आशो रजनीश ने एक बार बहुत ही सुंदर कहानी सुनाई थी कि किस तरह लोग भेड़ चाल चलते हैं। हममें से कई लोग हैं जो आज भी भेड़ चाल चलते हैं। कुछ लोग जानबूझकर चलते हैं, कुछ लोग मजबूरीवश चलते हैं, कुछ लोग भयवश चलते हैं और कुछ लोग अनजाने में। आओ जानते हैं कि किस तरह लोग भेड़ चाल चलते हैं।
एक प्रसिद्ध सम्राट के दरबार में एक आदमी आया और उसने कहा कि महाराज मैं स्वर्ग के वस्त्र लाया हूं और वह भी सिर्फ आपके लिए क्योंकि आप महान है। यह सुनकर उस सम्राट ने कहा कि हमनें तो कभी सुना या देखा नहीं कि स्वर्ग के भी वस्त्र होते हैं और हमने तो कभी पहनें भी नहीं।
उस आदमी ने कहा कि महाराज एक दिन मैं आपके इस महान दरबार में वह वस्त्र लाऊंगा और फिर आप पहन भी सकेंगे और देख भी सकेंगे। लेकिन महाराज वह बेहद अमूल्य वस्त्र हैं। करोड़ों रुपए देने के बाद भी नहीं मिलते हैं लेकिन मैं आपके लिए जरूर लाऊंगा। धरती के पहले आदमी होंगे जो आप यह वस्त्र पहनेंगे। लेकिन आपको कम से कम 5 करोड़ रुपए तो देना ही होंगे, क्योंकि वे देवताओं के वस्त्र हैं।
यह सुनकर सम्राट कुछ सोच में पड़ गया और फिर बोला- ठीक है हम तुम्हें 5 करोड़ रुपए देंगे लेकिन यदि तुमने धोखा दिया, रुपए ले गए और वस्त्र भी लाकर नहीं दिए और भाग गए तो यह याद रहना की हम तुम्हें ढूंढ निकालेंगे और तुम मुश्किल में पड़ जाओगे।
उस आदमी ने कहा कि भागने की तो बात ही छोड़ों, मुझे कहीं जाना नहीं है आप तो महल के चारों ओर पहरा लगवा दीजिये। मैं तो महल के भीतर ही रहूंगा क्योंकि स्वर्ग जाने के लिए या देवताओं के यहां जाने के लिए कोई सड़क मार्ग थोड़े ही है। मैं तो देवताओं का आह्वान करूंगा और बस वस्त्र हाजिर हो जाएंगे। बस मुझे 6 माह का समय चाहिए।
सम्राट को दरबारियों ने समझाया कि हमें तो यह कोई ठग लगता है आप इसकी बातों में ना आएं। सम्राट ने कहा- घबराओ मत, चिंता मत करो यह आदमी महल में ही रहेगा और फिर हम पहरा कड़ा कर देंगे। रुपए लेकर कहां भागेगा? दरबारी तो राजा के भक्त थे सब चुप रह गए।
6 माह तक वह आदमी महल के एक शानदार कमरे में बंद रहा और प्रतिदिन छप्पन भोग खाता रहा। 6 माह पूर्ण होने पर लोग महल के आसपास एकत्रित हो गए यह देखने के लिए कि अब क्या होगा। वह आदमी हाथ में एक शारदार पैटी लेकर बाहर निकला। एक जुलूस के रूप में उसे राजदरबार में ले जाया गया। वहां राजा के दरबारियों के साथ ही देश-विदेश के अन्य कई राजा और धनपति भी विराजमान थे क्योंकि सभी को देवताओं के वस्त्र देखना थे।
उस आदमी ने भरे दरबार में पैटी को एक और बड़ी ही सावधानी से रखा और कहा कि महाराज मैं वस्त्र ले आया हूं इस पैटी में है। अब आप मेरे पास आ जाइये ताकि मैं देवताओं के वस्त्र आपको पहना सकूं।.. सम्राट उसके पास पहुंचें तो उसने कहा कि ये पगड़ी उतारें में आपको देवताओं की पगड़ी देता हूं। महाराज ने वह पगड़ी उतारकर उसे दे दी। उसने उस पगड़ी को पैटी में रख दिया। उस खाली पैटी में खाली हाथ बाहर निकालकर कहा कि ये है देवताओं की पगड़ी।...महाराज ने गौर से उसके हाथ को देखा जो कि खाली था। महाराज कुछ बोलते इससे पहले ही वह बोला, सभी लोग यह खयाल रखें कि देवताओं ने यह पगड़ी वस्त्र आदि देते वक्त मुझसे कहा था कि यह सिर्फ उसीको दिखाई देंगे जो अपने बाप से ही पैदा हुआ है।
