सूनी है माँ की गोद

कविता

Webdunia
दीपाली पाटील
ND
देखो पहाड़ की चोटी पर
बँजारे बादलों ने डेरा डाला है
कुछ बूँदें समेटने के लिए
धरती ने आँचल फैलाया है।
स्नेह भरा एक आँचल
सूना-सा एक गाँव,
बंजर-सी एक धरती
हमारी तकते हैं राह
क्या सताते नहीं तुम्हें
वो मिटटी, आँगन, अश्वत्थ की छाया
अक्सर बाबा की मार से बचाती
माँ के आँचल की छाया
कितने प्यार से माँ ने तुम्हें
' अश्वत्थ' ये नाम दिया था
उसके जैसे बड़े और आराध्य बनो
माँ ने ये वरदान दिया था
माँ की सूनी आँखों को अब
स्नेह की बौछारों की जरुरत है
गर्मी में चूल्हा फूँकती माँ को
तुम्हारी छाँह की जरुरत है
ND
बादलों से एक पोटली उधार लेकर
आओ हम भी लौट चले,
शतरंज की शह-मात छोड़कर
आओ हम भी लौट चले,
तुम बन जाओ माली फिर से
हम फूलों से एक बाग भरे
सूनी है माँ की गोद कब से
आओ हम आबाद करें।
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