केला बदलेगा किसानों की किस्मत

निर्यात बढ़ने से उत्तर भारत के केला उत्पादक किसानों को होगा लाभ

गिरीश पांडेय
Banana production: आने वाले वर्षों में पोषक तत्वों से भरपूर और बहुउपयोगी केला उत्तर भारत के केला उत्पादक किसानों की किस्मत बदलने वाला साबित होगा। दरअसल, केंद्र के खाद्य उत्पाद निर्यात प्रसंस्कृत प्राधिकरण (एपीडा) केला, आम, आलू, अनार और अंगूर सहित फलों और सब्जियों के करीब डेढ़ दर्जन उत्पादों का समुदी रास्ते से निर्यात बढ़ाने के लिए पायलट प्रोजेक्ट तैयार कर रहा है। 
 
भारत दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक पर निर्यात में सिर्फ एक फीसद की हिस्सेदारी
एपीडा के आंकड़ों के मुताबिक भारत विश्व का सबसे बड़ा केला उत्पादक है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से मिले आंकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 3.5 करोड़ मीट्रिक टन के उत्पादन के साथ लगभग 9,61,000 हेक्टेयर भूमि में इसकी खेती की जाती है। एपीडा के अनुसार वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 30 फीसद है। पर, करीब 16 अरब के वैश्विक निर्यात में भारत की भागीदारी हिस्सेदारी सिर्फ एक फीसद है। 
 
दो-तीन वर्षों में केले का निर्यात बढ़ाकर एक अरब डॉलर करने का लक्ष्य
एपीडा ने अगले दो से तीन वर्षों में केले का निर्यात बढ़ाकर एक अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा है। इसके मद्देनजर पहली बार मुंबई केले पर केंद्रित क्रेता विक्रेता सम्मलेन भी प्रस्तावित है। स्वाभाविक है कि इस सबका लाभ उत्तर के किसानों को सर्वाधिक मिलेगा।
 
बहुउपयोगी है केला : पोषक तत्वों से भरपूर केले के लगभग हर चीज का उपयोग होता है। पके फल खाने के काम आते हैं। यह उन चुनिंदा फलों में से है जिसे आम बिना धोए और काटे सिर्फ छिलका उतार कर खा सकते हैं। हरे फलों का जूस, जैम,जेली, नमकीन आटा बनता है। इनका प्रयोग रोज के अलावा व्रत में भी कर सकते हैं। कच्चे केले के छिलके का भी स्वादिष्ट आचार बना सकते हैं।
 
केले के तने के रेशे को प्रोसेस कर हर तरह के पर्स, योगा मैट, दरी, पूजा की आसनी, चप्पल, टोपी, गुलदस्ता,पेन स्टैंड आदि बनाया जा रहा है। कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) के रवि प्रसाद ये सारे प्रोडक्ट बनाते हैं। उनका कहना है कि केले के रेशे से बने उत्पाद जूट की तुलना में करीब 30 फीसद मजबूत होते हैं। यही नहीं केले के तने के अंदर के गोल हिस्से का जूस सेहत के लिए बेहद उपयोगी होता है। कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) के अनीता राय की फर्म द्वारा बनाए गए केले के तने के जूस की भारी डिमांड है। उनके जूस के कद्रदान उड़ीसा, पंजाब, नेपाल, दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु भी हैं।
   
वेस्ट से वेल्थ की जीवंत मिसाल है केला : प्रोसेसिंग के जरिए केले के वेस्ट को वेल्थ बना सकते हैं।  ऐसा रवि और अनीता दोनों का कहना है। तने से रेशा निकालने के दौरान जो जूस निकलता है। उसे बिना प्रोसेस किए मछली पालक अपने तालाब में डालते हैं। बदले में प्रति लीटर 15 से 20 रुपए भी देते हैं। बचा पानी उबालकर जरूरत के अनुसार रेशों को रंगीन बनाने के काम आता है। इसके बाद जो अपशिष्ट बच जाता है उससे बेहतरीन किस्म की कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट बना सकते है। हरे केले का छिलका अचार बनाने के काम आता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 

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