शहद जैसी मीठी-मीठी माँ

माँ, तुझे सलाम

Webdunia
स्वाति शैवाल
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माँ तू एक पवन का झोंका है...जो दुआओं का आँचल लहराती हर वक्त मेरे पास खड़ी रहती है... कैसे पता चल जाती है तुझे हर वह बात जो मथती है मन मेरा?... सहज दुलार से फिर तू बुहार देती है सब चिंताओं को... रुखे हाथों से भी जब तू मेरा माथा सहलाती है, क्यूँ लगता है जैसे भरी धूप में सर पर बादल का एक ठंडा, छाँवभरा टुकड़ा आकर ठहर गया हो...

लड़खड़ाते कदमों से जब मैं सीख रहा होता हूँ चलना तो तू पास खड़ी मेरी हिम्मत बढ़ाती है और फिर धीरे से जानबूझकर मेरे पास सरक आती है... मैं उस फासले को तय कर खुद पर इतराता हूँ और तू उतने ही सरल भाव से अपने कदमों से नापी दूरी मेरे नाम कर देती है... आज भी जब तू दूर से सब्जी और अनाज के थैले उठाए घर की ओर आती है और मैं घर से दो कदम दूर तुझसे वह थैले ले लेता हूँ...तू खुशी-खुशी मेरे यशोगान से आसमान गुँजा देती है...

मेरी थाली में सजे छप्पन भोग भी तुझे असंतुष्ट ही रखते हैं और माथे पर सलवटें डाल तू कह देती है- ' अरे...लो कैसी भुलक्कड़ हूँ मैं, कैरी की चटनी तो बनाना भूल ही गई' और फिर घुटनों के दर्द से छलकते आँसुओं को मुस्कुराहट से नकारती तू भागकर चटनी बना लाती है... मैं तब भी उसे थाली में छोड़कर उठ जाऊँ तो तेरा जुमला होता है- ' कितने शौक से खाता था पहले चटनी, लगता है मेरी ही नजर लग गई।'

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जानता हूँ माँ, काटी है तूने कई रातें आँखों में, बस मेरी खुशी की खातिर...अपने बड़े होने के एहसास को मैंने तेरी आँखों में चमकते देखा है... पर तू चिंता न कर, अब मैं बड़ा हो गया हूँ... दुनिया की धरती पर अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ... ये जमीन तूने ही तो दी है मुझे... अब मैं तेरे सपनों को पर दूँगा...बस तू मुस्कुराती रहना सदा मेरी स्मृतियों में भी... दुखों की तपन को मैं तुझसे दूर कर दूँगा... चाहे कहीं भी रहूँ, मैं तेरे स्नेह को अपने भीतर बहता महसूस करता हूँ... तुझे कहूँ न कहूँ माँ, लेकिन मन में तुझे सोचता हूँ।

माँ, एक ऐसा शब्द जो अपनी परिधि में अथाह चीजें समेट लेता है, चाहे हजारों-हजार साल बीत जाएँ, दुनिया कितनी ही बदल जाए, ना माँ शब्द से जुड़ी भावना ही बदलेगी, ना ही माँ की ममता। चाहे कोई व्यक्ति आयु के कितने ही साल पार कर ले या कितने ही बड़े पद पर क्यों न पहुँच जाए, माँ के लिए अब भी वह नन्हा छोटू या गुड़िया ही है जो आज भी आम खाने के लिए मचल सकता है।

चाहे सीधे पल्ले की साड़ी में लिपटी, पसीना-पसीना होती चूल्हा फूँकती माँ हो या जींस-शर्ट में अपने बच्चों के साथ रोलर कोस्टर पर बैठकर चीखती माँ हो, अपने बच्चे को तकलीफ में देखकर दोनों का ही दिल दुखता है और आज भी हर तरह से अपने बच्चों को खुशी देकर खुश हो जाना ही उसका स्वभाव है।

