माँ के आगे हमेशा बच्चे ही रहें

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- अखिलेश श्रीराम बिल्लौर े
SubratoND

माँ मेरे सिर पे तू आरा चला दे
ममता को भुला दे कि
अब मैं तेरा लाल नहीं

दुनिया में यदि कोई अपना है तो वह माँ है। माँ से तनिक भी विमुख या माँ की भावनाओं को जरा सी भी ठेस पहुँचाने वाले पुत्र को अपने पश्चाताप में उपरोक्त वर्णित पंक्तियाँ हमेशा याद रखनी चाहिए। माँ के बारे में कितना भी लिखा-कहा जाए वह उसी प्रकार कम रहेगा जिस प्रकार उसके द्वारा प्रदत्त योगदान का प्रतिफल।

विद्वानों ने ठीक ही कहा है कि माँ का ऋण कभी नहीं चुकाया जा सकता। बच्चा माँ के लिए जमाने भर की दौलत भी उसके चरणों में लाकर रख दे तो भी माँ के आगे सब तुच्छ है। माँ को क्या चाहिए? यह बेटा समझ ही नहीं पाता। जबकि बेटे को क्या चाहिए यह माँ अच्छी तरह जानती-समझती है। बेटे के दु:ख में यदि सबसे ज्यादा कोई तड़पेगा तो वह माँ ही होगी। माँ से अच्छी संसार में कोई भी स्त्री नहीं हो सकती। सबसे सुंदर, सबसे प्यारी, जग से न्यारी माँ होती है। संतान के लिए सबकुछ त्याग करने वाली देवी माँ है।

माँ के अनेक रूप होते हैं। माँ मूक होकर धरती के समान सबकुछ सहन करने वाली भी होती है तो अपनी संतान के लिए जंगलों, कँटीले रास्तों को पार कर रंभाती हुई गाय के समान दौड़कर उसे दुग्धपान कराने वाली भी होती है। बेटा यदि सहनशक्ति से बाहर कोई कर्म करता है तो माँ काली का रूप भी धारण कर सकती है।

हमारे देश में माँ को सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है। भारत भूमि को हम भारत माता के नाम से संबोधित करते हैं। भारत माता की प्रार्थना करते हैं। उनकी शान में बेटे अपना शीश तक कटा देते हैं। इतिहास गवाह है कि भारत माता को गुलामी की बेडि़यों से मुक्त करने के लिए क्या कुछ नहीं किया इस धरती के लालों ने। वास्तव में देखा जाए तो माँ को सम्मान देने वाला जग में जरूर सम्मान पाता है। ऐसे बेटे की माँ भी स्वयं को गौरवा‍न्वित महसूस करती है। अमर शहीद भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, लोकमान्य तिलक जैसे अनेक लाल माँ की आराधना करते-करते माँ की गोद में समा गए।

माँ को यदि सुख नहीं मिलता तो ऐसे बेटे का जीना व्यर्थ है जो माँ को दुखी देखकर भी जी रहा है और किंकर्तव्य विमूढ़ बैठा है। जग में यदि कोई दो नाम सुंदर चुनने को कहा जाए तो सबसे पहले माँ का नाम होगा और दूसरा ईश्वर का। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ‍है कि माँ इस संसार में सबसे अधिक पूजनीय है।

हर पुत्र ने कल्पना करनी चाहिए कि माँ ने उसे पालने के लिए क्या-क्या कष्ट नहीं उठाए? यदि वह कृष्ण है तो देवकी के समान जेल में यातना भोगकर उसे जन्म दिया और यशोदा के समान उसकी हर शैतानियों और शरारतों में स्वयं का आनंद ढूँढती रही। यदि वह यीशु है तो माँ मरियम के समान घुड़साल की यातना भोगकर उसे संसार में लाई।

पुत्र चाहे कितना बड़ा भी हो जाए तो क्या वह यह भूल सकता है कि यदि वह रोता था तो सबसे पहले कौन दौड़ता। वह मल-मूत्र त्यागता तो माँ को छोड़कर अन्य सभी नाक पर रुमाल रख भाग जाते। पुत्र को यदि चोट लगती तो ऐसा लगता है जैसे माँ को चोट लगी है। पुत्र दुनिया में कहीं भी रहे पर माँ की आँखें हर वक्त उसका इं‍तजार करती मिलेगी। यद्यपि वह जानती है कि वह अभी नहीं आएगा तथापि उसे इंतजार करने में भी आनंद मिलता है ।

बेटी घर से विदा होती है तो माँ का दिल सबसे ज्यादा रोता है। ससुराल जाती बेटी के मान-सम्मान के लिए माँ यदि विनती करती है तो कभी-कभी कठोर भी हो जाती है। अपने कलेजे के टुकड़े को किसी और के हवाले करने के लिए दिल पर पत्थर रखने वाली माँ होती है। वह जानती है कि जिस प्रकार उसने तकलीफें सहन की हैं, वैसी उसकी बेटी की किस्मत में भी आ सकती हैं इसलिए वह हमेशा बेटी की ढाल बनकर खड़ी रहती है ।

कहने का आशय यह कि माँ के लिए बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं, चाहे वे कहीं भी रहें। इसीलिए बच्चों को भी माँ के आगे बच्चे ही रहना चाहिए। क्योंकि बड़ा माँ के दु:ख देखकर मुँह फेर सकता है, लेकिन बच्चा नहीं फेर सकता।

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