पत्रकारिता में संस्कार खत्म हो गए-अजय

-सुमित शर्मा

Webdunia
PR
अजय कुमार देश के प्रतिष्ठित पत्रकारों में से एक हैं और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उनका लंबा अनुभव है। राजनीतिक और कूटनीतिक मामलों में भी उन्हें विशेषज्ञता हासिल है। अजय वर्तमान में न्यूज़ नेशन के सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर हैं। हाल ही में पत्रकारिता से जुड़े मुद्दों पर अजय का आत्मीयतापूर्ण साक्षात्कार किया, उनके ही चैनल के पत्रकार सुमित शर्मा ने। पेश है पत्रकारिता से जुड़े सवाल और अजय कुमार के जवाब।

सवा ल- क्या आपको लगता है कि व्यावसायिकता के दौर में मीडिया अपनी ज़िम्मेदारियों का सही तरीक़े से निर्वाह नहीं कर पा रहा है?
जवाब- मुझे लगता है कि सही और ग़लत की परिभाषा बदल गई है। अब आज़ाद ख़्याल पत्रकारिता का समय नहीं रहा। पत्रकारिता के संस्कार ख़त्म हो गए हैं। गोखलेजी के समय से पत्रकारिता का समय ख़त्म भी हो गया। अब शाश्वत पत्रकारिता नहीं रही। आदर्श और यथार्थ में फर्क हो गया है। आज पत्रकारिता किसी न किसी सोच के नीचे दबकर रह गई है। कंपनी की सोच के हिसाब से चलना पड़ता है। हर इंसान की एक सोच होती है। वो सोच किसी को सही लगती है तो किसी को ग़लत भी लग सकती है।

सवाल- क्या आपको लगता है कि TRP की दौड़ में ख़बरों की विश्वसनीयता कम हो रही है?
जवाब- देखिए, आज के दर्शक को पता है कि क्या सही है और क्या ग़लत। उसे जो देखना होगा, वो वही देखेगा। TRP के लिए ख़बरों को ग़लत एंगल देना, दर्शक को भ्रमित करना ग़लत होता है। ज़्यादा TRP से विश्वसनीयता नहीं मिलती। सही तरीक़े से सही ख़बर दिखाकर विश्वसनीयता हासिल की जाती है। NEWS NATION इसी की बानगी है।

सवाल- हिंदी पत्रकारिता में अंग्रेजी शब्दों का चलन बढ़ गया है या यूं कहें कि उसकी भाषा हिंग्लिश हो गई है। क्या आप इसे भाषा का नुक़सान नहीं मानते?
जवाब- देखिए, मीडिया कोई भाषाविद् नहीं है। लोग हमारे हिसाब से नहीं चलते। उनको जो बोलना होगा वो बोलेंगे। ज़रा सोचिए, अगर हम संस्कृत में न्यूज़ दिखाना शुरू कर दें तो क्या पब्लिक भी संस्कृत बोलने लगेगी। नहीं ना। तो ये कहना कि इससे भाषा का नुक़सान होगा, ये ग़लत होगा।

सवाल- मीडिया कहीं न कहीं लोगों की प्राइवेसी की दीवार को पाट रहा है। क्या ये सही है?
जवाब- मेरा मानना है कि अगर कोई नहीं चाहता कि लोग उसके बारे में जाने या वो ख़ुद आगे होकर किसी को अपने बारे में नहीं बताएगा तो लोगों को पता कैसे चलेगा? असल में ये दोतरफ़ा बात है। अगर आप नहीं चाहते कि चीजें बाहर जाएं तो कतई बाहर नहीं जाएंगी। पत्रकारों को भी कोई सूत्रों के हवाले से ख़बर बताता है और वो सूत्र वही लोग होते हैं जो चाहते हैं कि ख़बर बाहर जाए। इसे यलो जर्नलिज्म कहना भी ग़लत होगा। यलो जर्नलिज्म नाम की कोई चीज़ होती नहीं है। हम लोग उसे यलो, ब्लू, व्हाइट जो चाहें नाम दें, क्या फर्क पड़ता है। हम सब लोग जानना चाहते हैं कि एक-दूसरे की ज़िंदगी में क्या हो रहा है? अगर ऐसा नहीं होता तो घर-दफ़्तर में गॉसिप क्यों होती? एक-दूसरे के जीवन में झांकना इंसानी नेचर है, लेकिन उससे बचाए रखना आपकी ज़िम्मेदारी है।

सवाल- कई बार लगता है कि मीडिया सेलिब्रिटीज पर ही फ़ोकस हो गई है। उनकी लाइफ़ में क्या चल रहा है, क्या नहीं? मीडिया वही दिखाती है। ये कहां तक सही है?
जवाब- हां, मीडिया दिखाती है क्योंकि लोग वही जानना चाहते हैं। अगर कोई इंसान बहुत चर्चित है तो स्वाभाविक बात है लोग उसके बारे में जानना चाहेंगे। सलमान ख़ान बहुत चर्चित व्यक्ति हैं इसलिए लोग ये जानना चाहेंगे कि वो शादी क्यों नहीं कर रहे हैं। जाहिर सी बात हैं, बहुत सी लड़कियां होंगी जो उनसे शादी करना चाहती हैं। तो अगर आप पब्लिक लाइफ में होते हैं और आपकी ज़िंदगी कई लोगों के ऊपर प्रभाव डालती है ये आपके ऊपर नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि उसका बचाव कैसे करना है। हां, आपको उसका तमाशा नहीं करना चाहिए क्योंकि तमाशा करके आप अपना तमाशा बना देते हैं।

