मकर संक्रांति : उत्तरायण पर्व

Webdunia
- रेणुका शास्त्री
ND
पुरुष प्रधान देश होने के कारण हमारे त्योहार तक पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है। दीपावली जैसे बड़े पर्व पर साफ-सफाई में महिलाओं की भूमिका जितनी अहम होती है, क्या पटाखे फोड़ने में उन्हें उतनी स्वतंत्रता मिलती है? मगर कहीं-कहीं परंपरागत रूप से आज तक कुछ त्योहारों में महिलाओं का शामिल होना, ऊधम करना, मौज-मस्ती करना पुरुषों की तरह वाजिब है। यहाँ बात हो रही है मकर संक्रांति पर्व की।

जी हाँ, गुजरात में मकर संक्रांति का पर्व महिलाओं के लिए भी मौज-मस्ती का दिन होता है। हालाँकि अन्य प्रदेशों में इस दिन गली-गली गिल्ली-डंडा खेला जाता है, मगर गुजरात में घर-घर लोग पतंगबाजी का मजा लेते हैं। इस दिन पूरा परिवार घर की छत पर जमा हो जाता है। यदि आसमान से नीचे देखा जा सके तो पता चलता है कि सिर्फ पुरुष वर्ग ही नहीं महिलाएँ भी पतंग उड़ा रही हैं।

गुजरात में महिलाओं को पतंग उ़ड़ाना बचपन से सीख में मिलता है। तिल्ली के लड्डू, मूँगफली की पट्टी बनाने के साथ वे पतंगबाजी में भी निपुण होती हैं। मकर संक्रांति (गुजरात में इसे 'उत्तरायण' पर्व कहा जाता है) के आते ही पूरा परिवार पतंग और डोर लिए घर की छत पर जा पहुँचता है और जब वापस नीचे उतरता है तो रात हो चुकी होती है। हालाँकि रात में भी कैंडल पतंग संक्रांति की रात का संदेश देती तारों के बीच झिलमिलाती है।
  गुजरात में मकर संक्रांति का पर्व महिलाओं के लिए भी मौज-मस्ती का दिन होता है। हालाँकि अन्य प्रदेशों में इस दिन गली-गली गिल्ली-डंडा खेला जाता है, मगर गुजरात में घर-घर लोग पतंगबाजी का मजा लेते हैं। इस दिन पूरा परिवार घर की छत पर जमा हो जाता है।      


गुजरात की हर सोसायटी (कॉलोनी) घर की छत पर भरी नजर आती है। इसमें अपने पिता, भाई या पति, ससुर, देवर, जेठ के साथ पतंग उड़ाती घर की महिला में भी वही उत्साह देखने को मिलता है, जो कि पुरुषों में। पूरे उल्लास के साथ आसमाँ पर छेड़खानी देर तक की जाती है। आमतौर पर अपनी सखी-सहेलियों के साथ मौज-मजा, हँसी-ठिठोली करने वाली हर लड़की इस दिन अपनी पतंग से किसी दूसरी पतंग की छेड़खानी करती है। फिर किसी एक सोसायटी की पतंग दूसरी सोसायटी की जयाबेन काट देती है और खुशी के मारे उछल पड़ती है- 'काट्यो छे' और विजेता-सी चमक चेहरे पर आ जाती है।

हमारे समाज में महिलाओं की ऐसी स्वतंत्रता के पर्व चंद ही हैं। मगर बावजूद इसके समय बदलने के साथ पतंगबाजी के इस पर्व में परिवर्तन नहीं आया। इसके प्रति अरुचि नहीं आई। गुजरात का हर घर संक्रांति के पहले से ही डोर और पतंग से भरने लगता है। हाँ, खरीददारी जरूर भैया या पप्पा करते हैं मगर जब उड़ाने की बारी आती है तो घर की महिलाओं के मँजे अलग होते हैं, उन्हें माँगकर 'कुछ देर' पतंग नहीं उड़ानी पड़ती।

यही तो है भारतीय पर्व का स्वरूप। खास बात यह कि इस पूरे पतंगबाजी के दौर में कहीं कोई छींटाकशी या फब्ती नहीं होती। किसी लड़के की पतंग किसी लड़की ने काटी हो या इसके उलट, एक शोर वातावरण में होता है और विजयी पक्ष थोड़ा उल्लासित हो जाता है तो दूसरा पक्ष मुस्कराकर अपनी बची डोर समेटने लग जाता है।

उत्तरायण के दिन पूरा परिवार छत पर एकत्र होकर एक संदेश और दे जाता है। वह यह कि आनंद के पल साथ-साथ बिताएँ, कुछ समय के लिए ही सही सोसायटी के दूसरे लोगों के साथ थोड़ी गपशप हो जाए, थोड़ी चिल्लाचोट हो। आखिर मौज-मजा का दौर फिर पूरे साल थोड़े ही मिलता है।
Show comments

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से शुरू होंगे इन 4 राशियों के शुभ दिन, चमक जाएगा भाग्य

Astrology : एक पर एक पैर चढ़ा कर बैठना चाहिए या नहीं?

Lok Sabha Elections 2024: चुनाव में वोट देकर सुधारें अपने ग्रह नक्षत्रों को, जानें मतदान देने का तरीका

100 साल के बाद शश और गजकेसरी योग, 3 राशियों के लिए राजयोग की शुरुआत

Saat phere: हिंदू धर्म में सात फेरों का क्या है महत्व, 8 या 9 फेरे क्यों नहीं?

Shiv Chaturdashi: शिव चतुर्दशी व्रत आज, जानें महत्व, पूजा विधि और मंत्र

Aaj Ka Rashifal: आज किसे मिलेगा करियर, संपत्ति, व्यापार में लाभ, जानें 06 मई का राशिफल

06 मई 2024 : आपका जन्मदिन

06 मई 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Weekly Forecast May 2024 : नए सप्ताह का राशिफल, जानें किन राशियों की चमकेगी किस्मत (06 से 12 मई तक)