Dharma Sangrah

जन्‍मदात्री है वह...

कविता

अरुंधती आमड़ेकर
संबंध नहीं हैं मां केवल संपर्क नहीं है
आदर्श है जीवन का केवल संबोधन नहीं है


ND


जन्‍मदात्री है वो मात्र इंसान नहीं है
व्‍यक्तित्‍व बनाती है, केवल पहचान नहीं है

ममता की प्रतिमा है केवल नारी का एक रूप नहीं है
स्‍नेह की छाया है केवल कठोरता की धूप नहीं है

हृदय है इसका प्रेम का सागर, जिसकी कोई थाह नहीं है
आघातों से पीड़ित है फिर भी मुख पर आह नहीं है

आघात जो मिले है अपनो से, सहने के अतिरिक्त राह नहीं है
दंडित करने की अधिकारी है, मात्र क्षमा का प्रवाह नहीं है

कृतघ्न हैं वो जो माता को आहत करते हैं
कर्तव्‍यों से मुंह मोड़ अधिकारों का दावा करते हैं

संतान के रक्षण हेतु माता न जाने क्‍या-क्‍या करती है
पीड़ाओं को सहकर भी आंचल की छाया देती है

कभी देवकी बनकर वो निरपराध ही दंड भोगती है
कभी अग्नि में पश्चाताप की कैकयी सी बन जलती है

सुपुत्रों से आज है मेरा नम्र निवेदन
दु:ख न दें, भले न दे सुख का आंगन।

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