सवाल- तो क्या इस तरह की पत्रकारिता सेलिब्रिटीज के लिए परेशानी का सबब नहीं बन जाती?
जवाब- नहीं, ये उनके लिए परेशानी का सबब नहीं बनती। इनफेक्ट उनको तो अच्छा लगता है। इसी के जरिए वो सुर्खियों में बने रहते हैं। रणबीर कपूर और कटरीना कैफ किसी बीच पर स्वीमिंग के लिए गए हैं, ये जानकारी किसी ने लीक की है ना। और जिसने लीक की, वो चाहते थे कि वो सुर्खियां बटोरे। उसके रिएक्शन पर सलमान ख़ान किसी और मॉडल के साथ किसी बीच पर दिखाई दिए। वो भी कोई चाहता था कि कोई जाने तो ये तो अपने आप को सुर्खियों में बनाए रखने का एक ज़रिया है।

सवाल- अक्सर पैनल डिस्कशन में नेताओं, प्रवक्ताओं को लड़ते-झगड़ते दिखाया जाता है। आपको नहीं लगता कि इस तरह की बहस से दर्शक की उस पार्टी पर उसकी मानसिकता या उस नेता की छवि पर ग़लत असर पड़ता है?
जवाब- नहीं, इससे उन नेताओं या प्रवक्ताओं की छवि पर कोई नुक़सान नहीं होता। वो चाहते हैं कि उनकी आवाज़ दूसरों पर ज़्यादा कारगर तरीक़े से सुनाई दे। ख़ुद को ज़्यादा प्रभावशाली तरीक़े से पेश करने की होड़ में वो लोग चीखते-चिल्लाते रहते हैं और इससे जिसको जो समझना होता है वो समझ लेता है। दर्शक बेवकूफ़ नहीं है। दर्शक जानता है कि उसके सामने क्या परोसा जा रहा है। वो जानता है कि उसमें से कौनसी चीज़ अच्छी है और कौनसी ख़राब। ख़राब चीज़े दर्शक कभी नहीं उठाता।

सवाल- क्या आपको लगता है सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया पर हावी हो रही है?
जवाब- असल में ये नए और पुराने के बीच की लड़ाई है जो हमेशा से चलती आ रही है। मेरा मानना है कि नई चीज़ के आ जाने से पुरानी चीज़ मिट नहीं जाती। पहले लोग कहते थे कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आएगा तो प्रिंट मीडिया ख़त्म हो जाएगा, लेकिन अख़बार तो आज भी बिकता है। किताबें उतने ही चाव से पढ़ी जाती हैं। दरअसल, सोशल मीडिया एक्सप्रेशन का कारगर तरीक़ा है। इससे बातें फौरन पब्लिक प्लेटफ़ॉर्म में आ जाती है।

सवाल- सोशल मीडिया की वजह से विचारों की अभिव्यक्ति आसान हो गई है। हर आदमी पत्रकार बन गया है। एक क्लिक से आप कोई भी बात किसी भी कोने तक पहुंचा सकते हैं। इससे कई ख़तरें भी हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
जवाब- सोशल मीडिया ने पब्लिक को अच्छा प्लेटफॉर्म दिया है, लेकिन लोगों ने इसे बैलेंस करना नहीं सीखा है। लोग ग़लतियों की ओर जा रहे हैं लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि पाठक को पता है कि क्या सही है और क्या ग़लत। एक वक़्त आएगा जब वो सोच-समझकर उसका सही इस्तेमाल करेंगे।

सवाल- पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे?
जवाब- वही लोग फ़ील्ड में आएं जो संघर्ष के लिए तैयार हैं क्योंकि पत्रकारिता में अच्छे दिन अब ख़त्म हो चुके हैं। अच्छा दौर अब ख़त्म हो चुका है। अच्छी नौकरियां, अच्छे अवसर अब नहीं बचे इसलिए सोच-समझकर ही इस क्षेत्र की तरफ़ रुख करें।

- जैसा कि अजय कुमार ने सुमित शर्मा को बताया।

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

साइबर फ्रॉड से रहें सावधान! कहीं digital arrest के न हों जाएं शिकार

भारत: समय पर जनगणना क्यों जरूरी है

भारत तेजी से बन रहा है हथियार निर्यातक

अफ्रीका को क्यों लुभाना चाहता है चीन

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय शहर में क्यों बढ़ी आत्महत्याएं

सभी देखें

समाचार

25 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र, 16 विधेयक पेश करने की तैयारी, वक्फ बिल पर सबकी नजर, अडाणी मामले पर हंगामे के आसार

असम के CM हिमंत का बड़ा फैसला, करीमगंज जिले का बदला नाम

Share Bazaar में भारी गिरावट, निवेशकों के डूबे 5.27 लाख करोड़ रुपए