माँ का दूध सर्वोत्तम

हर बूँद-बूँद में प्राण

गायत्री शर्मा
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माँ और बच्चे का रिश्ता शरीर के साथ-साथ भावनाओं का भी होता है। गर्भ में शिशु माँ के शरीर का एक हिस्सा होता है। नौ महीने गर्भ में शिशु का पोषण करने वाली माँ का उससे एक आत्मीय लगाव हो जाता है।

माँ का दूध बच्चे के लिए अमृत पेय होता है, जो उसे जीवनदान देता है। माँ के पौष्टिक दूध से शिशु के शरीर का विकास होता है। इसी गुणकारी दूध को पीकर नवजात शिशु हृष्ट-पुष्ट और बुद्धिमान बनता है।

इस अमृतकारी दूध में खनिज, एंटीबॉडीज व जरूरी पोषक तत्व आदि होते हैं जिससे शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

  ब्रेस्ट फीडिंग से महिला की बच्चेदानी भी अपनी वास्तविक स्थिति में आ जाती है। इससे महिला का मासिक चक्र भी सामान्य हो जाता है। ब्रेस्ट फीडिंग से माँ और बच्चे का एक अटूट रिश्ता कायम होता है, जो उनके संबंधों को बेहतर और मधुर बनाता है।      
* कब पिलाएँ दूध :-
सामान्यत: 6 महीने तक बच्चा कोई ठोस आहार नहीं ले सकता है। अत: वह अपने भोजन के लिए माँ के दूध पर ही निर्भर रहता है।

शिशु के जन्म के 3-4 घंटे बाद से ही माँ का दूध पिलाना चाहिए तथा शिशु के कम से कम 6 माह के होने तक उसे माँ का दूध पिलाना जारी रखना चाहिए।

* बीमारियों से सुरक्षा :-
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत में किए गए सर्वे के अनुसार स्तनपान से डायरिया का खतरा एक तिहाई तक घट जाता है।

आँकड़ों के मुताबिक विकासशील देशों में प्रतिवर्ष लगभग बीस लाख बच्चे इस भयावह बीमारी से मौत की नींद सो जाते हैं। इसके अलावा माँ का दूध शिशु को कुपोषण, अस्थमा से भी बचाता है।

* कुशाग्र बुद्धि वाला बच्चा :-
माँ के दूध में पाया जाने वाला 'फेटी एसिड' प्रतिभा बढ़ाने वाला होता है। कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक 6 साल तक के बच्चों पर ‍ क िए गए अध्ययन में पाया गया कि जिन बच्चों ने माँ का दूध पिया होता है, उनका 'आई. क्यू' बोतल का दूध पीने वाले बच्चों के मुकाबले कई गुना अधिक होता है।

* माँ को फायदा :-
आजकल अक्सर माताएँ बच्चों को अपना दूध पिलाने से कतराती हैं क्योंकि अपने बच्चे से ज्यादा चिंता अपने फिगर की होती है। ऐसी माताओं को यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक शोध के मुताबिक नवजात शिशु को अपना दूध पिलाने से धीरे-धीरे माता की वह अतिरिक्त चर्बी भी हटती है। जो गर्भावस्था के दौरान शरीर पर चढ़ती है।

ब्रेस्ट फीडिंग से महिला की बच्चेदानी भी अपनी वास्तविक स्थिति में आ जाती है। इससे महिला का मासिक चक्र भी सामान्य हो जाता है। ब्रेस्ट फीडिंग से माँ और बच्चे का एक अटूट रिश्ता कायम होता है, जो उनके संबंधों को बेहतर और मधुर बनाता है।

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