short story based on transgender situations in society
नुपूर प्रणय वागळे
क्रूर ग्रह
"अरे अब तो पूरे 30 की हो गई होगी आपकी किरण, कब तक बैठाकर रखोगे घर में?"
"हां देखो कब योग आता है...बाकि पढ़ने में बहुत अच्छी है। आगे और भी उच्चशिक्षा पाना चाहती हैं। PHD में रजिस्ट्रेशन हो गया हैं, साथ ही निजी विद्यालय में शिक्षक भी है।"
किरण की मां ने जवाब दिया।
"हां बात तो अच्छी हैं, लेकिन अब और कितना पढ़ेगी? पड़ोसन फिर बोली।
"अब देखिऐ वह आर्थिक रूप से सक्षम भी है। शादी तो क्या हो ही जाएगी।" माँ बोली।
"हाँ...अरे बहनजी वो सब तो ठीक है,लेकिन लड़की का विवाह और लड़के का रोजगार ये दो चिंताएं माता-पिता को सर्वाधिक परेशान करती है।" पडोसन भी आज शायद कुछ तय कर के ही आई थी।
"हूँ"..
कुछ दिनों बाद...
"अरे कैसी हैं आप? कब कर रही हैं आप, किरण की शादी?"
"हां देखते हैं"
एक दिन बाजार में -अरे वा.. बहुत दिनों बाद मिले भाभी? सब कैसे हैं? शादी की मिठाई खिला रही हैं किरण?" कोई लड़का देख रखा हैं क्या? एक कटाक्ष मारते हुए सवाल दागा गया।
"नमस्ते भाभी, जी देख रहे हैं अभी। वैसे उसकी पत्रिका के कुछ ग्रह कमजोर हैं, शायद विवाह स्थान पर बैठे हो। जब सितारे ग्रह-नक्षत्र अच्छे हो जाएंगे तो आप ही हो जाएगी शादी।" मां ने फिर संयम से जवाब दिया।
" हाँ कई जगह बात चलाई हैं,कुंडली मिलान नहीं हो पा रहा हैं।" कॉलोनी की आंटी को यह बोलते हुए आज फिर माँ के होंठ मुस्कुराये, लेकिन उसकी भीगी हुई आंखों की कोर और उसके पीछे छिपे दर्द की चुभन,किरण अपने दिल तक महसूस कर रही थी।
"मां कब तक तुम ये बहाने बनाती रहोगी, लोगों के कटाक्ष सुनती रहोगी?" तनिक उत्तेजित होकर किरण ने चिढ़ कर कहा।
"तो क्या करूं मेरे बच्चे..? सारी ममता अपनी आंखों में उडेल कर भर्रायी आवाज में मां बोली...."कलेजा मुंह को आता है मेरा,यह सब सुनकर। मैं जानती हूं अपने समाज में "अर्द्धनारीश्वर" तो पूजनीय हैं, किंतु प्रकृति द्वारा तेरे साथ किये गये इस क्रूर मजाक को हमारा समाज कभी सच्चे मन से स्वीकार नहीं करेगा, कभी नहीं। तुझको समाज की सहानुभूति मिल सकती हैं, स्नेह और सम्मान नहीं।"