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कांग्रेस में दिग्विजय क्यों हैं सब पर भारी?

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विकास सिंह

, मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018 (14:12 IST)
मध्यप्रदेश में चुनाव के समय अचानक से एक बार फिर दिग्विजयसिंह चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। कांग्रेस में आज प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया से ज्यादा चर्चा दिग्विजय के नाम को लेकर हो रही है। हर कोई पार्टी के फैसले में उनकी भूमिका को बड़े गौर से देख रहा है।
 
 
इसी बीच दिग्विजयसिंह का एक वीडियो भी खूब वायरल हो रहा है, जिसमें सिंह कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी को नसीहत देते नजर आ रहे हैं। दिग्विजय जीतू पटवारी को काम करने की नसीहत दे रहे हैं। इसके साथ-साथ प्रदेश में कांग्रेस के बसपा के साथ गठबंधन न करने के दिग्विजय के फैसले को जिस तरह पार्टी में अहमियत दी गई, उससे यह सवाल खड़ा होना लाजिमी हो गया है कि क्या दिग्विजय ने एक बार फिर सूबे की सियासत में अपनी वापसी कर ली है।
 
 
मध्यप्रदेश में चुनाव से ठीक एक साल पहले दिग्विजयसिंह अचानक से रणनीतिक तरीके से सक्रिय हो गए थे। पंद्रह साल से प्रदेश की राजनीति से दूर रहने वाले सिंह ने नर्मदा परिक्रमा की धार्मिक यात्रा कर प्रदेश में जोरदार वापसी दर्ज कराई। कहने को तो यह यात्रा गैर राजनीतिक थी, लेकिन यात्रा के दौरान दिग्विजयसिंह ने कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद स्थापित कर उनको जोश से भर दिया।
 
 
नर्मदा परिक्रमा यात्रा से दिग्विजय ने साफ संदेश दे दिया था कि इस बार चुनाव में कांग्रेस का कोर एजेंडा हिन्दुत्व होगा। ऐसा नहीं है कि दिग्विजयसिंह ने प्रदेश में ऐसी कोई यात्रा पहली बार की। इससे पहले 1993 में दिग्विजय ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए यात्रा निकालकर सूबे में कांग्रेस की सरकार बनाई थी, वहीं इस बार चुनाव से ठीक पहले नर्मदा परिक्रमा यात्रा के बाद सिंह ने 'संगत में पंगत' कार्यक्रम के जरिए पूरी पार्टी को एक सूत्र में बांधने और गुटबाजी खत्म करने का काम बखूबी किया। 
 
 
कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले दिग्विजयसिंह ने चुनाव में गुटबाजी खत्म करने और उस पर रोक लगाने के लिए 'संगत में पंगत' कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं को कांग्रेस के उम्मीदवार का साथ देने और गुटबाजी से दूर रहते हुए भितरघात न करने की अन्न-जल की कसमें दिलाईं, वहीं चुनाव के समय पार्टी ने दिग्विजय को समन्वय समिति की कमान देकर पार्टी को एक सूत्र में बांधने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है।
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राजनीति के जानकार बताते हैं कि दिग्विजय अकेले ऐसे नेता हैं जो पूरे प्रदेश के सियासी समीकरण से वाकिफ हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े चेहरे तो कांग्रेस के पास हैं, लेकिन इन दोनों नेताओं की पकड़ प्रदेश की सभी 230 सीटों पर नहीं है। ऐसे में दिग्विजय इन दोनों नेताओं पर कहीं न कहीं भारी पड़ते हैं।
 
 
दिग्विजय सिंह संभवत: कांग्रेस में अकेले ऐसे नेता हैं जिनकी कार्यकर्ताओं में सीधी पकड़ है। दिग्विजयसिंह पूरे प्रदेश की सीटों के सियासी समीकरण को समझने के साथ-साथ इस बात को भी जानते हैं कि किस सीट की तासीर और उसके स्थानीय समीकरण क्या हैं, जो कि चुनाव पर सीधा असर डालते हैं।

इसी समीकरण के चलते अब टिकट वितरण में दिग्विजयसिंह की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि दिग्विजय की राय लेने के बाद ही पार्टी आलाकमान उम्मीदवार के टिकट फाइनल कर रहा है। यानी चुनाव में दिग्विजयसिंह सब पर भारी पड़ रहे हैं।
 
दिग्विजय ने सूबे में अपना वनवास खत्म करते हुए चुनाव से ठीक पहले बहुत ही रणनीतिक तरीके से अपनी वापसी की। नर्मदा परिक्रमा यात्रा के जरिए दिग्विजयसिंह ने जमीनी स्तर पर संगठन की नब्ज टटोलने का काम किया। इसके साथ ही घर बैठ चुके संगठन के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को रिचार्ज कर एक बार फिर से चुनाव के लिए तैयार रहने का संदेश दिया।
 
दिग्विजय ने अपनी 6 महीने लंबी चली नर्मदा परिक्रमा यात्रा के जरिए जहां एक ओर संगठन का फीडबैक लिया, वहीं टिकट के दावेदारों की जमीनी हकीकत का खुद से सर्वे भी कर लिया। अब चुनाव के समय दिग्विजय का यहीं सर्वे पार्टी के लिए उम्मीदवार चयन में काफी मददगार साबित हो रहा है।

आज सूबे की सियासत में दिग्विजय सिंह की जो धमाकेदार वापसी हुई है, वह काफी हद तक सफल नर्मदा यात्रा का ही परिणाम है। इस बार के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह खुलकर सियासत की पिच पर बैंटिग कर रहे है, क्योंकि उनके पास पाने को सब कुछ है... खोने को कुछ भी नहीं....

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