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मंगल और शनि का क्या है आपस में संबंध?

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मंगल और शनि का हमारे जीवन पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है। मंगल का वार मंगलवार और शनि का वार शनिवार बताया गया है। परंतु शनिवार के दिन भी मंगल की पूजा का महत्व माना गया है। ज्योतिष एवं पौराणिक मान्यता के अनुसार मंगलदेव और शनिदेव का आपस में क्या है संबंध। कुंडली में जब दोनों की युति या आपसी दृष्‍टि संबंधी होता है तो क्या माना जाता है। मंगलदेव और शनिदेव की आपसी संबंध पर जानिए कुछ खास।
 
ज्योतिष- Astrology : पंचधा मैत्री चक्र के अनुसार मंगल के मित्र ग्रह सूर्य, गुरु और केतु हैं, जबकि शत्रु ग्रह शनि और राहु माना गए हैं। यदि हम शनि की बात करें तो इसके मित्र शुक्र, राहु और केतु है जबकि सूर्य और केतु शत्रु ग्रह है। यानी मंगल यहां पर समभाव में है। यानी मंगल अपनी ओर से शनि से शत्रुता नहीं रखता है लेकिन शनि ग्रह मंगल से शत्रुता रखता है।
 
लाल किताब- Lal kitab: हालांकि लाल किताब के अनुसार मंगल के सूर्य, चंद्र और गुरु मित्र माने गए है जबकि बुध और केतु शत्रु ग्रह माने गए हैं और शुक्र, शनि और राहु इसे सम भाव रखते हैं। शनि के बुध, शुक्र और रा‍हु मित्र है जबकि सूर्य, चंद्रमा और मंगल इसके साथ शत्रुता का भाव रखते हैं। बृहस्पति और केतु इसके साथ समभाव रखते हैं। यानी मंगल और शनि समभाव में हैं परंतु मंगल शत्रुता रखता है शनि से।
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शनि और मंगल का कार्य- Shani mangal : शनिदेव को ज्योतिष शास्त्र में कर्मफलदाता, न्यायाधीश और कलियुग का दंडाधिकारी कहा गया है, जबकि मंगल को ग्रहों का सेनापति कहा गया है। मंगल का संबंध हमारे साहस, पराक्रम और ऊर्जा से है।
 
शनि और मंगल का संबंध- : कुंडल में शनि मंगल के बीच 3 तरह से संबंध बनता है। पहला जब यह किसी भाव या राशि में एक साथ विराजमान हो तो उसे युति संबंध कहते हैं। दूसरे जब वे एक दूसरे को पूर्ण दृष्टि से देखते हों तो दृष्टि संबंध और तीसरे जब ये दोनों एक दूसरे की राशि में गोचर करें तो उसे राशि परिवर्तन संबंध कहते हैं। सभी का अलग अलग अलग प्रभाव होता है।
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यु‍ति संबंध का असर- Shani and mangal yuti : शनि और मंगल की इस युति से द्वंद्व योग का निर्माण होता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में शनि और मंगल की युति से स्वभाव में उग्रता और जड़ता देखी जाती है। देश दुनिया में भी यह देखने को मिलता है। यह एक ही राशि में विराजमान होकर बलवान हो जाते हैं और युद्ध को जन्म देते हैं। यह जिस भी भाव में होती है उस भाव का फल खराब कर देती है। मृत्यु के कारक शनि और रक्त के कारक ग्रह मंगल एक दूसरे के साथ युति में होना बहुत सी परेशानियों का कारण बन सकता है। लाल किताब में शनि और मंगल की युति को राहु माना गया है। यानी यहां पर इन दोनों ग्रहों की बजाय अब क्रूर किस्म का राहु है।
 
दृष्टि संबंध का प्रभाव- shani mangal ka drishti sambandh : मंगल और शनि का दृष्‍टि संबंध विध्वंसक योग बनाता है। इसे इस तरह समझे कि मंगल को अग्नि स्वभाव कहा गया और शनि को क्रूर ग्रह माना जाता जिसे तेल पसंद है। यानी अग्नि और तेल का संबंध विध्वंस ही पैदा करेगा। यह व्यक्तिगत जीवन में उत्पात मचाता है, बल्कि देश-दुनिया में भी हिंसक तथा उत्पाती घटनानों में वृद्धि होती है। शनि मंगल का दृष्टि संबंध बनना आपदाओं का कारण हो सकता है। यह भी कहते हैं कि मंगल आग है और शनि हवा। जब जलती आग पर हवा का असर होता है तो आग और भड़क जाती है। ऐसे में मंगल की क्रूरता में शनि वृद्धि करता है।  
 
राशि परिवर्तन संबंध- shani mangal ka Rashi parivartan : कई बार यह देखने को मिलता है कि यह एक दूसरे के मित्र होकर लाभ पहुंचाते हैं, क्योंकि यह दोनों अपनी राशियां बदलकर बैठे होते हैं। लेकिन यह डिपेंड करता है कि वह किस भाव में बैठे हैं। यदि शनि मंगल 3, 6, 11, भाव में बैठकर राशि परिवर्तन करे तो कुछ अच्छा फल भी कर देते हैं।
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पौराणिक तथ्‍य- shani mangal pauranik tathya : मंगलदेव को भूमि और श्रीहरि विष्णु का पुत्र कहा गया है, जबकि शनिदेव सूर्य एवं छाया के पुत्र हैं। शनिदेव ने शिवजी की तपस्या करके ग्रहों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है जबकि मंगलदेव देवताओं के सेनापति हैं। 
 
शनि मंगल से बचने के उपाय- shani mangal ke upay : शनि और मंगल की युति, दृष्‍टि संबंध, राशि परिवर्तन, साढ़ेसाती, ढैया या मंगल दोष से बचने के लिए मंगलदेव की शरण में ही जाना होता है क्योंकि उन्हीं की कृपा से ही उपयोक्त सभी तरह के दोष से मुक्ति मिलती है। भारत में महाराष्ट्र के जलगांव के पास अमलनेर में मंगलदेव का प्राचीन मंदिर है जहां पर इन सभी दोषों का निदान होता है।

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