Motivation Speech : आईआईटी देहली से बीटेक और आईआईएम कोलकाता से एमबीए पासआउट स्वामी मुकुंदानंदजी ने सत्य की तलाश में अपना करियर छोड़ दिया और वे आध्यात्मिक गुरु, जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराजजी के शिष्य बन गए। यहीं से स्वामीजी की आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ हुई। स्वामी मुकुंदानंदजी वैदिक ग्रंथों, भारतीय और पाश्चात्य दर्शन के अच्छे जानकार हैं। योग और गीता पर दिए गए उनके डिस्कोर्स प्रसिद्ध हैं। वे पिछले 20 वर्षों से जीवन परिवर्तन कर देने वाले अद्भुत प्रवचन दे रहे हैं। हमारा सौभाग्य है कि आज स्वामीजी 'वेबदुनिया' में पधारे और हमने उनसे जीवन बदल देने वाले कुछ सवाल पूछे। तो आइये मिलते हैं स्वामी मुकुंदानंदजी से।
वेबदुनिया : स्वामीजी मैं जब यहां आ रहा था तो मेरे मन में बहुत सारे सवाल थे, लेकिन मैं आपसे प्रश्न पूछने के लिए थोड़ा नर्वस भी था कि मैं कैसे स्वामीजी से प्रश्न पूछ पाऊंगा और किस तरह से मैं उनसे इंटरेक्ट हो पाऊंगा? तो ये नर्वसनेस कैसे दूर होगी? क्योंकि कई बार यह कई लोगों के साथ में भी समस्या रही है।
स्वामी मुकुंदानंद : आपने तो इतने भोलेपन में प्रश्न कर दिया लेकिन प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह नर्वसनेस एक सामान्य इमोशन है जिसका अनुभव अधिकांश लोग करते हैं। हम जब किसी चीज को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं तो फिर हम उसमें अपनी पूरी शक्ति लगाना चाहते हैं कि वह बढ़िया से बढ़िया हो। ये तो ठीक है, उससे तो हम और बढ़िया कार्य करते हैं, लेकिन जब फल में आसक्ति कर लेते हैं, कभी अच्छा ही होना चाहिए, ऐसा न हो कि कुछ बुरा हो जाए तो फिर नर्वसनेस आती है।
श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में इसका उपाय बताया है। साइंस ऑफ वर्क, वे कहते हैं- 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' अर्थात् अर्जुन तू मात्र अपने प्रयत्न पर ध्यान दें। प्रयत्न बढ़िया से बढ़िया हो और फल में आसक्ति को छोड़ दे। इंग्लिश में कहते हैं- 'डू योर बेस्ट एंड लीव द गॉड ऑल द रेस्ट।' तो फल में जब आसक्ति छोड़ देते हैं और प्रयत्न में अपना ध्यान केंद्रित रखते हैं तो फिर मन शांत बना रहता है।