स्मृति आदित्य
मां
एक शब्द भर नहीं है
मां एक रिश्ता ही नहीं है
मां है एक पूर्ण-संपूर्ण एहसास
एक सागर समाहित कर लेता है सबको अपने आप में,
अपने अस्तित्व में
फिर भी कभी नहीं उफनता
हजारों सुख-दुख की लहरें उमड़ती हैं उसमें पर
हम तक आने वाली हर लहर शांत, शीतल, और जीवनदायिनी होती है...
मां
एक आकाश,
ना जाने कितने तारे-सितारे,
ग्रह-नक्षत्र जगमगाते हैं उसके आंचल में
पर
हमें ताकने वाली उसकी आंखें सूरज और चांद ही होती हैं
नूर बरसाने वाली ...
मां
धरती
कितने करोड़ों पेड़ों को सींचने और जीवन रस देने वाली
सबको समेटने और सहेजने वाली
पर हम तक आने वाली उसकी हर बयार मीठी ही होती है
हां मां ऐसी ही होती है.. समुद्र सी गहरी, आकाश सी विशाल और धरती सी सहनशील...
मां सब जैसी होती हैं पर मां जैसा कोई नहीं होता... क्योंकि
मां
एक शब्द भर नहीं है
मां एक रिश्ता ही नहीं है..
मां सृष्टि का सबसे खूबसूरत शब्द है
मां हम सबमें हैं, मां है तो ही हम सब हैं...