मां पर कविता : मां, जानी मैंने तुम्हारी पीड़ा

ज्योति जैन
जीवन के 
इक्कीस वर्ष बाद, मां 
जानी मैंने 
तुम्हारी पीड़ा 
जब अपना अंश 
अपनी बिटिया 
अपनी बांहों में पाई मैंने। 
 
मेरे रोने पर 
तुम छाती से लगा लेती होगी मुझे, 
यह तो मुझे ज्ञात नहीं 
पर घुटने-कोहनी 
जब छिल जाते थे गिरने पर 
याद है मुझे 
तुम्हारे चेहरे की वो पीड़ा। 
 
तुम्हारी छाती का दर्द 
उतर आया मेरे भी भीतर, 
बेटी कष्ट में हो तो 
दिल मुट्ठी में आना 
कहते हैं किसे, 
जानने लगी हूँ मैं। 
 
मेरे देर से घर 
लौटने पर 
तुम्हारी चिंता और गुस्से पर 
आक्रोश मेरा 
आरज कर देता है मुझे शर्मिंदा,
जब अपनी बेटी को 
देर होने पर 
डूब जाती हूँ मैं चिंता में। 
 
बेटी के अनिष्ट की 
कल्पना मात्र से 
पसलियों में दिल 
नगाड़े-सा बजता है 
तब सुन न पाती थी 
तुम्हारे दिल की धाड़-धाड़
.....मैं मुरख। 
 
महसूस कर सकती हूँ 
मेरी सफलता पर तुम्हारी खुशी आज, 
जब बेटी 
कामयाबी का शिखर चूमती है, 
क्षमा कर दोगी मां, 
मेरी भूलों को, 
क्योंकि अब जान गई हूं 
कि बच्चे कितने ही गलत हो 
मां सदा ही क्षमा करती है। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

जानिए कैसे मंगोल शासक अल्तान खान की वजह से शुरू हुई थी लामा परंपरा? क्या है दलाई लामा का इतिहास

Hustle Culture अब पुरानी बात! जानिए कैसे बदल रही है Work की Definition नई पीढ़ी के साथ

ग्लूटाथियोन बढ़ाने के लिए इंजेक्शन या दवाइयां खाने से बेहतर है खाएं ये फल और सब्जियां, जानें कुदरती उपाय

सावन मास में शिवजी की पूजा से पहले सुधारें अपने घर का वास्तु, जानें 5 उपाय

सिरदर्द से तुरंत राहत पाने के लिए पीएं ये 10 नैचुरल और स्ट्रेस बस्टर ड्रिंक्स

सभी देखें

नवीनतम

महाराष्‍ट्र की राजनीति में नई दुकान... प्रोप्रायटर्स हैं ठाकरे ब्रदर्स, हमारे यहां मराठी पर राजनीति की जाती है

खाली पेट पेनकिलर लेने से क्या होता है?

बेटी को दीजिए ‘इ’ से शुरू होने वाले ये मनभावन नाम, अर्थ भी मोह लेंगे मन

चातुर्मास: आध्यात्मिक शुद्धि और प्रकृति से सामंजस्य का पर्व

कॉफी सही तरीके से पी जाए तो बढ़ा सकती है आपकी उम्र, जानिए कॉफी को हेल्दी बनाने के कुछ स्मार्ट टिप्स

अगला लेख