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एक्सिस बैंक में एक्जिक्यूटिव के पद पर कार्यरत मंथन पानसे कहते हैं- 'मैंने मम्मी से एक सबसे बड़ी बात सीखी है, विपरीत परिस्थिति में भी खुश रहना। वह कभी टेंशन नहीं लेती। साथ ही वह हर समस्या को धैर्य के साथ हल करना जानती है। मुझे याद है इंजीनियरिंग के वक्त कॉलेज के नए माहौल में मैं थोड़ा असहज था। स्कूल से ये जीवन बिलकुल अलग था। मैं अक्सर पढ़ाई, माहौल तथा कई चीजों को लेकर टेंशन में आ जाता था और मम्मी पर चिल्ला दिया करता था, लेकिन उस समय भी मम्मी ने मुझे समझा और कभी भी मेरे आक्रोश पर गलत प्रतिक्रिया नहीं दी।

मैं आज भी सोचता हूँ कि उस समय अगर मम्मी शांत नहीं रहती तो पता नहीं मैं क्या कर बैठता। जीवन के उतार-चढ़ाव को लेकर भी मेरी मम्मी भावनात्मक रूप से बहुत स्ट्राँग है, पापा से भी ज्यादा। मेरी इच्छा थी कि नौकरी लगते ही सबसे पहले अपनी मम्मी को सरप्राइज के तौर पर मोबाइल गिफ्ट करूँ। हालाँकि उससे पहले ही भइया ने मम्मी को मोबाइल लाकर दे दिया। बाद में जब भइया और मम्मी को मेरी इच्छा का पता चला तो उन्हें बेहद अखरा। मैं मम्मी से हर बात शेयर करता हूँ और वह मुझे सही मार्गदर्शन देती है।'

' मेरी ममा मेरे लिए सबकुछ है। फ्रेंड, फिलॉसफर, गाइड की परिभाषा पर वे हर तरह से खरी उतरती हैं। वे मुझे लेकर बहुत पजेसिव हैं, केयरिंग है और मेरे जीवन की हर गतिविधि का हिस्सा बनना चाहती है। मैं उनसे सारी बातें बाँटता हूँ और बदले में वे मुझे सही-गलत का फर्क समझाती हैं।' कहते हैं इंजीनियरिंग के छात्र पुलकित जै न। पुलकित याद करते हैं वे दिन जब एक भयानक एक्सीडेंट में वे बुरी तरह घायल हो गए थे। चार दिन तक बेहोश रहने के बाद जब वे होश में आए तो उन्हें पता चला कि उनकी ममा पिछले चार दिनों से बिना कुछ खाए-पिए उनके लिए प्रार्थना कर रही हैं। वे ममा से लिपटकर रो पड़े और आज भी वे मानते हैं कि उन्हें होश में लाने में उनकी ममा की प्रार्थना जादुई काम कर गई। वे अपनी ममा को दुनिया की हर खुशी देना चाहते हैं।

वे कहते हैं कि उनके माता-पिता ने और खासतौर पर ममा ने उनके जीवन को बनाने के लिए 25 सालों की कठिन मेहनत की है। अब उनकी बारी है कम से कम अगले 25 सालों तक ममा और पापा को खुशियाँ देने की। वे जब अपने पैरों पर खड़े हो जाएँगे तो अपनी ममा की हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करेंगे।

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फैशन डिजाइनर रोहिणी कृष्ण न अपनी हर कृति के पीछे माँ की प्रेरणा को कारण मानती हैं। वे बताती हैं- 'मैं जब छोटी थी तो अक्सर घर की दीवारों पर पेंसिल चला दिया करती थी। माँ ने कभी इसके लिए न मुझे डाँटा न मारा। उलटे उन्होंने बहुत शांति से दीवार तो साफ की ही, मुझे ड्राइंग शीट और कलर पेंसिल भी लाकर दी और साथ ही समझाया कि मैं अपने रंग दीवार को खराब करने की बजाय ड्रॉइंग शीट पर बिखेरूँ। मुझे लगता है अगर उस समय मम्मी मुझे डाँट देतीं या पेंसिल छीनकर रख देतीं तो शायद मेरा ये शौक वहीं दबकर रह जाता और मैं इस मुकाम तक नहीं पहुँच पाती। पापा चाहते थे कि मैं साइंस लेकर ही पढ़ाई करूँ और डॉक्टर बनूँ, लेकिन मम्मी मेरा मन जानती।'
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