यशोधरा भटनागर
जेठ की तपन से तप्त धरती आग उगल रही थी। सन्नाटा सिर चढ़कर बोल रहा था। सिर पर साफा लपेटे इक्के दुक्के दुस्साहसी ही इस दोपहरी में खरीदारी करने निकले थे। दुपट्टे से पसीना पोंछ बीजी ने छोटे पंखे का मुँह अपनी ओर घुमा, कुछ राहत महसूस की। तीखी धूप में झुर्रियों वाली आँखें कुछ और सिकुड़ गईं। पता नहीं गर्मी की प्रचंडता से या भाग्य की बेरुखी से ?
सामने एलुमिनियम की शीट चढ़े लकड़ी की मेज पर यूँ ही गीला पोंछा फेर दिया। काश अपने हाथों का लेखा भी वे यों ही पोंछ पातीं। सिकुड़ी हुई आँखें एक रेखा सी रह गईं ....मंटू चार साल का ही तो था जब सुखविंदर पूरी गृहस्थी उसके भरोसे छोड़ एक रात सीने में दर्द लिए हमेशा के लिए दूर चले गए और मंटू....! नहीं !नहीं ! वह खूनी मंज़र उन्हें रात-दिन ......मंटू का पच्चीसवां जन्मदिन और वह उन्मादी भीड़! एक शोर! फिर सब कुछ नीरवता में बदल गया।रह गया यह अकेलापन! और दो जून की रोटी जुटाने की कवायद!
विवश बीजी घर की देहरी लाँघ इस गुमटी तक पहुँच गईं और गर्मी से बेहाल कंठों की तृषा को ताजे ज्यूस से तृप्त करने में लग गई।आज वह केवल मंटू की बीजी नहीं सबकी बीजी बन गई।
एक लंबे संघर्ष की कहानी छुपाए एक मुस्कान। पर मुस्कान में छिपा दर्द कभी-कभी आँखों के रास्ते बह जाता।फिर भी बीजी सबसे हँसती-बोलती और सब के दुख-सुख
का हिस्सा बन जातीं। कैसी आत्मीयतासिक्त,स्नेह रसधार बहाती प्रेम से पगी है उनकी वाणी।
छोटी सी साफ-सुथरी गुमटी पर ग्राहकों की लंबी कतार जिनमें कोई उनका अपना पुत्तर, तो कोई नूँ,तो कोई धी ....।
बीजी चार ग्लास ऑरेंज ज्यूस....और उनके अभ्यस्त हाथ मशीन पर घूमने लगे कुछ ही देर में चमचमाते ग्लासों में पूरी ताजगी लिए ऑरेंज ज्यूस। मारो!,मारो! सामने की सड़क पर कुछ नारे!उग्र स्वर। हय नी! हय नी!मत मारो! मत मारो !मेरे मुंडे नू मत मारो! बदहवास सी बीजी खून की प्यासी तलवारों के चक्रव्यूह को चीर कर भीड़ में घुस गई। पुत्तर! पुत्तर इस बारी मैं तेनू नहीं जान दंगी।
बीजी ने उस युवक को छाती से चिपका लिया।और खुद रक्त पिपासु लपलपाती तलवारों के वार झेलती रहीं।
सहसा काली सड़क रक्तिम हो गई।शायद भीड़ का उन्माद कुछ कम हुआ या रक्त पिपासा शांत हो गई।
बीजी! बीजी! युवक बुदबुदाया.... चेतना शून्य बीजी की गर्दन एक ओर लुढ़क गई। पर उनके शांत मुख पर एक तुष्ट-संतुष्ट मुस्कान...अपने पुत्तर से मिलने की आस या किसी माँ के पुत्तर के प्राण बचाने की तुष्टि!