सम्राट ने यह सुनते ही कहां, हां-हां मुझे दिखाई दे रहे हैं। क्यूं नहीं दिखाई पड़ेंगे? बड़ी ही सुंदर पगड़ी है। ऐसी सुंदर पगड़ी ना तो देखी और ना पहनीं। दरबार के सभी दरबारी सोच में पड़ गए कि ये हो क्या रहा है। लेकिन सभी यह भी सोचने लगे कि इस वक्त यह कहना की मुझे नहीं दिखाई दे रही है तो व्यर्थ ही सब मेरी मां पर शक करेंगे। यह सोचकर सभी चुप रह गए और सब भी तारीफ करने लगे और कहने लगे धन्य महाराज, धन्य हो गए आप। धरती पर ऐसा अवसर पहली बार आया जब किसी ने देवताओं की पगड़ी पहनी।
एक-एक आदमी सोचने लगा कि बड़ी गड़बड़ बात है। लेकिन सभी दरबारी, सम्राट और धनपति जब एक स्वर में कह रहे हैं कि वाह! क्या सुंदर पगड़ी है तो जरूर होगी। लेकिन कोई यह बात अब किसी से नहीं कह सकता था कि हमें नहीं दिखाई दी पगड़ी।
उस आदमी ने फिर धीरे-धीरे करके सम्राट के सारे वस्त्र उतरवा लिए और उसे जिस तरह पगड़ी पहनाई गई उसी तरह अन्य वस्त्र भी पहना दिए। अब सम्राट निर्वस्त्र था और फिर भी उसके चेहरे पर प्रसन्नता थीं और वह बार-बार अपने नग्न शरीर को देखकर कह रहा था वाह! क्या सुंदर वस्त्र है। उसकी हां में हां सभी दरबारी, राजा और धनपति मिला रहे थे...वाह! क्या सुंदर वस्त्र है सम्राट। ऐसे वस्त्र तो हमने जीवन में पहली बार देखे। आप धन्य हैं।... सम्राट सोच रहा था कि सभी लोगों को वस्त्र दिखाई दे रहे हैं लेकिन मुझे ही नहीं। यह बात मुझे छुपाकर ही रखना होगी, वर्ना बहुत बदमानी होगी।
अब राजा नग्न था। सभी दरबारियों ने कहा कि सम्राट आपने पहली बार देवताओं के वस्त्र पहने हैं तो अब तो आपका नगर भ्रमण होना ही चाहिए ताकि राज्य की जनता भी देवताओं के वस्त्र देख सके और तब आपकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक पहुंचेगी। यह सुनकर राजा घबरा गया लेकिन उसने अपनी घबराहट रोककर कहा, हां हां क्यों नहीं। राजा ने सोचा अब झंझट तो मोल ले ही ली है चलो, यह दु:ख भी उठा लेते हैं।
एक रथ पर राजा को खड़ा किया गया और नगर में घुमाया गया। सभी राजा के सुंदर वस्त्र देखने के लिए उमड़ पड़े। सभी को मालूम था कि यह वस्त्र उसे ही दिखाई देंगे तो अपने बाप की ही संतान होगा।
सारा जनसमूह उमड़ा और सभी एक-दूसरे से कहने लगे, वाह! ऐसे सुंदर वस्त्र तो हमने सपने मैं भी नहीं देखे। सभी एक दूसरे से पूछने लगे क्यों तुझे दिखाई दे रहे हैं कि नहीं? सभी छाती ठोंक के कहने लगे हां क्यों नहीं। लेकिन वहां कुछ छोटे बच्चे अपने बाप के कंधे पर चढ़कर आ गए थे। वे अपने बाप से कहने लगे, पिताजी राजा नंगा है। यह सुनकर उनके बाप ने उनका मुंह दबाते हुए कहा- चुप ना समझ, अभी तेरी उम्र कम है, यह बातें अनुभव से ही आती हैं और बहुत गहरी बात है। जब तू मेरी उम्र का हो जाएगा तब तुझे अनुभव आ जाएगा और तब वस्त्र भी दिखाई देने लगेंगे।... जो बच्चे चुप नहीं हुए उनके बाप उन बच्चों का मुंह बंद करके वहां से खिसक लिए।
कहानी से सीख:
इस कहानी से सीख यह मिलती है कि अकेला आदमी और भीड़ के आदमी में कितना फर्क होता है। अकेला आदमी सत्य को जानता है लेकिन भीड़ का आदमी सत्य जानते हुए भी स्वीकार नहीं कर पाता है। अकेले आदमी का दिमाग होता है लेकिन भीड़ के आदमी का कोई दिमाग नहीं होता है। हमेशा भीड़ के भय के कारण भीड़ का आदमी वह सबकुछ करता है तो भीड़ कर रही है। यही भेड़ चाल है।