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भारत बंद : भाजपा सरकार के लिए फि‍र एक बड़ी चुनौती

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प्रीति सोनी

SC ST एक्ट में संशोधन के विरोध में सवर्ण समाज द्वारा शुरु हुए बंद का असर देशभर के अलावा मध्यप्रदेश में व्यापक रूप में देखा गया और सवर्ण समाज के साथ-साथ पिछड़ा वर्ग के संगठनों का समर्थन इस बंद को हासिल था। 
 
बिहार को छोड़ दें तो भले ही भारत बंद का आव्हान उग्र रूप से नहीं किया गया हो, लेकिन बंद का सीधा असर राजनीतिक दलों से लेकर आम लोग, यहां तक कि बच्चों पर भी देखा गया।
 
मध्यप्रदेश की बात करें तो किसान आंदोलन के गर्म दूध से जली सरकार और राज नीतिक पार्टियां अब छाछ भी फूंक-फूंक कर पीती नजर आ रही है और यही कारण है कि बंद को देखने हुए एहतियात के तौर पह पहले ही सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद कर दिया गया था।
 
 
एक तरह राजनीतिक पार्टियों के आयोजनों को रोक दिया गया, तो दूसरी ओर नेताओं के घरों के आसपास सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गईं। इन्हें डर था कि किसी तरह के आयोजन में नेताओं की उपस्थिति विरोध को बढ़ा सकती है और काले झंडे भी दिखाएं जा सकते हैं। वहीं दूसरी ओर किसी भी अप्रिय स्थिति के डर से स्कूल और कॉलेजों में भी छुट्टी घोषित कर दी गई।
 
कुल मिलाकर एससी-एसटी एक्ट में संशोधन का जिस तरह विरोध किया जा रहा है, उसमें भाजपा आगे कुंआ पीछे खाई वाली स्थति में है। एक तरफ पार्टी अनुसूचित जाति-जनजाति के वोट बैंक‍ के चलते उसे अपने पक्ष में करने के प्रयास में थी, वहीं दूसरी ओर सवर्णों का पारंपरिक और मजबूत वोट बैंक अब उसके बूते से फिसलता नजर आ रहा है।

 
आरक्षण तक तो ठीक था लेकिन सवर्ण जिस तरह से अपने अधिकारों को लेकर मुखर हुए हैं, वह चुनावी साल में सरकार के लिए बड़ी चुनौती है...। 

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