Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कैसे पनप रहा मिलावटी मिठाइयों का कारोबार, कैसे रहे सावधान?

हमें फॉलो करें कैसे पनप रहा मिलावटी मिठाइयों का कारोबार, कैसे रहे सावधान?

फ़िरदौस ख़ान

त्यौहार के दिनों मे बाज़ार में नक़ली मावे और पनीर से बनी मिठाइयों का कारोबार ज़ोर पकड़ लेता है। आए-दिन छापामारी की ख़बरें सुनने को मिलती हैं कि फ़लां जगह इतना नक़ली या मिलावटी मावा पकड़ा गया, फ़लां जगह इतना।

इन मामलों में केस भी दर्ज होते हैं, गिरफ़्तारियां भी होती हैं और दोषियों को सज़ा भी होती है। इस सबके बावजूद मिलावटख़ोर कोई सबक़ हासिल नहीं करते और मिलावटख़ोरी का धंधा बदस्तूर जारी रहता है।

त्यौहारी सीज़न में कई मिठाई विक्रेता, होटल और रेस्टोरेंट संचालक मिलावटी और नक़ली मावे से बनी मिठाइयां बेचकर मोटा मुनाफ़ा कमाएंगे।

ज़्यादातर मिठाइयां मावे और पनीर से बनाई जाती हैं। दूध दिनोंदिन महंगा होता जा रहा है। ऐसे में असली दूध से बना मावा और पनीर बहुत महंगा बैठता है। फिर इनसे मिठाइयां बनाने पर ख़र्च और ज़्यादा बढ़ जाता है, यानी मिठाई की क़ीमत बहुत ज़्यादा हो जाती है। इतनी महंगाई में लोग ज़्यादा महंगी मिठाइयां ख़रीदना नहीं चाहते। ऐसे में दुकानदारों की बिक्री पर असर पड़ता है। इसलिए बहुत से हलवाई मिठाइयां बनाने के लिए नक़ली या मिलावटी मावे और पनीर का इस्तेमाल करते हैं।

नक़ली और मिलावटी में फ़र्क़ ये है कि नक़ली मावा शकरकंद, सिंघाड़े, मैदे, आटे, वनस्पति घी, आलू, अरारोट को मिलाकर बनाया जाता है। इसी तरह पनीर बनाने के लिए सिंथेटिक दूध का इस्तेमाल किया जाता है। मिलावटी मावा उसे कहा जाता है, जिसमें असली मावे में नक़ली मावे की मिलावट की जाती है। मिलावट इस तरह की जाती है कि असली और नक़ली का फ़र्क़ नज़र नहीं आता।

इसी तरह सिंथेटिक दूध यूरिया, कास्टिक सोडा, डिटर्जेंट आदि का इस्तेमाल किया जाता है। सामान्य दूध जैसी वसा उत्पन्न करने के लिए सिंथेटिक दूध में तेल मिलाया जाता है, जो घटिया क़िस्म का होता है। झाग के लिए यूरिया और कास्टिक सोडा और गाढ़ेपन के लिए डिटर्जेंट मिलाया जाता है।

फूड विशेषज्ञों के मुताबिक़ थोड़ी-सी मिठाई या मावे पर टिंचर आयोडीन की पांच-छह बूंदें डालें। ऊपर से इतने ही दाने चीनी के डाल दें। फिर इसे गर्म करें। अगर मिठाई या मावे का रंग नीला हो जाए, तो समझें उसमें मिलावट है। इसके अलावा, मिठाई या मावे पर हाइड्रोक्लोरिक एसिड यानी नमक के तेज़ाब की पां-छह बूंदें डालें। अगर इसमें मिलावट होगी, तो मिठाई या मावे का रंग लाल या हल्का गुलाबी हो जाएगा।

मावा चखने पर थोड़ा कड़वा और रवेदार महसूस हो, तो समझ लें कि इसमें वनस्पति घी की मिलावट है। मावे को उंगलियों पर मसल कर भी देख सकते हैं अगर वह दानेदार है, तो यह मिलावटी मावा हो सकता है।

