Festival Posters

ऐसी हड़ताल हमारे देश में क्यों नहीं होती?

प्रज्ञा पाठक
अपने लोकतंत्र को बनाएं 'लोक का तंत्र'

हाल ही में जापान में बस चालक हड़ताल पर गए। उल्लेखनीय बात यह रही कि इस हड़ताल में आम जनता का पूरा ख्याल रखा गया। एक भी बस नहीं रोकी गई बल्कि उन्हें जनता के लिए निःशुल्क कर दिया गया।
 
चालकों का यह कहना था कि यदि हम बस नहीं चलाएंगे,तो जनता को कष्ट होगा और प्रबंधन को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसी स्थिति में प्रबंधन हमें स्वार्थी घोषित कर जनहित के विरुद्ध कार्य करने वाला सिद्ध कर देता और हमारी मांगें भी इसी आधार पर अनदेखी कर दी जातीं। हमारा विरोध जनता से नहीं,प्रबंधन से है। इसलिए उन लोगों ने अपनी हड़ताल को 'फ्री राइड स्ट्राइक' नाम देते हुए बस सर्विस को सभी यात्रियों के लिए शुल्करहित कर दिया।
 
इस घटना ने मुझे भारतीय हड़तालों की कटु याद दिला दी। यहां हड़ताल का मतलब ही काम बंद करना होता है। जनता के कष्ट से किसी को कोई सरोकार नहीं होता। हड़ताल का मकसद कुछ भी हो,प्रबंधन अपनी सुस्त गति से ही जागृत होता है और हड़तालियों को निज स्वार्थ के समक्ष कुछ नहीं सूझता। जनता की परेशानी इनमें से किसी के दृष्टि-पथ में नहीं होती। 
 
सच में ये अत्यंत तकलीफदेह है। विशेषकर जब हमारे देश में लोकतंत्र है और छोटी कक्षाओं से बच्चों को 'जनता का,जनता के लिए,जनता के द्वारा' बताया जाकर इस लोकतंत्र पर गर्व करना सिखाया जाता है। यदि लोकतंत्र है, तो जनता सर्वोपरि होना चाहिए।
 
लेकिन खेद की बात है कि भारत में जनता ही सर्वाधिक उपेक्षित है। उसे अधिकार और कर्तव्य दोनों की शिक्षा दी जाती है, लेकिन व्यवहार में कर्तव्य-पालन सख्ती से करवाया जाता है और अधिकार देने में कृपणता बरती जाती है।
 
आयकर,भूमि कर, जल कर,चुंगी कर,व्यावसायिक कर सहित अन्य अनेक कर,बैंक,डाक विभाग,बीमा क्षेत्र,न्यायालय आदि सभी जगह नियमों के पालन में कठोरता दिखाई जाती है।
 
इसके विपरीत जहां आम जनता अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहे,तो उसे अबाधित भोग का अवसर नहीं दिया जाता। उसकी राह में रोड़े अटकाए जाते हैं।वो चाहे निजी विद्यालयों में निर्धन बच्चे का दाखिला हो,राशन की दुकान से राशन पाना हो,लोन की अर्जी स्वीकृत कराना हो,दिव्यांगों को कानूनन कोई सुविधा दिलवाना हो,कर्मचारियों के वेतन-भत्ते बढ़ाना हो,दैनिक वेतनभोगियों को उनके उचित हक़ देना हो, सभी स्थानों पर संबंधितों के काम सरलता से नहीं होते। उन्हें ऊटपटांग नियमों और असम्बद्ध कायदों में उलझाया जाता है।
 
वस्तुतः हमारा नेतृत्व अपनी कलम और वाणी के जरिये तो जनता का नारा खूब बुलंद करता है, लेकिन जब कर्म करने की बारी आती है, तो वो सभी लेखकीय और मौखिक संकल्प धूल चाटते नज़र आते हैं।तब केवल स्वहित प्रमुख हो उठता है। 'मैं' और 'मेरा' की आंधी में 'हम' तिरोहित हो जाता है। 'तंत्र' प्रमुख, 'लोक' गौण हो जाता है।
 
बहरहाल,ये सब हमारे देश में चलता आया है और अब भी पूरी बेशर्मी के साथ चल रहा है। लेकिन विपरीतताओं के बीच भी आशा की एक किरण सदा मौजूद रहती है। उसी किरण का अवलंब लेकर आग्रह इसी बात का कि हम अर्थात् जनता स्वयं ऐसी छोटी,किन्तु सार्थक पहल करे,जैसी उन जापानी बस चालकों ने की। विरोध का तरीका सम्बंधित तंत्र को प्रभावित करे ना कि आम जनता को। वो तो आप स्वयं ही हैं ना।
 
आज आप उन्हें कष्ट देंगे,कल वो आपको।
 
ये श्रृंखला चलती रहेगी और जनता यानी आप पिसते रहेंगे।
 
बेहतर होगा कि अपनी शक्तियों का उपयोग सकारात्मक ढंग से करें और इस लोकतंत्र को सही अर्थों में जीयें,जीने लायक बनाएं और स्वयं के साथ शेष विश्व के लिए भी गर्व का कारण बनाएं। याद रखें ,अपनी शासन-व्यवस्था को उपयुक्त बनाकर ही हम अपने राष्ट्र के सच्चे नागरिक होने का सुख भोग सकेंगे और राष्ट्र का गौरव सुरक्षित रख पाएंगे।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

तेज़ी से फैल रहा यह फ्लू! खुद को और अपने बच्चों को बचाने के लिए तुरंत अपनाएं ये 5 उपाय

पश्चिमी जगत शाकाहारी बन रहा है और भारत मांसाहारी, भारत में अब कितने बचे शाकाहारी

आप करोड़पति कैसे बन सकते हैं?

Leh Ladakh Protest: कैसे काम करता है सोनम वांगचुक का आइस स्तूप प्रोजेक्ट जिसने किया लद्दाख के जल संकट का समाधान

दुनिया के ये देश भारतीयों को देते हैं सबसे ज्यादा सैलरी, अमेरिका नहीं है No.1 फिर भी क्यों है भारतीयों की पसंद

सभी देखें

नवीनतम

Bihar election 2025: कौन हैं मैथिली ठाकुर? जानिए बिहार चुनाव के गलियारों में क्यों हो रही इस नाम पर चर्चा

Indian Air Force Day 2025: भारतीय वायु सेना की स्थापना कब हुई थी? जानें इस दिन की खास 5 अनसुनी बातें

Guru Ram Das Jayanti 2025: चौथे सिख गुरु, गुरु रामदास जी की जयंती, जानें उनके बारे में रोचक बातें

स्प्राउट्स खाने के बाद नहीं लगेगा भारीपन, जानिए अंकुरित अनाज खाने का सही तरीका

nobel prize 2025: कैसे हुई नोबेल पुरस्कार की शुरूआत, दिलचस्प था किस्सा, जानिए नोबेल पुरस्कार विजेता को क्या मिलता है

अगला लेख