Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सीएम योगी के अस्सी बनाम बीस प्रतिशत वाले बयान के मायने

हमें फॉलो करें सीएम योगी के अस्सी बनाम बीस प्रतिशत वाले बयान के मायने
webdunia

अवधेश कुमार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा 80% बनाम 20% का बयान जिस सघन बहस, विवाद और बवंडर का आधार बना है वह अस्वाभाविक नहीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और कुछ हद तक गृहमंत्री अमित शाह ऐसे नाम हैं, जिनके एक-एक शब्द का विशेष दृष्टिकोण और परिधि के तहत पोस्टमार्टम किया जाता है।

उत्तर प्रदेश चुनाव के बीच उनके इस बयान का ऑपरेशन नहीं हो और शोर न मचे यह संभव ही नहीं था। योगी आदित्यनाथ ने एक टीवी चैनल के कॉन्क्लेव में मेरे ही प्रश्नों के उत्तर में यह कहा था। हालांकि मैंने जब प्रश्न किया था तब भी मुझे उम्मीद थी कि उनके द्वारा दिया गया इसका उत्तर मीडिया की सुर्खियां के साथ बहस का विषय बनेगा। जिस समय वे उत्तर दे रहे थे उसी समय साफ हो गया था कि आने वाले समय में चुनाव तक ये शब्द गूंजते रहेंगे।

प्रश्न है कि क्या वाकई इसके जो अर्थ लगाए जा रहे हैं वे सही हैं? क्या मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए उत्तर के पीछे वही निहितार्थ और भाव थे जो बताए जा रहे हैं?

आम निष्कर्ष यही निकाला गया है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के अंदर 19 - 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को ध्यान रखते हुए ही कहा कि 80 प्रतिशत और 20 प्रतिशत का चुनाव होगा।

80 प्रतिशत सकारात्मक दृष्टि से भाजपा का समर्थन देंगे और 20 नकारात्मक दृष्टि से पहले भी विरोध करते रहे हैं, आगे भी करेंगे, लेकिन सरकार भाजपा की बनेगी।

हम किसी के हृदय में घुसकर नहीं देख सकते कि अंदर क्या चल रहा है। उनके मस्तिष्क में कौन सा विचार है और कहां निशाना है इसको जानने के लिए कोई यंत्र विकसित नहीं हुआ है।

किसी के व्यक्तित्व, पृष्ठभूमि, संदर्भ, परिस्थितियां आदि के आधार पर निष्कर्ष निकालते हैं। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि मेरे प्रश्न क्या थे। मैंने योगी जी से यह कहते हुए प्रश्न किया था कि मेरे प्रश्न तो एक ही है लेकिन इसके तीन अलग-अलग अंग हैं।

मैंने पूछा था कि यदि आपको मतदाताओं से कहना हो कि किसी सूरत में विपक्ष का समर्थन नहीं करें तो आप क्या कहेंगे? इसके साथ मैंने कहा था कि सपा और बसपा जैसे मुख्य दलों के अलावा आपके दो बड़े विरोधी या विपक्ष मैंने उत्तर प्रदेश में महसूस किया है। पहला, उत्तर प्रदेश का चुनाव केवल एक प्रदेश का नहीं है, पूरे देश में और देश के बाहर विदेश में भी जो नरेंद्र मोदी, अमित शाह और आदित्यनाथ योगी को हराना चाहते हैं उनके लिए यह एक बड़ा एजेंडा है।

वह उत्तर प्रदेश में देश में और विदेश में सक्रिय हैं। वे लोगों के बीच जा रहे हैं, कई तरीकों से अपनी बात कर रहे हैं और उनका प्रभाव भी है। तो उनसे निपटने या उनकी चुनौतियों का सामना करने के लिए आपकी तैयारी क्या है? दूसरा, मैं मुसलमानों के बीच जा रहा हूं।

मुसलमान कह रहे हैं कि यह सरकार तो हिंदुओं की है। हमको तो इस सरकार को हराना है। तो ये जो दो बड़े विपक्ष या विरोधी हैं इनसे आप कैसे निपटेंगे, इनकी चुनौतियों का कैसे सामना करेंगे? इसी का उन्होंने उत्तर दिया था।
उन्होंने कहा था कि सत्ता में हमने बिना भेदभाव के सबका विकास किया है, लेकिन किसी का तुष्टीकरण नहीं किया है। जैसा हम जानते हैं उत्तर प्रदेश के पूर्व शासन पर मुसलमानों के तुष्टीकरण यानी उनको विशेष प्राथमिकता और बढ़ावा देने का आरोप हो रहा है और यह प्रमाणित हुआ है।

उन्होंने कहा कि कोई इसे हमारी कमजोरी मानता है तो माने। राष्ट्रवाद के प्रति हमारी प्रतिबद्धता है। जो राष्ट्र विरोधी हैं हिन्दू विरोधी हैं वे हमें नहीं मानेंगे। उनका इसी में कहना था कि मोदी जी और योगी जी अपने गर्दन काट कर तश्तरी में सजा देंगे तब भी वो वर्ग हम पर विश्वास नहीं करेगा। इसी के आगे उन्होंने 80% और 20% वाली बात की थी।

इसका हम अपने अनुसार अर्थ लगाने के लिए स्वतंत्र हैं। यह बात सही है कि मैंने स्पष्ट रुप से मुसलमान शब्द का प्रयोग करके ही प्रश्न पूछा था। इसलिए उनके उत्तर को इस संदर्भ में देखा जाना स्वभाविक है। हालांकि उनके पूरे वक्तव्य को साथ मिलाकर देखा जाए तो उनका निहितार्थ यही था कि हमने सरकार होने के नाते सबके लिए काम किया है, न किसी को विशेष बढ़ावा दिया न किसी की अनदेखी की और यही करेंगे लेकिन कुछ लोग हैं जो हम पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं।

