स्वामी विवेकानंद और युवा वर्ग

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- स्वामी भूतेशानंद

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स्वामी विवेकानंद का कहना है कि बहती हुई नदी की धारा ही स्वच्छ, निर्मल तथा स्वास्थ्यप्रद रहती है। उसकी गति अवरुद्ध हो जाने पर उसका जल दूषित व अस्वास्थ्यकर हो जाता है। नदी यदि समुद्र की ओर चलते-चलते बीच में ही अपनी गति खो बैठे, तो वह वहीं पर आबद्ध हो जाती है। प्रकृति के समान ही मानव समाज में भी एक सुनिश्चित लक्ष्य के अभाव में राष्ट्र की प्रगति रुक जाती है और सामने यदि स्थिर लक्ष्य हो, तो आगे बढ़ने का प्रयास सफल तथा सार्थक होता है। हमारे आज के जीवन के हर क्षेत्र में यह बात स्मरणीय है।

अब इस लक्ष्य को निर्धारित करने के पूर्व हमें विशेषकर अपने चिरन्तन इतिहास, आदर्श तथा आध्यात्मिकता का ध्यान रखना होगा। स्वामीजी ने इसी बात पर सर्वाधिक बल दिया था। देश की शाश्वत परंपरा तथा आदर्शों के प्रति सचेत न होने पर विश्रृंखलापूर्ण समृद्धि आएगी और संभव है कि अंततः वह राष्ट्र को प्रगति के स्थान पर अधोगति की ओर ही ले जाए।

विशेषकर आज के युवा वर्ग को, जिसमें देश का भविष्य निहित है, और जिसमें जागरण के चिह्न दिखाई दे रहे हैं, अपने जीवन का एक उद्देश्य ढूँढ लेना चाहिए। हमें ऐसा प्रयास करना होगा ताकि उनके भीतर जगी हुई प्रेरणा तथा उत्साह ठीक पथ पर संचालित हो। अन्यथा शक्ति काऐसा अपव्यय या दुरुपयोग हो सकता है कि जिससे मनुष्य की भलाई के स्थान पर बुराई ही होगी।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि भौतिक उन्नति तथा प्रगति अवश्य ही वांछनीय है, परंतु देश जिस अतीत से भविष्य की ओर अग्रसर हो रहा है, उस अतीत को अस्वीकार करना निश्चय ही निर्बुद्धिता का द्योतक है। अतीत की नींव पर ही राष्ट्र का निर्माण करना होगा। युवा वर्ग में यदि अपने विगत इतिहास के प्रति कोई चेतना न हो, तो उनकी दशा प्रवाह में पड़े एक लंगरहीन नाव के समान होगी। ऐसी नाव कभी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँचती। इस महत्वपूर्ण बात को सदैव स्मरण रखना होगा।

मान लो कि हम लोग आगे बढ़ते जा रहे हैं, पर यदि हम किसी निर्दिष्ट लक्ष्य की ओर नहीं जा रहे हैं, तो हमारी प्रगति निष्फल रहेगी। आधुनिकता कभी-कभी हमारे समक्ष चुनौती के रूप में आ खड़ी होती है। इसलिए भी यह बात हमें विशेष रूप से याद रखनी होगी। इसी उपाय से आधुनिकता के प्रति वर्तमान झुकाव को देश के भविष्य के लिए उपयोगी एक लक्ष्य की ओर सुपरिचालित किया जा सकता है।
  स्वामीजी ने बताया है कि उन्नति की प्रथम सीढ़ी स्वाधीनता है। स्वाधीनता के अभाव में हम बद्ध हो जाते हैं और इससे क्रमशः हमारा विनाश अवश्यंभावी हो जाता है। इसीलिए युवकों को पूर्ण स्वाधीनता देनी होगी, उनके पथ निर्धारण में सहायता भी करनी होगी।      


स्वामी ने बारंबार कहा है कि अतीत की नींव के बिना सुदृढ़ भविष्य का निर्माण नहीं हो सकता। अतीत से जीवनशक्ति ग्रहण करके ही भविष्य जीवित रहता है। जिस आदर्श को लेकर राष्ट्र अब तक बचा हुआ है, उसी आदर्श की ओर वर्तमान युवा पीढ़ी को परिचालित करना होगा, ताकि वे देश के महान अतीत के साथ सामंजस्य बनाकर लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकें।

