बात कुछ वर्ष पुरानी है। देश की राजधानी दिल्ली के पत्रकारिता गलियारे में एक पत्रकार मंडली के बीच यह सवाल उठा कि आज के समय में सबसे अधिक पढ़ने वाले संपादक कौन हैं? उस वक्त दो नाम सामने आए थे। पहला नाम था हिन्दु्स्तान की संपादक मृणाल पांडे का और दूसरा नाम था राजधानी दिल्ली से दूर झारखंड की राजधानी रांची में बैठे 'प्रभात खबर' के संपादक हरिवंश का।
मीडिया हल्कों में यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि कोई भी बड़े लेखक या फिर विभिन्न विषयों की कोई भी किताब बाजार में आती है तो हरिवंशजी उसे मंगाते हैं और उसे बखूबी पढ़ते हैं। सामाजिक सरोकार और पत्रकारीय नैतिकता के साथ अखबार निकालना हर किसी के बस का नहीं होता, बावजूद इसके, न तो हरिवंश और न ही अखबार ने कभी पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा पार की। पत्रकारिता की शुरुआत 19 वर्ष की आयु से टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रिका 'धर्मयुग' से की और मुंबई में रहते थे। फिर कुछ दिनों के लिए बैंक में सरकारी नौकरी की, लेकिन मन नहीं रमा तो फिर पत्रकारिता करने के लिए चले आए।
कोलकाता जाकर रविवार ज्वॉइन किया और जमकर रिपोर्टिंग के साथ-साथ डेस्क पर काम किया। रविवार जब बंद हुआ तो एक प्रयोग करने का विचार लेकर 1989 में प्रभात खबर ज्वॉइन किया और रांची में रहने लगे। जयप्रकाश नारायण से प्रभावित रहने वाले हरिवंशजी ने भले ही बीएचयू से इकॉनॉमिक्स में शिक्षा ग्रहण की, लेकिन उनकी सादगी और मिलनसार स्वभाव की इकॉनॉमिक्स हमेशा कमजोर रही। यही कारण है कि आप उनसे जहां सहज भाव से मिलकर बात कर सकते हैं, वहीं दुनिया-जहान की बातों को सुनकर ज्ञानवर्धन भी कर सकते हैं। हर हफ्ते अखबार में शब्द संसार नामक कॉलम लिखते हैं और नई किताबों को लेकर जानकारी देते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर के मीडिया सलाहकार रहे हरिवंश चावल-दाल-चोखा खाने के शौकीन हैं। वे कभी प्रभात खबर के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल थे, लेकिन पत्रकार बने रहने के लिए उन्होंने उसे छोड़ दिया। पिछले 25 वर्षों से वे भले ही रांची में रहते हों, लेकिन उनकी लेखनी की धमक पूरे देश में सुनाई देती है। (मीडिया विमर्श में विनीत उत्पल)