माँ और शिशु का रिश्ता

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माँ और शिशु में एक ऐसा रिश्ता है, जो कि अनूठा है, अनमोल है। इस रिश्ते की महत्ता को शब्दों में बयान करना कठिन है। यह रिश्ता उस दिन कायम हो जाता है, जिस दिन शिशु माँ की कोख में जन्म लेता है और नौ महीने तक उसी में रहता है, वही उसका घर होता है। इस छोटी सी जगह में वह अपने आप को बहुत ही सुरक्षित महसूस करता है।

इस समय वह पूर्ण रूप से अपनी माँ पर निर्भर रहता है। भोजन भी माँ के द्वारा ही प्राप्त करता है। वह अपनी माता की हार्टबिट आवाज को सुन सकता है। शरीर के कार्यों को अनुभव कर सकता है, रोशनी को देख सकता है।

आखिरी के कुछ महीनों में आपके बेबी को आपके संरक्षण की विशेष आवश्यकता होती है। आपके डर, तनाव, चिन्ता, दुःख आदि का उस पर विशेष प्रभाव पड़ता है और इसके कारण कई बार समय से पूर्व प्रसव हो जाता है। अतः आपको शांत, प्रसन्न व तनावरहित रहना चाहिए।

जन्म का समय बहुत ही बुरा होता है। जन्म का समय शिशु को भूकंप की तरह कष्टदायी प्रतीत होता है, क्योंकि माँ के शरीर में उत्पन्न दर्द व अकुंचन प्रसरण की क्रिया उसे बाहर की ओर धकेलती है।

बाहर आते ही बहुत प्रकाश, बहुत अधिक तेज आवाज, ठंडी हवा आदि का अनुभव होने लगता है और वह अपनी जानी-पहचानी माँ से अलग हो जाता है। अब वह स्वयं साँस लेता और भोजन ग्रहण करता है।

शिशु के आते ही घर में खुशियाँ छा जाती हैं। माता-पिता, दोस्त, रिश्तेदार हर कोई उसे गोद में लेना चाहता है- प्यार-दुलार करना चाहते हैं, परन्तु यह बेबी के लिए हानिकारक हो सकता है, क्योंकि शिशु को इससे इन्फेक्शन होने की संभावना अधिक रहती है।

नवजात शिशु को तो यह संसार दैत्यों से भरा हुआ लगता है। माता-पिता दो ही पर वह निर्भर रहता है। वह आपकी चिंता, थकान, निराशा किसी को भी नहीं समझ सकता है। वह तो अपनी किसी भी बात को प्रेषित करने में असमर्थ है। वह सिर्फ रोकर ही अपनी भूख, प्यास, गर्मी, ठंड आदि का एहसास करवा सकता है।

यदि बच्चा रो रहा है, तो हर समय उसका ध्यान रखें यह जरूरी नहीं, क्योंकि बड़े बुजुर्ग कहते हैं रोने से बच्चे का व्यायाम होता है, परन्तु ऐसा भी नहीं करें कि आप बच्चे को गोद में ही न लें। आपके शिशु को आपके स्पर्श व स्नेह की ही सबसे अधिक जरूरत है। कुछ भी हो उसकी सुरक्षा का पूर्ण ध्यान रखना आपकी ही जिम्मेदारी है।

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