मैं कह रहा था कि आधुनिकता कभी-कभी हमारे सामने चुनौती के रूप में आ खड़ी होती है। इसका तात्पर्य यह है कि आधुनिक समाज राष्ट्रहित के लिए उसकी शक्ति का उपयोग करने के प्रयास में अंधकार में भटकता रहता है। आधुनिकता की इस शक्ति को सुनियोजित महान लक्ष्य की ओर परिचालित करना होगा। इसी कारण स्वामीजी ने कहा है कि युवा वर्ग के सम्मुख एक लक्ष्य स्थापित करना होगा और इस ओर ध्यान देना होगा कि युवकगण उत्साह तथा प्रेरणा के साथ अपनी क्षमता का सदुपयोग कर सकें।

युवाशक्ति के भीतर जो सक्रियता एवं उद्दाम भावावेग देखने में आता है, उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। वे कुछ करने को उत्सुक हैं और यह उसी का लक्षण है। उनके नेतृत्व का भार जिनके ऊपर है, उन वयस्क लोगों को इस विषय में सोचना होगा। युवकों को केवल विधि-निषेध की सीमा में आबद्ध न रखकर, उन्हें स्पष्ट मार्ग दिखाना होगा। प्रायः देखने में आता है कि वयस्क लोगों को युवा वर्ग के केवल दोष ही दिखाई देते हैं।

वयस्कों की गलती यह है कि वे यह जानने का प्रयास नहीं करते कि युवक-युवतियाँ क्या सोचते हैं तथा क्या करना चाहते हैं। इसी कारण वयस्कगण युवा वर्ग की आलोचना करते हैं और इसके फलस्वरूप युवा समाज भी बड़ों की उपेक्षा करता है, उनकी परवाह नहीं करता। तब मामला आग से खेलने जैसा हो जाता है। जो आग घर में दीपक बनकर प्रकाश फैलाती है, वही सब कुछ जलाकर राख भी कर सकती है। यौवन के भीतर जो शक्ति है, वह भली भीनहीं है और बुरी भी नहीं है, ठीक उपयोग करने पर वह कल्याणकारी होगी तथा दुरुपयोग करने पर विध्वंसक।

इसीलिए तरुणों के प्रति स्वामीजी का आह्वान है- अपनी शक्ति को व्यर्थ बरबाद न होने देना। अतीत की ओर देखो, जिस अतीत ने तुम्हें अनंत जीवन रस प्रदान किया है, उससे पुष्ट हो। यदि अतीत की परंपरा का सदुपयोग कर सको, उसके लिए गौरव का बोध कर सको, तो फिर उसका अनुसरण कर अपना पथ निर्धारित करो। वह परंपरा तुम्हें दृढ़ नींव पर प्रतिष्ठित करेगी और इसके फलस्वरूप तुम देखोगे कि देश सामंजस्यपूर्ण समृद्धि की दिशा में अग्रसर हो रहा है।

इसी प्रकार अपेक्षाकृत अत्यल्प समय के भीतर लक्ष्य तक पहुँचा जा सकेगा। वैज्ञानिकगण नए-नएउपायों से खोज में तरह-तरह के परीक्षण-निरीक्षण किया करते हैं, परंतु वे भी क्या उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त अतीत काल की प्रज्ञा पर निर्भर नहीं करते? अणु का आविष्कार आकस्मिक रूप से नहीं हो गया। अनेक युगों के अनेक वैज्ञानिकों की जी-तोड़ खोजों के बाद अंततः वर्तमान शताब्दी में आण्विक शक्ति के अस्तित्व का पता चला है। उसी प्रकार इस क्षेत्र में भी हमें अपने पूर्ववर्तियों के प्रयास को स्मरण रखना होगा।

स्वामीजी ने और भी बताया है कि उन्नति की प्रथम सीढ़ी स्वाधीनता है। स्वाधीनता के अभाव में हम बद्ध हो जाते हैं और इससे क्रमशः हमारा विनाश अवश्यंभावी हो जाता है। इसीलिए युवकों को पूर्ण स्वाधीनता देनी होगी, परंतु इसके साथ ही उनके पथ के निर्धारण में सहायता भी करनी होगी। युवकों को केवल स्वामीजी की यह चेतावनी याद रखने की आवश्यकता है कि वे युगों से संचित अनुभवों के भंडार से दृष्टांत लेकर लाभ उठाएँ। इस महान उत्तराधिकार को स्वीकार करना उनका परम सौभाग्य है।
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