उन्होंने इसमें राष्ट्र विरोधी, हिन्दू विरोधी शब्द प्रयोग किया और राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्धता जताई। हां, उन्होंने विश्वास करने या समर्थन करने की अपील नहीं की।

उन्होंने यही कहा कि वो शक्तियां मोदी जी और योगी जी को क्यों वोट देंगे? उनके कहने का एक अर्थ यही था कि जो सकारात्मक दृष्टि से विचार करेंगे वो हमको वोट देंगे लेकिन नकारात्मक सोच रखने वाले न पहले दिया है न आगे देंगे।

योगी आदित्यनाथ अपनी स्पष्टता और प्रखरता के लिए विख्यात है। वो गोल मटोल या छायावादी शैली में बात नहीं करते। उनकी सरकार में माफिया और अपराधियों के विरुद्ध जैसी कठोर कार्रवाई हुई है उसकी कल्पना शायद ही किसी को रही हो।

इसमें मुसलमानों की संख्या बहुत है। लेकिन क्या जितने बड़े अपराधियों, माफियाओं, गैंगस्टरों के विरुद्ध कार्रवाई हुई है उनके बारे में पहले से पता नहीं था? इनमें कौन है जिनके बारे में कहा जाए कि वे निर्दोष थे और सरकार ने जानबूझकर मुसलमान होने के कारण बड़े-बड़े मुकदमा करके उन्हें जेल में डाल दिया?

वे सारे साधनसंपन्न हैं और न्यायालय में जितना चाहे खर्च कर सकते हैं, कर भी रहे हैं। जाहिर है, पहले की सरकारें उन पर हाथ डालने से बचती थी। योगी आदित्यनाथ सरकार ने निर्भीकता से इनके विरुद्ध कार्रवाई की। इसे कोई मुस्लिम विरुद्ध कार्रवाई कहे तो उससे पूछा जा सकता है कि क्या अपराधियों के विरुद्ध भी यह देखकर पुलिस काम करेगी कि यह किस समुदाय के हैं? मेरे प्रश्न में यह शामिल भी था। उत्तर प्रदेश में घूमने वाला कोई भी स्वीकार करेगा कि मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, आजम खान आदि के विरुद्ध कार्रवाइयों को इस रूप में प्रचारित किया गया है कि सरकार मुसलमान होने के कारण इन्हें परेशान कर रही है।

बहुत सारे मुसलमान मानते हैं कि ये बाहुबली व अपराधी हैं, इन्होंने सत्ता और शक्ति का दुरुपयोग किया है, लेकिन बहुत बड़े वर्ग के अंदर इसे लेकर विकृत धारणा है। मुसलमानों का बहुमत भाजपा को आज भी अपना विरोधी मानता है तथा उसे हराने के लिए रणनीतिक मतदान करने वाला है। आप किसी मुस्लिम आबादी में चले जाइए आपको भाजपा विरोधी वातावरण मिलेगा। इक्का-दुक्का लोग समुदाय का विरोध झेल कर भाजपा समर्थन की बात कर देते हैं।

उत्तर प्रदेश में सरकार के सामाजिक आर्थिक विकास एवं कल्याण कार्यक्रमों का आंकड़ा बताता है कि मुसलमानों को उनके 19% आबादी के मुकाबले सभी योजनाओं का 34% अनुपात प्राप्त हुआ है।

नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ या ऐसे अनेक नेताओं की हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्धता है। किंतु सरकार के रूप में उन्होंने मुस्लिम विरोधी काम किया है इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। हां, जिन मुद्दों को पहले की सरकारें छूने से बचती थी इन्होंने उन पर खुलकर काम किया है।

दूसरी सरकार होती तो अयोध्या का फैसला आने के बाद भी मंदिर निर्माण के दिशा में आगे बढ़ने से बचती। काशी विश्वनाथ को भव्य रूप देने का माद्दा कोई सरकार नहीं दिखाती। इलाहाबाद को प्रयागराज या फैजाबाद को अयोध्या करने से लेकर धर्म संस्कृति से जुड़े स्थलों के विकास, अनेक कब्जा किए गए मंदिरों को मुक्त कराकर निर्माण का कार्य या लव जिहाद के विरुद्ध धर्म परिवर्तन संबंधी कानून, गौ हत्या निषेध, अवैध बूचड़खाना बंद करना, शिक्षा के क्षेत्र में आवश्यक परिवर्तन आदि कार्य कोई दूसरी सरकार नहीं करती।

यह सब भारतीय सभ्यता संस्कृति और अध्यात्म के गौरव को पुनर्स्थापित करना है। इसे मुस्लिम विरोधी कहने से बड़ी विडंबना कुछ नहीं हो सकती। ये काम पहले की सरकारों को भी करना चाहिए था। मुस्लिम वोटों के भय से चाहते हुए भी किसी सरकार ने नहीं किया। अंतर यही है।

इस सरकार ने मुस्लिम वोटों की चिंता नहीं की यह सच है। लेकिन यह भी सोचिए कि कोई समुदाय इस पर अडिग हो जाये कि हर हाल में भाजपा के विरोध में वोट देना है तो उसे क्या कहा जा सकता है? शांत होकर इस प्रश्न का उत्तर तलाशिये।

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर हिंदी में निबंध