रूदन की आवाज जोर जोर से आने लगी। रोने की आवाज से मां के दर्द का एहसास हो रहा था। बरामदे में बैठी महिलाओं की आंखें भी नम हो गई। थोड़ी देर बाद ही कुछ महिलाएं खुसर-पुसर करने लगी ।अच्छा हुआ चली गई बेटी आधी पागल थी।
दूसरी ने कहा - हां मैं तो उनकी पड़ोसी हूं। देर रात तक चीखती चिल्लाती थी। जवान होती ऐसी बेटी का भला मां कब तक ध्यान रखती। जन्म से ही ऐसी ही थी। यह सारी बातें मृत बेटी की नानी सुन रही थी।आंख के आंसू रुक नहीं रहे थे। ऊपर से इस तरह की बातों से उनका दिल छलनी हो गया।
यह महिलाएं मेरी बेटी की पीड़ा नहीं समझ रही है। उसने अपनी 16 साल की बेटी खोई है।जिसको उसने अपने मातृत्व से सींचा। अन्य बच्चों से ज्यादा ध्यान देकर उसको बड़ा किया।उसको चीजें सिखाई बेटी ने अपनी जवानी के दिन उसके साथ जिए भला वो कैसे अपनी इस बेटी को भूल पाएगी।
एक मां के लिए कभी भी उसकी बेटी पागल या अर्ध विक्षिप्त नहीं हो सकती। महिलाओं के चले जाने के बाद नानी ने अपनी बेटी को गले लगाया, और कहा - बेटी तेरा मातृत्व वंदनीय है। तूने अपनी ममता से अपनी बच्ची को दुनिया वालों की तानों से बचाया। ढाल बनकर खड़ी रही। बेटी ने कहा- मां तुम मां हो ना इसलिए मेरी पीड़ा को समझ पा रही हो। हां मां दुनिया में मां के मातृत्व से बढ़कर कुछ नहीं है।