इतना ही नहीं, रंग-बिरंगी मिठाइयों में इस्तेमाल होने वाले सस्ते घटिया रंगों से भी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। अमूमन मिठाइयों में कृत्रिम रंग मिलाए जाते हैं। जलेबी में कृत्रिम पीला रंग मिलाया जाता है, जो नुक़सानदेह है।
मिठाइयों को आकर्षक दिखाने वाले चांदी के वरक़ की जगह एल्यूमीनियम फॉइल से बने वर्क़ इस्तेमाल लिए जाते हैं। इसी तरह केसर की जगह भुट्टे के रंगे रेशों से मिठाइयों को सजाया जाता है।

दीवाली पर सूखे मेवे और चॉकलेट देने का चलन भी तेज़ी से बढ़ा है। चॉकलेट का कारोबार बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। चॉकलेट की लगातार बढ़ती मांग की वजह से बाज़ार में घटिया क़िस्म के चॉकलेट की भी भरमार है। मिलावटी और बड़े ब्रांड के नाम पर नक़ली चॉकलेट भी बाज़ार में ख़ूब बिक रही हैं। इसी तरह जमाख़ोर रखे हुए सूखे मेवों को एसिड में डुबोकर बेच रहे हैं। इसे भी घर पर जांचा जा सकता है। सूखे मेवे काजू या बादाम पर पानी की तीन-चार बूंदें डालें, फिर इसके ऊपर ब्लू लिटमस पेपर रख दें। अगर लिटमस पेपर का रंग लाल हो जाता है, तो इस पर एसिड है।

चिकित्सकों का कहना है कि मिलावटी मिठाइयां सेहत के लिए बेहद नुक़सानदेह हैं। इनसे पेट संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। फ़ूड प्वाइज़निंग का ख़तरा भी बना रहता है। लंबे अरसे तक खाये जाने पर किडनी और लीवर पर बुरा असर पड़ सकता है। आंखों की रौशनी पर भी बुरा असर पड़ सकता है। बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास अवरुद्ध हो सकता है।

घटिया सिल्वर फॉएल में एल्यूमीनियम की मात्रा ज़्यादा होती है, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों के ऊत्तकों और कोशिकाओं को नुक़सान हो सकता है। दिमाग़ पर भी असर पड़ता है। ये हड्डियों तक की कोशिकाओं को डैमेज कर सकता है। मिठाइयों को पकाने के लिए घटिया क़िस्म के तेल का इस्तेमाल किया जाता है, जो सेहत के लिए ठीक नहीं है। सिंथेटिक दूध में शामिल यूरिया, कास्टिक सोडा और डिटर्जेंट आहार नलिका में अल्सर पैदा करते हैं और किडनी को नुक़सान पहुंचाते हैं।

मिलावटी मिठाइयों में फॉर्मेलिन, कृत्रिम रंगों और घटिया सिल्वर फ़ॉएल से लीवर, किडनी, कैंसर, अस्थमैटिक अटैक, हृदय रोग जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं। इनका सबसे ज़्यादा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है। सूखे मेवों पर लगा एसिड भी सेहत के लिए बहुत ही ख़तरनाक है। इससे कैंसर जैसी बीमारी हो सकती है और लीवर, किडनी पर बुरा असर पड़ सकता है।

हालांकि देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने के लिए कई क़ानून बनाए गए, लेकिन मिलावटख़ोरी में कमी नहीं आई. खाद्य पदार्थो में मिलावटखोरी को रोकने और उनकी गुणवत्ता को स्तरीय बनाए रखने के लिए खाद्य संरक्षा और मानक क़ानून-2006 लागू किया गया है। लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद 23 अगस्त 2006 को राष्ट्रपति ने इस क़ानून पर अपनी मंज़ूरी दी।

फिर 5 अगस्त 2011 को इसे अमल में लाया गया, यानी इसे लागू होने में पांच साल लग गए। इसका मक़सद खाद्य पदार्थों से जुड़े नियमों को एक जगह लाना और इनका उल्लंघन करने वालों को सख़्त सज़ा देकर मिलावटख़ोरी को ख़त्म करना है। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की स्थापना खाद्य सुरक्षा और मानक विधेयक 2006 के तहत खाद्य पदार्थों के विज्ञान आधारित मानक निर्धारित करने एवं निर्माताओं को नियंत्रित करने के लिए 5 सितंबर 2008 को की गई।

