शैतान बच्चे तौबा-तौबा

हाइपरएक्टीविटी भी है एक बीमारी

गायत्री शर्मा
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बच्चे शैतान होते है लेकिन कुछ बच्चे ऐसे होते है। जो माँ-बाप की नाक में दम कर देते है। जब बच्चों की शैतानी हद से ज्यादा बढ़ जाए तो उन पर अंकुश लगाना जरूरी हो जाता हैं। नहीं तो उनकी शैतानी आपके लिए मुसीबत का कारण बन सकती है।

एक पल में घर में, दूसरे पल किक्रेट के मैदान पर और कुछ देर बाद छत पर पतंग उड़ाते हुए। कुछ बच्चों में इस तरह की आदतें होती हैं। एक काम में ज्यादा देर तक उनका मन नहीं लगता और वे उठकर दूसरा काम करने लगते है।

* ये है हाइपरएक्टीविटी :-
सामान्य रूप से सभी बच्चे चंचल होते है और होना भी चाहिए क्योंकि यदि बच्चे शरारत नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा? लेकिन जब बच्चे हद से ज्यादा चंचल व शरारत ी हो तो उन पर ध्यान दीजिए। चिकित्सा की भाषा में बच्चो ं क ी इस असामान्य स्थिति को 'हाइपरएक्टीविटी' कहा जाता हैं।

हाइपरएक्टीविटी के शिकार बच्चे किसी एक विषय पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते है। उनका मन हमेशा इधर-उधर भटकता रहता है। इस कारण वह बार-बार अलग-अलग कार्य करके उसमें अपना मन लगाने की कोशिश करता है।

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* प्रकार व लक्षण :-
हाइपरएक्टीविटी मुख्यत: तीन प्रकार की होती है। प्रथम स्थिति में बच्चों में बच्चों में सक्रियता अधिक होती हैं। उनमें एकाग्रता वाली कोई समस्या नहीं देखी जाती।

दूसरी स्थिति में बच्चों में एकाग्रता तो होती हैं पर सक्रियता अधिक नहीं पाई जाती। तीसरी स्थिति में बच्चों में अति सक्रियता व एकाग्रता की कमी दोनों ही देखी जाती हैं।

बच्चों में लगभग तीन साल की उम्र से ही 'हाइपरएक्टीविटी' के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। छह साल की सम्र तक आते-आते ये लक्षण और भी स्पष्ट होने लगते है। ऐसे बच्चे एक स्थान पर ज्यादा देर तक नहीं बैठ सकते है। इनमें धैर्य की बहुत कमी होती है। किसी भी चीज का इंतजार करना इनके बस की बात नहीं होती है।

* क्या है कारण :-
अनुवांशिकता, सिर में चोट लगना, गर्भ में बच्चे को चोट लगना, खान-पान की गड़बड़ी आदि के कारण यह समस्या पैदा होती है। इनके दूरगामी परिणाम बाद में हायपरएक्टीविटी के रूप में सामने आते है।

एक शोध के मुताबिक 20 से 30 प्रतिशत हाइपरएक्टिव बच्चे 'लर्निंग ‍डिसेबलिटी' से भी ग्रस्त होते है। ऐसे बच्चे पढ़ने-लिखने से दूर भागते है।

कुछ बच्चे बड़े ही उद्दंड होते है। उनकी किसी भी बात पर ना कहने से वो चिढ़ जाते है तथा बात-बात पर क्रोध दिखाते है। इसे 'ऑपोजिशनल डिफायंट डिसॉर्डर' कहा जाता है।

कुछ बच्चों का उग्र स्वभाव होता है। उनकी रूचि मारपीट व तोड़फोड़ में अधिक होती है। इसे 'कंडक्ट डिसॉर्डर' कहा जाता है।

* जब स्पष्ट हो जाए लक्षण :-
इस प्रकार से बच्चों के स्वभाव व प्रवत्ति के अनुसार इस बीमारी का पता चलता है। हाइपरएक्टीविटी की ठीक तरह से पहचान के लिए किसी मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक से मिलना बेहतर होगा।

इस बीमारी में बच्चों के लिए दवा और बिहेवियर थेरेपी दोनों जरूरी हैं। इसी के सात ही माँ-बाप का बच्चों पर ध्यान देना भी बेहद आवश्यक हैं।
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