खतलिंग ग्लेशियर का नजारा

संकट में हैं ग्लेशियर

Webdunia
- महेश पांडे

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उत्तराखंड में एक वक्त 7,941 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बर्फ से ढँका रहता था, जो यहाँ के भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 15 प्रतिशत क्षेत्र है। यमुना, गंगा और काली नदी समेत उनकी कई सहस्रधाराएँ इसी क्षेत्र में जन्म लेती हैं, लेकिन यह क्षेत्र लगातार सिमट रहा है। यहाँ के तमाम ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

चार धामों की यात्रा के अलावा साहसिक पर्यटन के प्रेमियों में खतलिंग ग्लेशियर के दर्शन को पाँचवाँ धाम दर्शन माना जाता है। यहीं से केदारनाथ तक पैदल यात्रा क्षेत्र भी है। पिछले हफ्ते इसी यात्रा मार्ग पर ट्रैकिंग के लिए कुछ पर्यटकों का दल भारी बर्फबारी में फँसने से राज्य में हड़कंप मच चुका है। बमुश्किल इस यात्री दल के तीन पर्यटकों को हेलिकॉप्टरों से निकाला गया तो छः अन्य लोगों को दो दिन बाद त्रियुगी नारायण क्षेत्र में आईटीबीपी एवं पुलिस की गठित टीमों ने पैदल रास्ते से जाकर ढूँढ निकाला।

यही है कस्तूरी मृगों का क्षेत्र : पाँचवें धाम खतलिंग को जाने वाले मार्ग पर फँसे इन पर्यटकों ने वन विभाग से यहाँ जाने की अनुमति नहीं ली थी। इस क्षेत्र में कस्तूरी मृग क्षेत्र होने से यहाँ जाने की पूर्वानुमति आवश्यक है। 3,700 मीटर की ऊँचाई पर खतलिंग ग्लेशियर पहुँचने के रास्ते में चौकी बुग्याल रुद्रागंगा, हिमानी गुफा, दुमलिया ताल भी दर्शनीय हैं। यहाँ से सात किलोमीटर की दूरी तय कर गंगोत्री पहुँचा जा सकता है। यहाँ से साढ़े छः हजार मीटर की ऊँचाई पर स्थित सतलिंग तेज चमकता है।

स्फटिक लिंग जो ग्रेनाइट धातु से बना है, पर बर्फ नहीं टिकती और भगवान शिव का आत्मलिंग का खिताब इसे प्राप्त है । 6,460 मीटर जोगिन चोटी, मयाली टॉप के रास्ते वासुकीताल होते हुए 14 किलोमीटर दूरी तय कर केदारनाथ धाम पहुँचना संभव है । मयाली टॉप की चोटी से तिब्बत का इलाका दिखाई देता है।

पिघल रहे ग्लेशियर : हिमालय में तैंतीस हजार वर्ग किलोमीटर में ग्लेशियर फैले हैं जो पूरे हिमालय क्षेत्र के 17 प्रतिशत रहे हैं। गोमुख, मिलम, पिंडारी, खतलिंग व नामिक जैसे उत्तराखंड के हजारों ग्लेशियर पानी की मीनारों का काम करते हैं। हजारों साल पहले गौमुख ग्लेशियर गंगोत्री से मिलता था, लेकिन आज गंगोत्री व गोमुख के बीच की दूरी 19 किलोमीटर है।

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पिछले दो सौ वर्षों में गंगोत्री व गोमुख के बीच की दूरी ही नहीं बढ़ी। ग्लेशियर का स्नाउट भी खिसकता जा रहा है। मिलम ग्लेशियर 1828 में मिलम गाँव से दो किलोमीटर पर बताया गया जो अब छः किलोमीटर से भी अधिक दूरी पर है। खतलिंग ग्लेशियर का मुख जो चौकी ताल पर था, अब सात किलोमीटर दूर है। पिंडारी ग्लेशियर भी काफी पीछे चला गया।

बढ़ते लोग, बढ़ता ताप : सन्‌ 1808 तक गंगोत्री क्षेत्र में गंगा की मूर्ति के पूजन की परंपरा थी, लेकिन यहाँ दस-पंद्रह लोग ही रहते थे। गंगा की मूर्ति के साथ ये लोग भी अपने गाँवों में वापस चले जाते थे। 1981 की जनगणना में गंगोत्री की स्थाई आबादी लगभग 125 के आसपास थी जो आज हजारों तक पहुँच चुकी है। साधु-संन्यासी ही काफी पहले पहुँचे थे। चार धामों में से बद्रीनाथ में ही यह संख्या श्रद्धालुओं के हिसाब से लाख तक पहुँचती थी। अब यहाँ एक हफ्ते में लाख से अधिक श्रद्धालु आते हैं।

पूर्ण कुंभकाल के वक्त ही बद्रीनाथ से ज्यादा श्रद्धालु आते थे। 1808 के पूर्ण कुंभ में 45 हजार श्रद्धालु बद्रीनाथ पहुँचे थे, जबकि 2010 के पूर्ण कुंभ के बाद दो दिन में यह संख्या पार कर ली गई। 1808 में केदारनाथ की यात्रा विषम थी। उस साल केदारनाथ गए कई यात्री मारे भी गए थे। अब तमाम साधन, बढ़ते गाड़ियों व रेल नेटवर्क बढ़ने से तीर्थयात्रियों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई है। इसी तरह इस क्षेत्र के ग्लेशियरों में भी ट्रैक कर जाने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

प्रकृति छेड़छाड़ ने पैदा किया संकट : इसी तीर्थ क्षेत्र के आसपास बुग्यालों, ग्लेश्यिरों एवं तमाम खूबसूरत घाटियों व नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ से भी यहाँ के माहौल में बदलाव आया है। स्वयं चिपको नेता चंडीप्रसाद भट्ट ने भी इस तरह की गतिविधियों को विश्व धरोहर पार्कों के आसपास हेमकुंड साहिब यात्रा मार्ग पर भ्यूंडार घाटी जल विद्युत परियोजना समेत तमाम क्षेत्रों की परियोजनाओं को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध बताया है।

इस बाबत उन्होंने केंद्र को पत्र भी भेजकर इस संवेदनशील क्षेत्र में इस गतिविधि को लगाम लगाने की माँग की है। विश्व धरोहर फूलों की घाटी से सात किलोमीटर की दूरी पर भ्यूंडार घाटी जल विद्युत परियोजना भी इस सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध जारी है। इस आदेश के अनुसार विश्व धरोहर से 10 किलोमीटर की परिधि में इस तरह की परियोजनाएँ प्रतिबंधित हैं। तथापि यहाँ इस तरह की परियोजनाओं का बेरोकटोक निर्माण इस क्षेत्र में प्रकृति प्रेमियों के रोष का कारण बन रहा है।

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