माँ : मीठी बयार का कोमल अहसास

जन्म देकर ही जन्म लेती है माँ

स्मृति आदित्य
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माँ, समूची धरती पर बस यही एक रिश्ता है जिसमें कोई छल-कपट नहीं होता। कोई स्वार्थ, कोई प्रदूषण नहीं होता। इस एक रिश्ते में निहित है अनंत गहराई लिए छलछलाता ममता का सागर। शीतल, मीठी और सुगंधित बयार का कोमल अहसास। इस रिश्‍ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी अनुभूति छुपी है मानों नर्म-नाजुक हरी ठंडी दूब की भीनी बगिया में सोए हों।

माँ, इस एक शब्द को सुनने के लिए नारी अपने समस्त अस्तित्व को दाँव पर लगाने को तैयार हो जाती है। नारी अपनी संतान को एक बार जन्म देती है। लेकिन गर्भ की अबोली आहट से लेकर उसके जन्म लेने तक वह कितने ही रूपों में जन्म लेती है। यानी एक शिशु के जन्म के साथ ही स्त्री के अनेक खूबसूरत रूपों का भी जन्म होता है।

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पल- पल उसके ह्रदय समुद्र में ममता की उद्दाम लहरें आलोडि़त होती है। अपने हर 'ज्वार' के साथ उसका रोम-रोम अपनी संतान पर न्योछावर होने को बेकल हो उठता है। नारी अपने कोरे कुँवारे रूप में जितनी सलोनी होती है उतनी ही सुहानी वह विवाहिता होकर लगती है लेकिन उसके नारीत्व में संपूर्णता आती है माँ बन कर। संपूर्णता के इस पवित्र भाव को जीते हुए वह एक अलौकिक प्रकाश से भर उठती है।

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उसका चेहरा अपार कष्ट के बावजूद हर्ष से चमकने लगता है। उसकी आँखों में खुशियों के सैकड़ों दीप झिलमिलाने लगते हैं। लाज और लावण्य से दीपदिपाते इस चेहरे को किसी भाषा, किसी शब्द और किसी व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती। 'माँ' शब्द की पवित्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दू धर्म में देवियों को माँ कहकर पुकारते है। बेटी या बहन के संबोधनों से नहीं। मदर मैरी और बीवी फातिमा का ईसाई और मुस्लिम धर्म में विशिष्ट स्थान है।

माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक दिवस नहीं एक सदी भ‍ी कम है। किसी ने कहा है ना कि सारे सागर की स्याही बना ली जाए और सारी धरती को कागज मान कर लिखा जाए तब भी माँ की महिमा नहीं लिखी जा सकती। मातृ दिवस पर हर माँ को उसके अनमोल मातृत्व की बधाई।
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