यह प्राधिकरण अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मानकों और घरेलू खाद्य मानकों के बीच मध्य सामंजस्य को बढ़ावा देने के साथ घरेलू सुरक्षा स्तर में कोई कमी न होना सुनिश्चित करता है। इसके प्रावधानों के तहत पहले काम कर रहे कई नियम-क़ानूनों (1-फ्रूट प्रोडक्ट्स आर्डर, 1955 2-मीट फूड प्रोडक्ट्स आर्डर, 1973 3- मिल्क एंड मिल्क प्रोडक्ट्स ऑर्डर, 1992 4-सालवेंट एक्सट्रैक्टेड आयल, डी- ऑयल्ड मील एंड एडिबल फ्लोर (कंट्रोल) ऑर्डर, 1967 5-विजिटेबल्स ऑयल प्रोडक्ट्स (रेगुलेशन) ऑर्डर, 1998 6-एडिबल ऑयल्स पैकेजिंग (रेगुलेशन) ऑर्डर, 1998 7- खाद्य अपमिश्रण निवारण क़ानून, 1954) का प्रशासनिक नियंत्रण को इसमें शामिल किया है।

इस क़ानून में खाद्य पदार्थों से जुड़े अपराधों को श्रेणियों में बांटा गया है और इन्हीं श्रेणियों के हिसाब से सज़ा भी तय की गई है। पहली श्रेणी में जुर्माने का प्रावधान है। निम्नस्तर, मिलावटी, नक़ली माल की बिक्री, भ्रामक विज्ञापन के मामले में संबंधित प्राधिकारी 10 लाख रुपये तक जुर्माना लगा सकते हैं। इसके लिए अदालत में मामला ले जाने की ज़रूरत नहीं है। दूसरी श्रेणी में जुर्माने और क़ैद का प्रावधान है। इन मामलों का फ़ैसला अदालत में होगा। मिलावटी खाद्य पदार्थो के सेवन से अगर किसी की मौत हो जाती है, तो उम्रक़ैद और 10 लाख रुपये तक जुर्माना भी हो सकता है।

पंजीकरण या लाइसेंस नहीं लेने पर भी जुर्माने का प्रावधान है। छोटे निर्माता, रिटेलर, हॉकर, वेंडर, खाद्य पदार्थो के छोटे व्यापारी जिनका सालाना टर्नओवर 12 लाख रुपये से कम है, उन्हें पंजीकरण कराना ज़रूरी है। इसके उल्लंघन पर उन पर 25 हजार रुपये तक जुर्माना हो सकता है। 12 लाख रुपये सालाना से ज़्यादा टर्नओवर वाले व्यापारी को लाइसेंस लेना ज़रूरी है। ऐसा न करने पर पांच लाख रुपये तक जुर्माना और छह महीने तक की सज़ा ह सकती है। अप्राकृतिक और ख़राब गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री पर दो लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

इसी तरह घटिया खाद्य पदार्थों की बिक्री पर पांच लाख रुपये, ग़लत ब्रांड खाद्य पदार्थों की बिक्री पर तीन लाख, भ्रामक विज्ञापन करने पर 10 लाख रुपये और खाद्य पदार्थ में अन्य चीज़ों की मिलावट करने पर एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

दिवाली पर मिठाई की मांग ज़्यादा होती है और इसके मुक़ाबले आपूर्ति कम होती है। मिलावटख़ोर मांग और आपूर्ति के इस फ़र्क़ का फ़ायदा उठाते हुए बाज़ार में मिलावटी सामग्री से बनी मिठाइयां बेचने लगते हैं। इससे उन्हें तो ख़ासी आमदनी होती है, लेकिन ख़ामियाज़ा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा छापेमारी कर और नमूने लेकर ख़ानापूर्ति कर ली जाती है। फिर कुछ दिन बाद मामला रफ़ा-दफ़ा हो जाता है।

दरअसल मिलावटख़ोरी पर रोक लगाने के लिए इतनी सख़्ती नहीं बरती जाती जितनी बरती जानी चाहिए। इसलिए यही बेहतर है कि मिठाई, चॉकलेट और सूखे मेवे ख़रीदते वक़्त एहतियात बरतनी चाहिए। साथ ही इनके ख़राब होने पर इसकी शिकायत ज़रूर करनी चाहिए, ताकि मिलावटख़ोरों पर दबाव बने। जागरूक बने, सुखी रहें।

(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Diwali Sweets 2021: दिवाली पर नकली मिठाई खरीदने से बचें, घर में ही बनाएं ये 5 खास मिठाइयां