अथर्व पंवार
आजकल एक दिन के अनेक त्योहारों का चलन है जिसमें लोग इच्छा के हिसाब से नहीं ट्रेंड के हिसाब से मानते हैं। उसमें से कुछ है mother's day और father's day। लोगों को अपने माता पिता का ध्यान रखना बस इस एक दिन में ही याद आता है। व्यस्त दौड़भाग की दुनिया में आज संबंधों के लिए निम्न स्थान प्राप्त है। संबंध का आधार आजकल प्रेम नहीं लालच हो गया है। जिन माता पिता ने अपना पेट काट काट कर अपने बच्चों की परवरिश की, उनके अपंग होते ही उन्हें वृद्धाश्रम का कमरा दिखा दिया जाता है।
कारण कि अब वे हमारी lifestyle में बोझ बन रहे हैं और पर्सनल लाइफ में इनकी भूमिका नहीं होनी चाहिए। और फिर इन एक दिन के त्योहारों के लिए ही उन मां बाप की याद आती है क्योंकि सोशल मीडिया के ट्रेंड उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं और वह एक दिन का मातृ दिवस और पितृ दिवस मनाते हैं।
आजकल सभी बदलाव चाहते हैं और कहते हैं कि पुरानी चीजों से ध्यान हटाकर नयी सोच अपनाना चाहिए। पर प्रश्न यह है की क्या यह मां बाप के लिए भी उचित है ? अगर मां बाप इस आधुनिक युग में पुराने हो रहे हैं तो उनको भी हमारी ज़िन्दगी से किनारे कर देना चाहिए क्या?
यह एक दिन की सेवा अच्छी तो है पर दुखद भी लगती है कि हमें मां और पिता के लिए एक दिन ऐसा मनाना पड़ रहा है। क्या हम 365 दिन यह नहीं मना सकते हैं? उस एक दिन के लिए हम हमारी स्टोरी, पोस्ट, स्टेटस पर पालकों के साथ फोटो डालकर शान समझ रहे हैं पर वह झूठी होती है। उस एक दिन के श्रवण कुमार बनने का क्या फायदा !
हमारे पालक हमारे सबसे बड़े हितैषी होते हैं। जब उन्हें 365 में से 10 दिन याद करते हैं तो भी वह प्रसन्न ही होंगे। पर उन की उस पीड़ा को भी जानना होगा जो वह हृदय में छुपाए रहते हैं। दायरा,सीमा, DISTANCE सभी संबंधों में एक स्तर तक रखना चाहिए जिससे संतुलन बना रहे पर उसका आत्मनिरीक्षण भी करना चाहिए कि वह अनदेखी में तो नहीं बदल रहा।
एक खबर पड़ी थी कि बेटा बाहर नौकरी पर गया और माँ अकेली लोखंडवाला के एक फ्लैट में रहती थी। वे मानसिक अवसाद से जूझ रही थी। 63 वर्षीय मां ने प्राण त्याग दिए। जब बेटा डेढ़ साल बाद घर आया तो घर अंदर से बंद था और जब खोला तो देखा कि वह मां की लाश मिली है। क्या उस बेटे ने बचपन में MOTHERSDAY मनाया नहीं होगा?
हमें रोज मातृ और पितृ दिवस मनाने की आवश्यकता है, इसे प्रतिदिन मनाएं।