संक्रांति : जीवन का महत्वपूर्ण पर्व

मकर संक्रांति की शुभकामनाएँ!

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- डॉ. रामकृष्ण डी. तिवार ी
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' सुवति कर्मणि लोकं प्रेरयति'
अर्थात् जो (उदय मात्र से) संपूर्ण विश्व को अपने-अपने कर्म में प्रवृत्त करते हैं, वह आदित्य ही हैं।

अयन के परिवर्तन से ही देवताओं के दिन व रात्रि की जानकारी मिलती है। कर्क में रवि के प्रवेश से दक्षिणायन व देवों की रात तथा मकर में प्रवेश से देवों का दिन प्रारंभ होता है। अतः मकर संक्रांति देवता अर्थात मंगल, कल्याण, अनंत शक्ति एवं प्रकाश का काल प्रारंभ होता है, जिससे समस्त स्थावर व जंगम विश्व को ऊर्जा मिलना आरंभ होती है।

इस शक्ति को रचनात्मक-सकारात्मक व उपयोगी बनाने हेतु इस देवोदय दिवस काल में दान, उपासना, साधना, स्नानादि शुद्धि की क्रियाओं को प्रधान स्थान दिया है। उसका प्रभाव सामान्य समय से सौ गुना अधिक है।

सूर्य ने संज्ञा से विवाह किया। जब संज्ञा उनके तेज को सह नहीं सकने पर अपनी छाया उनके पास छोड़कर पिता के घर आ गईं तब छाया के गर्भ से शनि का जन्म हुआ। पुनः उनका संज्ञा से मिलन अश्वरूप में हुआ तो संज्ञा ने उनके तेज से अपनी परेशानी व्यक्त की, तब संज्ञा की कामना पूर्ण करते हुए सूर्य ने अपने तेज को बारह भागों में विभक्त किया। अतः सूर्य का तेज इन भागों में राशि प्रवेश से जाना जाने लगा। इसमें उनका मकर राशि खंड ऐसा भाग है, जब उनका तेज सबको प्रियकारक होता है।

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इसलिए भी इस संक्रांति का अधिक महत्व है। दुर्वासा ऋषि से प्राप्त वशीकरण मंत्र की परीक्षा के लिए कुंती ने सूर्य का आह्वान किया, जिससे उनका कौमार्य भी भंग नहीं हुआ और परम तेजस्वी पुत्र कर्ण का जन्म हुआ। यह काल भी उत्तरायन का काल था।

सूर्य का एक नाम 'मोक्ष द्वार' भी है। वसु के आठवें अंशरूप 'भीष्मजी' जब महाभारत में परास्त होकर गिर पड़े, तब उन्हें प्राप्त इच्छा-मृत्यु के वरदान से वे उत्तरायन में अपने प्राण त्यागने के लिए शरशय्या पर रहकर उस समय का इंतजार करके मकरार्क होने पर अपने शरीर को छोड़कर वसुगण के समीप गए।

इस प्रकार अनेक दृष्टांत व तथ्य मकर में सूर्य के राशि प्रवेश के हमारे ग्रंथों में उपलब्ध हैं। यह पर्व मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन प्रातः सूर्योदय के पूर्व नित्यकर्म से निवृत्त होकर अपने गुरु, पितृ, इष्टदेव, कुल देव, सूर्य देवता को जल देकर प्रारंभ करना चाहिए।

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इसके पश्चात इष्टदेव, गुरु मंत्र व गणपतिजी व सूर्य देव के मंत्र जप व पाठ करना चाहिए। इस दिन तिल, कम्बल, ऊनी वस्त्र, चावल, मूँग, गुड़, ताम्रपत्र, मुद्रा के दान का महत्व है। इस दिन जल में तिल्ली मिलाकर स्नान करें, तिल्ली का लेप शरीर पर लगाकर स्नान करें, तिल्ली मिली समिधा से हवन करें, तिल्ली जल में मिलाकर उस जल से तर्पण करें।

खाद्य सामग्री में तिल्ली के व्यंजन का उपयोग करें एवं तिल्ली व उससे बने पदार्थों का दान करें। 15 जनवरी को भी संक्रांति मनाई जाएगी।

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