युवाओं में बढ़ता खुलापन : ए पार्ट ऑफ़ देयर लाइफ़...

स्वरांगी साने
दादी के घुटनों में दर्द बढ़ता जा रहा था, घुटनों का ऑपरेशन करवाना चाहिए या नहीं इस पर परिवार के सदस्यों में चर्चा चल रही थी। बच्चे भी (जिन्हें परिवार बच्चा ही समझ रहा था) बैठे थे। तभी 12वीं के विज्ञान के छात्र रोहित ने कहा, “महिलाओं में मेनोपॉज़ के बाद हड्डियों का कमज़ोर होना एक आम बीमारी है, उसका कोई इलाज़ नहीं, पहले से ही ध्यान रखना चाहिए”। लगभग मेनोपॉज़ की उम्र में पहुंची उसकी मां और चाची एकदम से कुछ समझ नहीं पाई कि क्या प्रतिक्रिया दें। दादी ने केवल गर्दन हिलाई। दसवीं में पढ़ने वाली रक्षिता ने तपाक् से कहा- “हां  महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ अलग दिक्कतें शुरू हो जाती हैं”। 
 
चाची ने विषय बदलते हुए कहा “चलो मैं चाय बनाती हूं सबके लिए”, चाचा भी उठकर अपनी जेबें टटोलने लगा, जैसे कहीं जाने की तैयारी में हो, रोहित के पिता भी उठ खड़े हुए। रोहित की मां  भी रसोई में जाने के लिए निकली..रक्षिता ने फिर कहा “मेरे बैग में से किसी को कभी सैनेटरी पैड दिख भी जाता है तो मुझे संकोच नहीं होता”। उम्र में आने वाले बच्चों के सामने, उम्र पार कर जाने वाले लोग समझ नहीं पा रहे थे कि इन बातों में उनके साथ किस तरह शामिल हों या उनकी बातों में खुद को कैसे शामिल करें।
 
पहले भी किशोरवयीन बच्चों के सवालों ने माता-पिता को उलझाया होगा लेकिन आज की पीढ़ी जितनी आधुनिक हो गई है उस रफ़्तार से पिछली पीढ़ी चल नहीं पा रही है। बच्चों, किशोरों, युवाओं के हाथों में छोटा-सा मोबाइल है जो उनके हर अच्छे-बुरे, सरल-जटिल सवाल का जवाब दे देता है, कभी-कभी सही और कभी-कभी अधकचरा भी। पहले जिन सवालों को अपने अभिभावकों या मित्रों तक से पूछने की हिम्मत नहीं होती थी, झिझक लगती थी, अब वे सारी बातें उनके सामने इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।

सभ्य परिवारों की लड़कियां तो दूर, लड़के तक गाली नहीं देते थे और अब हिंदी-अंग्रेज़ी की गालियां उन्हें केवल पता ही नहीं बल्कि उनकी रोज़मर्रा की भाषा में इतनी शामिल हो गई हैं कि न तो उन्हें असभ्य कह सकते हैं न उनकी भाषा को असंस्कृत। जैसे यही उनकी संस्कृति है, यही उनकी सभ्यता। अपनी झल्लाहट वे इस तरह गालियों में उतारते हैं कि पिछली पीढ़ी सोच में पड़ जाती है कि उन्हें झुंझलाहट होती थी तो उस उम्र वे क्या किया करते थे।
 
आज की पीढ़ी सोच नहीं पाती कि बिना मोबाइल-इंटरनेट और टीवी या यू-ट्यूब, नेटफ़्लिक्स के भी पिछली पीढ़ी कैसे रह पाती थी, जैसे वे यह नहीं समझ पाते कि वे कुछ शब्द उस तरह गाली भी नहीं है, जैसे बड़े लोग समझ रहे हैं। आप इसे सही कहें या ग़लत लेकिन ये सारी गालियां उनकी भाषा का हिस्सा बन गई हैं। शब्दों को गुस्से में उतारकर बोलना उनके लिए आम हो गया है तो यौन चर्चा करना भी।

इसका एक पक्ष यह भी है कि जो खुलापन उनकी बातों-व्यवहार में आया है उसने इन विषयों को वर्जित नहीं रखा है, यह ‘ए पार्ट ऑफ़ देयर लाइफ़’ है। पहले भी ये बातें ‘जीवन का हिस्सा’ थीं लेकिन जीवन के हर हिस्से को तब सार्वजनिक नहीं किया जाता था, कहीं न कहीं आड़-परदा था। अब सब कुछ रियलिटी शो की तरह चलता है, जो है सबके सामने है। एलजीबीटी को लेकर जितनी बहसें होती हैं, उसे लेकर उनका अपना पक्ष है या उनके मुहावरे में कहें तो उनका स्ट्रांग स्टैंड भी है। पिछली पीढ़ी भौचक है, अगली पीढ़ी एडवांस...शायद यही जनरेशन गैप है।

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