मध्यप्रदेश चुनाव को लेकर अब तक कांग्रेस-बसपा के गठबंधन के कयास लगाए जा रहे थे। सिर्फ कयास ही नहीं, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने खुद इस बात की पुष्टि की थी, कि बसपा के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस की बातचीत अंतिम चरणों में है और जल्दी ही इस मामले में तस्वीर साफ हो जाएगी।
लेकिन मायावती द्वारा लिस्ट जारी करने के बाद कांग्रेस-बसपा के गठबंधन को लेकर लग रहे तमाम कयासों पर विराम लग गया और कांग्रेस अकेली पड़ती नजर आने लगी और दलित वोट बैंक भी कांग्रेस के हाथ से फिसलता दिखाई दे रहा है। लेकिन अब कांग्रेस ने भाजपा से टक्कर देने के लिए, बसपा को मात देने और दलितों को साधने का नया रास्ता अख्तियार किया है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस अब गुजरात की तर्ज पर काम कर रही है। जिस तरह गुजरात में कांग्रेस ने जिग्नेश मेवाणी को भाजपा के सामने मैदान में उतारा था, अब मध्यप्रदेश में भी राजनीति के युवा खिलाड़ी को उतार रही है। कांग्रेस ने प्रदेश में बसपा के लिए काम कर चुके दलित युवा नेता देवाशीष जरारिया को अपने साथ मिला लिया है।
देवाशीष जरारिया बसपा के युवा टीम के लीडर रहे हैं और 2013 में बसपा से जुड़े थे। बसपा के साथ युवाओं को जोड़ने के अलावा वे सोशल मीडिया पर भी बसपा के पक्ष काम करते रहे हैं और बसपा समर्थक के रूप में मीडिया में अपनी बात रखते रहे हैं।
लेकिन अब वे कमलनाथ के नेतृत्व में ये कहते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए कि बसपा ने पिछले 20 सालों से राज्य में लीडरशिप खड़ी नहीं की और यूपी के बसपा नेता ही आकर मध्य प्रदेश में राजनीति कर रहे थे। ऐसे में वे दलितों के बीच अपनी लीडरशिप तैयार करने के मकसद से उनके बीच जाएंगे और कहेंगे कि मध्य प्रदेश का बेटा आया है।
उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में बसपा के लोग कांग्रेस-बसपा गठबंधन के पक्ष में थे, लेकिन मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से दलित समुदाय आहत है, और अब वे चुनाव में कांग्रेस का साथ देंगे। उन्होंने कहा कि वे भाजपा के राज से मुक्ति दिलाने और दलित-आदिवासी भाइयों को इंसाफ दिलाने के लिए कांग्रेस में शामिल हुए हैं।
देवाशीष जरारिया का कांग्रेस में शामिल होना इसलिए भी अहम है क्योंकि जरारिया लंबे समय से प्रदेश के दलितों के लिए लड़ते रहे हैं और दलित समुदाय में पैठ रखते हैं। उनके पास दलित युवाओं की टीम राज्य के सभी जिलों में है।