एक कर्मठ युवा का संदेश

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- प्रस्तुति : महेंद्र मोहन भट्ट

आह्वान युवा का ह ै, पुकार युवा रक्त के लिए हैं। इक्कीसवीं सदी की इस प्रभात वेला में देश के युवक-युवतियाँ स्वार्थ की नींद में सोए हुए निजी प्रतिष्ठा के सपने देखते रहे ं, यह किसी भी तरह से उचित नहीं। आज हम सांस्कृतिक संक्रमण के ऐतिहासिक दौर से गुजर रहे हैं। भौतिकवाद अपनी चरम पराकाष्ठा पर है।

संय म, सेव ा, त प, त्याग और सादगी जैसे नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के अस्तित्व पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। युवा वर्ग में इनके प्रति किसी गंभीर आस्था का सर्वथा अभाव ही दिखता है। भीषण अंतर्द्वंद्व की इस विषादपूर्ण स्थिति में आध्यात्मिकव बौद्धिक जगत के जाज्वल्यमान सूर्य स्वामी विवेकानंद युवाओं को प्रखर दिशाबोध प्रदान करते हैं।

उनकी दैदीप्यवान ज्ञान-प्रभा के आलोक में युवाओं के दिलो-दिमाग में छाया ज्वलंत प्रश्नों का सघन कुहासा परत-दर-परत छँटता जाता है। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में 'हे युवाओं! तुम उस सर्व शक्तिमान की संतानें हों। तुम उस अनंत दिव्य अग्नि की चिंगारियाँ हों ।' उन्होंने कहा था- हर आत्मा मूलरूप में देव स्वरूप है और उसका लक्ष्य इस दिव्यता को जगाना है। लक्ष्य के एक बार निर्धारित होते ही फिर उसके अनुरूप युवाओं के जीवन का गठन शुरू हो जाता है। स्वामीजी के अनुसा र, लक्ष्य के अभाव में हमारी 99 प्रतिशत शक्तियाँ इधर-उधर बिखरकर नष्ट होती रहती हैं।
  आह्वान युवा का है,पुकार युवा रक्त के लिए हैं। इक्कीसवीं सदी की इस प्रभात वेला में देश के युवक-युवतियाँ स्वार्थ की नींद में सोए हुए निजी प्रतिष्ठा के सपने देखते रहें,यह किसी भी तरह से उचित नहीं। आज हम सांस्कृतिक संक्रमण के ऐतिहासिक दौर से गुजर रहे है।      


स्वामीजी के शब्दों में 'यह अज्ञान ही सब दुः ख, बुराइयों की जड़ है। इसी कारण हम स्वयं को पाप ी, दीन-हीन और दुष्ट-दरिद्र मान बैठे हैं। और दूसरों के प्रति भी ऐसी ही धारणाएँ रखते हैं। इसका एकमात्र समाधान अपनी दिव्य प्रकृति एवं आत्मशक्ति का जागरण है। वे जोर देते हुए कहते हैं कि आध्यात्मिक और मात्र आध्यात्मिक ज्ञान हमारे दुःख व मुसीबतों को सदैव के लिए समाप्त कर सकता है। इंद्रिय सुख एवं भोगों की इस अंधी दौड़ का कोई अंत भी तो नहीं। अस्तित्व की पूरी आहुति देने पर भी यह आग शांत होने वाली नहीं।

स्वामीजी कहते हैं तुम्हें सदैव स्मरण रखना होगा कि प्रत्येक शब् द, प्रत्येक विचार और प्रत्येक कर्म तुम्हारे लिए संग्रहीत रहेगा। जैसे बुरे विचार और कर्म खूँखार शेर की भाँति तुम पर झपटने के लिए सदा आतुर रहेंगे वैसे ही अच्छे विचार और कर्मों की शक्ति भी हजारों देवदूतों के समान तुम्हारी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहेगी। स्वामीजी कहते हैं कि इतनी तपस्या के बाद मैं इस वास्तविक सचाई को समझ पाया हूँ कि ईश्वर ही हर प्राणी में है। और जो जीव सेवा करता ह ै, वह ईश्वर सेवा करता है।

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