अंजना सक्सेना
मां मेरी सखी
थी एक सखी मेरी
दुनिया में सबसे प्यारी
थी वो सबसे न्यारी
मेरे जन्म से पहले
हम एक-दूजे के हो गए
भूल दुनिया को जैसे हम गए।
पाकर मुझे वो थी प्रफुल्लित अपार
दिन हो रात बस लुटाती प्यार ही प्यार
सब नाज़ो नखरे मेरे वो उठाती
लेकर बांहों में मुझे वो झूला झुलाती
मैं हंसती वो हंसती
रोती मैं वो बेहाल हो जाती।
पकड़ती तितलियां साथ मेरे वो
छुपन-छुपाई में कभी छुपती छुपाती
देख मेरा नटखटपन होती निहाल
अंक में अपने मुझे छुपा लेती
थाम हाथ मेरा हर कष्ट से बचाती
देती नसीहतें हर अच्छी बुरी बात पर,
सच्चाइयों से दुनिया की अवगत मुझे वो कराती।
कभी साथ मेरे वो गुड्डे-गाड़ियों का ब्याह रचाती
है जीवन की प्रथम गुरु साथ थी वो एक सखी
खेल-खेल में रोज़मर्रा की चलती जिंदगी में