'माँ तुझे सलाम है'

भारती पंडित
ND
प्रकृति का हरेक प्राणी जन्म लेते ही जिस रिश्ते से प्रथम परिचित होता है, वह है माँ-बच्चे का रिश्ता... माँ और बच्चे का संबंध वास्तव में इतना अटूट है कि उसे याद करने या 'सेलीब्रेट' करने के लिए हमें 'मदर्स डे' जैसे कई दिन को निश्चित करने की आवश्यकता नहीं होना चाहिए। यह और बात है कि आधुनिकता के रंग में डूबा समाज, जो रिश्तों को भूलने में ही प्रगतिवाद की जीत समझता है, इस बहाने ही अपनी जन्मदात्री को स्मरण कर लेता है।

' माँ' शब्द उत्पति व उच्चारण से ही अपने आप में बेहद स्नेह और आत्मीयता से भरा है। चाहे इसे 'माँ' कहें, आई कहें, 'बा' कहे या 'बीजी'। इसकी मिठास सर्वत्र कायम रहती है। बीज को कोख में धारण करने से लेकर जन्म तक अनगिनत सपने सजाती माँ, नन्हे शिशु को दूध पिलाती, उसकी हर गतिविधि पर उत्साहित होती माँ, उसे किस्से-कहानियों से लेकर जीवन की वास्तविकता से रूबरू कराती माँ...
माँ सिर्फ माँ ही रहती है और माँ ही होती है, जिसकी हर धड़कन सिर्फ बच्चों के लिए ‍न्योछावर होती है।

' खेलता बच्चा दुनिया का', 'रोता बच्चा माँ का' या पुत्र कुपुत्र हो पर माता कुमाता नहीं होती। जैसी कई सारी कहावतें शायद माँ के निश्छल प्रेम की सराहना में ही कही गई है।

ND
बच्चे माँ के लिए अमूल्य निधि होते हैं जिनकी रक्षा के लिए वह उनके बचपन से लेकर जवानी तक कई रूपों में प्रस्तुत होती है। नन्हे के साथ रात-रात जागना, लोरियाँ सुनाना, उन्हें सजाना सँवारना, खुद भूखे पेट रहकर उन्हें खाना खिलाना, अच्छे संस्कार देना, बच्चों की छोटी-छोटी गलतियों को अपने ममता के आँचल में छुपाना इन सारे कामों के साथ सिर्फ 'माँ' का ही नाम लिया जा सकता है। बचपन में पढ़ी एक मर्मस्पर्शी कहानी याद आती है उस माँ की जिसके बेटे ने जायदाद के लालच में उसको विष दे दिया।

अस्थि विसर्जन के समय जब बेटे को पत्थर की ठोकर लगी, तो माँ की ‍अस्थियाँ पुकार उठी 'बेटा सँभलकर, कहीं चोट न लग जाए।' क्या ऐसा विशालतम हृदय और स्नेहिल सोच माँ के अतिरिक्त किसी की हो सकती है?

मेरी माँ अक्सर कहा करती थी 'जब माँ बनोगी, तभी माँ के हृदय को समझ पाओगी और कितना सत्य था ये कथन क्योंकि रिश्ते की गहराई में उतरे बिना रिश्ते के मर्म को समझ पाना वाकई मुश्किल है। इसलिए शायद मौसी 'माँसी' होती हुए भी 'माँ' नहीं बन पाती और कोई स्त्री पराये बच्चे को अपना नहीं पाती।

कुछ स्त्रियाँ इसका अपवाद भी हैं, फिर भी ममता तो अक्सर कोख जाये पर ही उडेली जाती है।

दुनिया में महानतम व्यक्तियों के उदाहरण दिए जा सकते हैं, जिन्हें बनाने में उनकी 'माँ' का हाथ रहा है। 'माँ' के संस्कारों की प्रतिमूर्ति बच्चों में दिखाई देती है। इसीलिए ससुराल में बहुओं को ताने दिए जाते हैं कि 'माँ' ने कुछ सिखाया नहीं है अर्थात हर क्षेत्र में संतान के साथ जननी का उल्लेख अवश्यंभावी है। (कभी-कभी यही ममता अंधी होकर बच्चों की गलतियों को बढ़ावा भी देती है, फिर भी निहित उद्देश्य प्रेम व ममता ही रहता है।)

विशेष संदर्भ में जब यही ममता घर की दहलीज लाँघकर समाज या देश के लिए कार्य करने लगती है, तो समाज में 'मदर मैरी', 'मदर टेरेसा' या 'भगिनी निवेदिता' जैसी ममतामयी मूर्तियों का उद्‍भव होता है, जिनकी स्नेह वर्षा सारे विश्व को एक सूत्र में बाँधते हुए 'विश्व-बंधुत्व' की भावना को बल देती है। सचमुच 'माँ' सिर्फ 'माँ' होती है।

एक कवयित्री के शब्दों में
' माँ, तुम न होकर भी
आज भी यहीं हो मेरे समीप
मेरी स्मृति में, मेरे संस्कारों में
मेरी उपलब्धियों में, मेरे विचारों में
क्योंकि अपने ही रूप में गढ़ा था तुमने,
मुझे अपनी परछाई
अपनी पहचान बनाकर

' माँ तुझे सलाम, शत-शत वंदन
Show comments

मजबूत और लंबे बालों के लिए 5 बेस्ट विटामिन जो करेंगे कमाल, जानिए हर एक के फायदे

मेंटल हेल्थ स्ट्रांग रखने के लिए रोजाना घर में ही करें ये 5 काम

Benefits of sugar free diet: 15 दिनों तक चीनी न खाने से शरीर पर पड़ता है यह असर, जानिए चौंकाने वाले फायदे

Remedies for good sleep: क्या आप भी रातों को बदलते रहते हैं करवटें, जानिए अच्छी और गहरी नींद के उपाय

Heart attack symptoms: रात में किस समय सबसे ज्यादा होता है हार्ट अटैक का खतरा? जानिए कारण

क्या फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की पत्नी पहले पुरुष थीं?

जब पंड‍ित छन्‍नूलाल मिश्र ने मोदी जी से कहा था- मेरी काशी में गंगा और संगीत का ख्‍याल रखना

Pandit chhannulal Mishra death: मृत्यु के बगैर तो बनारस भी अधूरा है

Karwa Chauth Essay: प्रेम, त्याग और अटूट विश्वास का पर्व करवा चौथ पर हिन्दी में निबंध

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघः राष्ट्र निर्माण के नए क्षितिज की यात्रा