मीडिया को अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत

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वाणी प्रकाशन की अदिति माहेश्वरी ने प्रकाशन से लेकर मीडिया से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर खुलकर चर्चा की। प्रस्तुत है अदिति के साथ बातचीत के प्रमुख अंश...

*पिछले एक दशक में ऐसे कौन से बदलाव हिन्दी प्रकाशकों के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं?
- हिन्दी प्रकाशक प्रकाशन जगत के मठाधीशों से परे आम आदमी के सृजनात्मक लेखन को प्रकाशित करने की हिम्मत जुटा पा रहा है। अंग्रेज़ी में इस प्रक्रिया को डी-सेंट्रलाइज़ेशन (विकेन्द्रीकरण) कहा जाता है। उत्तर आधुनिकतवाद की ओर बढ़ते कदम हिन्दी प्रकाशनों के माने जाते हैं। हिन्दी साहित्य जनतांत्रिक लोकवृत्त की अहमियत जानी जाती है।

*हिन्दी मीडिया की किताबों को लेकर बाजार की मांग पर कैसा असर पड़ा है?
- देश के विश्वविद्यालयों में मीडिया प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम में जुडने के बाद मीडिया पर सृजनात्मक लेखन से ज़्यादा विचारात्मक लेखन की आवश्यकता पाई जाती है। मीडिया के अवलोकन से ज़्यादा आलोचनात्मक लेखन की आवश्यकता है। ऐसे में मंडी में मीडिया (विनीत कुमार), मीडिया और लोकतन्त्र (प्रो. रवीन्द्रनाथ मिश्र), समकालीन वैश्विक पत्रकारिता में अखबार (प्रांजल धर), भारतीय पत्रकारिता कोश (विजयदत्त श्रीधर) और ब्रेकिंग न्यूज़ (पुण्य प्रसून जोशी) जैसी किताबों की विशेष ज़रूरत है।

*देश के प्रतिष्ठित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल से लेकर अंतरराष्ट्रीय मेले तक सब जगह हिन्दी की - किताबों की धूम है, लेकिन इससे लेखक और प्रकाशक के रिश्तों पर क्या असर पड़ा है?
हिन्दी भाषा में रचे साहित्य का पुनर्पाठ युवा पीढ़ी के बीच नया चलन लेकर आया है। अंग्रेज़ी में रचे जाने वाले भारतीय साहित्य से आप हिन्दी में रचा जा रहा युवा साहित्य कहीं पीछे नहीं है, यह शुभ समाचार है।

भारत के विभिन्न राज्यों में पुस्तक मेले हमेशा से ही लोकप्रिय रहे हैं। इनमें पाठकों को अपने पसंदीदा लेखकों से मिलने और बातचीत करने का अवसर मिलता रहा है। ऐसे में जयपुर साहित्यिक सम्मेलन व विश्व पुस्तक मेले ने लेखक और पाठक के बीच के इस रिश्ते को अंतरराष्ट्रीय अवसर दिया है। प्रकाशक और लेखक अब एक टीम की तरह काम करते हैं। लेखक और प्रकाशक कला और उसके आर्थिक पक्ष के संवेदनाओं को भली-भांति समझकर एक दूसरे को परिपूर्ण करते हैं।

*आपकी प्रकाशित किताबों में 'महासमर' आज भी सबसे अलग दिखती है। मौजूदा संदर्भ में इसे कहा पाती हैं आप?
- ' महाभारत' को आधुनिकता से जोड़ने का श्रेय नरेन्द्र कोहली द्वारा रचित 'महासमर' को जाता है। आधुनिक जीवन में पौराणिक आख्यानों का संदर्भ हमारी परम्पराओं को संजोता है। हम एक विशेष जीवन शैली को जीते हैं, परन्तु सारी आधुनिकता के बावजूद हमारे आख्यान हमें औरों से श्रेष्ठ बनाते हैं और समकालीन समय में सारी विपरीत परिस्थितियों के बाद भी अपना आदर्श, जीवन लक्ष्य और कौशल अर्जुन के बाण की तरह संजोए रखते हैं।

*मीडिया पर मौजूदा लेखन पर आपकी टिप्पणी?
- मीडिया पर मौजूदा लेखन की पृष्ठभूमि उन मीडिया घरानों द्वारा तैयार की जाती है जो और भी बड़े व्यावसायिक घरानों के नियंत्रण में रहते हैं। ऐसी विकट परिस्थिति में अभिव्यक्ति की आज़ादी व स्वच्छंद लेखन पर गाज गिरनी लाज़मी है। फिर भी वाणी प्रकाशन का ध्येय हमेशा से ही स्वतंत्र व साहित्य के लोकतांत्रिक पक्ष को पाठकों के सामने रखता रहा है और यही कारण है कि तमाम दबावों के बावजूद हम उन पुस्तकों को प्रकाशित करने से पीछे नहीं हटते जिनकी समीक्षा बड़े पत्र या पत्रिका नहीं करते। वाणी प्रकाशन हिन्दी प्रकाशन में तीन पीढ़ियों से यही संस्कार स्थापित करता रहा है कि सच्चे शब्द अपनी गवाही कालचक्र से परे हटकर देते रहे।

*ई-बुक्स का क्या असर पड़ेगा?
- तकनीक को वर्तमान परिपेक्ष्य में प्रकाशन प्रणाली को अपने अंदर समाहित करना ही होगा। हिन्दी में प्रकाशित किताबों की ई-बुक्स व ऑडियो बुक्स की उपलब्धि डायसपोरा व उन युवाओं को विशेषकर आकर्षित करेगी, जो कि तकनीकी रूप से सशक्त है। हिन्दी के पठन-पाठन को नई ऊर्जा के साथ अपने जीवन में समाहित करेंगे। ई-बुक्स से किताबें हिन्दी पाठकों के लिए सुगम बनेंगी।

*मीडिया की किताबों का भविष्य कैसा है?
- आने वाले समय में मीडिया विषय पर ऐसी पुस्तकों का प्रकाशन ज़रूरी है जो कि भारतीय लोकतंत्र के चौथा खंभा कहे जाने वाले मीडिया को अपने ही गिरेबान में झाँकने पर मजबूर करेगा।

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