सहन, हमारी दिनचर्या में पूर्णतः रचे-बसे हैं। इन त्योहारों की तिथि का निश्चय कोई अनायास ही नहीं, बल्कि काल-गणना के सुनिश्चित आधार पर किया गया है।

आकाश मंडल में अनेकानेक ग्रह, नक्षत्र विद्यमान हैं। इनकी स्थिति सदैव एक समान नहीं होती। पृथ्वी स्वयं अपना स्थान परिवर्तन करती रहती है। गोलाकार पृथ्वी का कोई भाग घूमते-घूमते जब सूर्य के सम्मुख पहुँच जाता है तो यह सामने वाला भू-भाग प्रकाशवान हो जाता है। इसे हमदिन कहते हैं। पीछे का भाग जो प्रकाशरहित रहता है, वहाँ रात होती है। पृथ्वी की इस गति को हम 'दैनिक गति' कहते हैं।

इसी प्रकार पृथ्वी की एक 'वार्षिक गति' भी होती है, जब पृथ्वी अपनी कक्षा में घूमते-घूमते सूर्य की परिक्रमा पूरी कर लेती है। यह अवधि एक वर्ष कहलाती है। इसी वार्षिक गति पर आधारित है ऋतु परिवर्तन। विभिन्न ऋतुओं की निश्चित अवधि, इनका समय, मास तथा वर्ष की गणनाभी इसी आधार पर की जाती है।

काल-गणना के अंतर्गत, इसी क्रम में एक गणना 'अयन' के संबंध में भी की जाती है। इस गणना-क्रम में सूर्य की स्थिति उत्तरायण एवं दक्षिणायण की होती है। जब सूर्य की गति दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर होती है तो हम इस स्थिति को उत्तरायण कहते हैं और जब उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर होती है तो दक्षिणायण कहते हैं।

जब राशि के अंतर्गत सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है तो उसे हम संक्रमण-काल कहते हैं। प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण होकर मकर नामक राशि में प्रवेश करता है। अतः इस दिवस को हम 'मकर-संक्रांति' कहते हैं। मानव जीवन में मकर-संक्रांति का अत्यधिक महत्व है। इसकी महत्ता दो विशेष कारणों से है :
  जब सूर्य की गति दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर होती है तो हम इस स्थिति को उत्तरायण कहते हैं और जब उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर होती है तो दक्षिणायण कहते हैं।      


* भौगोलिक कारण : सूर्य के उत्तरायण होने के साथ-साथ प्रकाश में वृद्धि भी प्रारंभ होती है। हम अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होते हैं। सूर्य का प्रकाश अधिक समय तक विद्यमान रहता है। अतः हम इस स्थिति को दिन के बड़े होने की संज्ञा देते हैं। रात्रि छोटी होती है। प्रकाश हमें शक्ति प्रदान करता है, ऊर्जा देता है, ओजस्वी बनाता है, हमारी कार्यक्षमता में वृद्धि करता है। हम कार्य अधिक समय तक करते हैं। चूँकि पृथ्वी का अधिकांश भू-भाग तथा अधिकांश आबादी गोलार्ध में स्थित है, अतः संसार के अधिकांश लोग इस स्थिति से लाभान्वित होते हैं, समृद्ध बनते हैं।

* धार्मिक कारण : मकर-संक्रांति की महत्ता का दूसरा अति महत्वपूर्ण कारण धर्म के आधार पर है। ऐसे काल-विशेष को, जब सूर्य देव उत्तरायण दिशा में हों, हमारे धर्म शास्त्रों में अधिक मान्यता दी गई है। इसे सर्वथा पवित्र तथा शुभ माना गया है।

स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता के आठवें अध्याय में कहा है-

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्‌।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म बह्मविदो जनाः॥ (24)

इसी संदर्भ में आगे का श्लोक है-

धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः
षणमासा दक्षिणायनम्‌
तत्र चान्द्रमसं ज्योति-
योगी प्राप्य निर्वतते॥ (25)

तात्पर्य यह है कि ऐसे छः मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। (श्लोक 24)

इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। (श्लोक 25)

कहते हैं, सूर्य देव के उत्तरायण होने के महत्व को मानकर, इसके फल की प्राप्ति हेतु भीष्म ने अपना प्राण तब तक रोककर रखा जब तक मकर-संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण की स्थिति नहीं आ गई।

इस प्रकार इस पर्व में सूर्योत्सव का आभास सन्निहित है। साथ ही इसमें सामाजिक सहभागिता तथा मानव कल्याण का संदेश भी है। इस दिन लोग पवित्र पतित पावनी गंगा में स्नान कर (या किसी अन्य नदी में भी) अन्न, वस्त्र तथा रुपए-पैसे गरीबों को दान करते हैं। ऐसे त्योहार ही तोहमें एक-दूसरे से जोड़ते हैं।
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